सरकारी दमन के विरुद्ध लड़ने के लिए चाहिए एक संगठित राजनीतिक मंच
एस. आर. दारापुरी,
राष्ट्रीय अध्यक्ष, आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट
मीडिया में हर रोज सरकार द्वारा ऐसे लोगों के उत्पीड़न की खबरें छपती हैं जो सरकार की ज्यादतियों के खिलाफ आवाज उठाते हैं। उन्हें झूठे मामलों में फंसा कर जेल भेज दिया जाता है। उत्तर प्रदेश इस प्रकार की कार्रवाहियों में सबसे आगे है। यहाँ पर जरा जरा सी बात को लेकर केस दर्ज कर दिए जाते हैं। आम लोगों को शांतिपूर्ण प्रदर्शन अथवा धरना आदि भी नहीं करने दिया जा रहा है। इस प्रकार विरोध की हर बात को दबाया जा रहा है। पूरे प्रदेश में पुलिस के माध्यम से दमन चक्र चलाया जा रहा है।
हाल में उत्तर प्रदेश में कई ऐसे व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है या एफआईआर दर्ज की गई है, जिसमें कई नौकरशाह भी है, जिन्होंने सोशल मीडिया पर सरकार की नीतियों की आलोचना या टिप्पणियाँ की थीं। इनमें अमिताभ ठाकुर की हाल की गिरफ़्तारी सबसे उल्लेखनीय है। यदि यह मान भी लिया जाए कि उनके विरुद्ध कोई आरोप हैं तो भी उन आरोपों की सत्यता के बारे में साक्ष्य एकत्र किए बगैर जल्दबाजी में गिरफ़्तारी और गिरफ़्तारी का तरीका कितना औचित्यपूर्ण कहा जा सकता है? गिरफ़्तारी के संबंध में सुप्रीम कोर्ट कई बार दिशा निर्देश जारी कर चुका है परंतु उनका कोई भी अनुपालन नहीं किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट का यह भी कहना है कि विवेचना में गिरफ़्तारी अंतिम कदम होना चाहिए। उससे पहले आरोप को सिद्ध करने वाले सभी साक्ष्य जुटा लेने चाहिए। गिरफ़्तारी केवल उन परिस्थितियों में की जानी चाहिए जहां पर आरोपित व्यक्ति जांच में सहयोग न कर रहा हो, साक्ष्य को नष्ट करने की संभावना हो अथवा गवाहों को डरा धमका रहा हो और उसके भाग जाने की संभावना हो। परंतु पुलिस का व्यवहार इसके बिल्कुल विपरीत होता है। उसकी पूरी कोशिश बिना पर्याप्त साक्ष्य एकत्र किए आरोपी को गिरफ्तार करने की होती है ताकि उसे बेइज्जत तथा प्रताड़ित किया जा सके।
यह भी देखा गया है कि कुछ सामाजिक कार्यकर्ता अकेले ही सरकार के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश करते हैं जिससे वे सरकार के निशाने पर आ जाते हैं। वे भूल जाते हैं कि वर्तमान सरकारें बहुत शक्तिशाली हैं और उन्हें शासक वर्ग का ठोस समर्थन प्राप्त है। ऐसे में किसी अकेले व्यक्ति द्वारा उसका प्रभावी ढंग से विरोध करना संभव नहीं है। अकेले व्यक्ति को कुचलना सरकार के लिए बहुत आसान काम होता है। अतः ऐसी परिस्थिति में राज्य के दमन का विरोध संगठित राजनीतिक आंदोलन द्वारा ही किया जा सकता है। आंदोलन के लिए जरूरी है कि सरकार की जन विरोधी नीतियों और उसके दमन के खिलाफ ऊपर से हस्तक्षेप किया जाए, सोशल मीडिया में लिखा जाए लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। इसके लिए समाज की सामाजिक वर्गीय ताकतों को गोलबंद करना भी अति आवश्यक है। आइपीएफ का निर्माण इस दिशा में एक कदम है जो ऊपर से दमन के खिलाफ चौतरफा हस्तक्षेप करते हुए जमीनीस्तर पर जन गोलबंदी में लगा हुआ है। