कानपुर: रमजान मुबारक की आमद आमद है। अल्लाह हर साल यह मुबारक महीना ( माहे रमजान) मुसलमानों को अता फरमाते हैं जिसमें अल्लाह पाक खास रहमतें व बरकतें नाजिल होती हैं। बन्दों की दुआयें विशेष रूप से कुबूल की जाती हैं और नेक कामों का दर्जा बढ़ा दिया जाता है, बे शुमार खुसूसियात वाला यह महीना रहमत ए दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्मत को ही अल्लाह पाक ने बतौर इनाम अता फरमाया है। कुल हिन्द इस्लामिक इल्मी अकादमी के अध्यक्ष मुफ्ती इकबाल अहमद कासमी, उपाध्यक्ष मुफ्ती अब्दुर्रशीद क़ासमी, महासचिव मौलाना खलील अहमद मजाहिरी, सचिव मुफ्ती असदुद्दीन क़ासमी, सदस्य मौलाना अमीनुल हक़ अब्दुल्लाह कासमी व अन्य पदाधिकारियों ने लोगों के नमाज , रोजा , तरावीह , जकात, फित्रा, हज व कुर्बानी में दीनी मालूमान और इस्लामी रहनुमाई के लिए रमजान हेल्प लाइन बनाम अल-शरिया हेल्प लाइन जारी करते हुए समस्त मुसलमानों विशेषकर कानपुरवासियों से अपील करते हुए फरमाया कि पूरी दुनिया विशेषकर अपने देश के मौजूदा हालात को सामने रखते हुए ज़्यादा भीड ना लगायें, तौबा, इस्तेगफार, जिक्र, तिलावते कुरआन पाक का अधिक से अधिक एहतमाम करें। इफ्तार और सेहरी के वक्त दुआयें कुबूल होती हैं , इस वक्त अपने लिये, अपने घरवालों, इलाके, शहर और देश समेत पूरी दुनिया के लिये संक्रामक रोग से हिफाजत और जल्द निजात की दुआ करें। मौलाना ने कहा कि रोज़ा और नमाज में कोताही ना करें, अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगें। मौलाना अब्दुल्लाह ने कहा कि दूसरी उम्मतों को रमजान मुबारक जैसी यह नेअमत नहीं मिली इसलिए उम्मत ए मुस्लिमा का यह फर्ज है कि वह इसकी कद्र व शुक्रगुजारी में लापरवाही ना करे। इस रमजान का सबसे पहला हक यह है कि वह इस माह का एहतराम करें और रमजान मुबारक के खुसूसी आमाल को बहुस्न व खूबी अंजाम दें। रमजान मुबारक के खुसूसी काम रोजा, तरावीह, शब कद्र का कयाम, ऐतिकाफ आदि है।


रोजा – हर बुद्धिमान एवं बालिग मुसलमान पर पूरे महीने रोजा रखना फर्ज (जरूरी) है। मुसाफिर, मरीज , विकलांग व बूढ़े लोगों को छोड़कर अच्छे खासे सेहतमन्द लोगों का रोजा न रखना और गर्मी की शिद्दत को बर्दाश्त करने की हिम्मत ना करना यह बहुत बड़ा गुनाह है जो अल्लाह के अजाब को दावत देता है। खुदा के वास्ते रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शरियत को मजाक ना बनायें और रमजान के महत्व को धूमिल ना करें।


तरावीह – पूरे माह 20 रकअत तरावीह एहतमाम से पढ़ना सुन्नत ए मुतवातिर है और तरावीह में पूरे कुरआन का सुनना भी बड़ी सुन्नत है इसलिए खत्म ए कुरआन की सुन्नत पूरी करने के साथ-साथ पूरे माह रमजान 20 रकअत तरावीह एहतमाम से पढ़ना जारी रखें। इस वर्ष यह अमल सभी को घर पर रहकर ही करना है, पूरा कुरान सुनाने के लिये अगर कोई हाफिज ना मिले तो अलम तरा से पढ लें। कुछ दिन में कुरआन पाक सुनकर फिर तरावीह ही सिरे से छोड़ देना गलत तरीका और सुन्नत के विरूद्ध है। औरतों पर भी तरावीह की नमाज घरों में पढ़ना सुन्नते मुअक्किदा है।


खत्म ए कुरआन – कुरआन करीम का तरावीह में सुनना सुनाना बहुत मुबारक काम है एक-एक शब्द पर दस नेकी और फिर रमजान और नमाज में पढ़ने के कारण से नेकियां कई गुना बढ़ जायेंगी। लेकिन यह नेकी और अल्लाह से करीब होने के लिए कुरआन पाक को सही मखारिज के साथ ठहर ठहर कर और तजवीद की रियायत के साथ पढ़ा जाये। मुफ्ती इक़बाल अहमद कासमी ने बताया कि फुकहा किराम ने दाढ़ी मुण्डाने वाले हाफिज के पीछे कुरआन को सुनने को मकरूह लिखा है लिहाजा इस सुन्नत को छोड़ने से तौबा कीजिए और अल्लाह व उसके रसूल की खुशनूदी की फिक्र कीजिए।


शब ए कद्र व ऐतिकाफ – रमजान के आखिरी दस दिनों में शब ए कद्र है और ऐतिकाफ भी आखिरी दस दिनों में सुन्नत मुअक्किदा अललकिफायह है। आखिरी दस दिनों में तिलावत, दुआ तस्बीह, नवाफिल, तौबा व इस्तिगफार का एहतमाम और अधिक बढ़ा देना चाहिए। अल्लाह पाक हमारी कमियों को सही करें और रमजान मुबारक की बरकतों से नवाजें। अपने घर से एक आदमी को ऐतिकाफ में बिठाऐं और औरतैं घरों में ऐतिकाफ का एहतमाम करें। मर्दों के एतिकाफ और ईद की नमाज के सम्बन्ध में रमाजान के दूसरे अशरे में हिदायतें जारी की जायेंगी।


जकात व फित्राः रमजान, अल्लाह के रास्ते में खास तौर से ज्यादा से ज्यादा खर्च करने का भी महीना है जैसा कि नबी करीम अलैहिस्सलाम की उदारता का अन्दाज इस महीने में बहुत बढ़ जाता था इसलिए जो हजरात साहबे निसाब हैं उन पर तो अपने वर्ष पूरे होने का हिसाब लगाकर अपने माल का ढाई प्रतिशत जकात के जरूरतमन्दों पर खर्च करना अनिवार्य है और रमजान के महीने बीतने पर अपने और अपने नाबालिग बच्चों द्वारा फित्रह अदा करना भी वाजिब है। बाकी नफली सदकात आदि भी विशेष तौर पर अदा करना चाहिए।


हमदर्दी व मसावात – गरीबों और कमजोर वर्गों का भरपूर सहयोग किया जाए, विषेषकर अनाथों, विधवा , मुहल्ले और पड़ोस के परेशान हाल लोगों को इफ्तार व सहरी में याद रखें उन्हें ईद की खुशियों में शामिल करें, आवश्यक वस्तुओं के पैकेट बना बनाकर घरों में पहुंचाएं। इम्दादी रकम (सहायता राशि) से गैर मुस्लिम गरीबों की मदद करें। इस माह को रहमत दो आलम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने गम ख्वारी(परेशान लोगों का हाल चाल जानने) और सहानुभूति का महीना करार दिया है इसकी अपेक्षा है कि हम उदार दिल के साथ गरीबों की सेवा करें।
लाउड स्पीकर का गलत इस्तेमाल -. इस्लाम में किसी को तक्लीफ पहुँचाने से सख्ती से मना किया गया है और कमजोर व बीमार लोगों की रियायत और उन्हें राहत पहुंचाने का आदेश दिया है इसलिए आम दिनों में भी विशेषकर रमजान जैसे सबसे पवित्रता वाले महीने में इस बात का ध्यान रखें कि लाउडस्पीकर बेजा का इस्तेमाल न करें, केवल आवश्यकता के अनुसार ही प्रयोग करें जिससे किसी को तकलीफ ना पहुंचे। तेज आवाज के कारण इबादत बाधित होती है ।


अध्यक्ष मुफ्ती इकबाल अहमद कासमी ने बताया कि आप का रमजान सही से गुजरे और इस्लामी शरियत के मुताबिक आमाल अंजाम पायें क्योंकि मसाइल से जानकारी के बिना अमल की कोई कीमत ना होगी, हर मौके के मसाइल को जानना जरूरी हैं, चूंकि रमजान के अवसर पर मदरसों में छुट्टी हो जाती है, उलमा व मुफ्ती हजरात सफर पर होते हैं इसलिए हर साल की तरह कुल हिन्द इस्लामिक इल्मी अकादमी और मुहकमा शरियह दारूल कजा ने आपके सहयोग के लिए अल-शरियह हेल्प लाइन शुरू कियी है जिस के नम्बर निम्नलिखित हैं आप सफर में हों या घर पर , मर्द हों या औरत इस हेल्प लाइन से फायदा उठायें और इबादतों को अच्छा व जानदार बनायें।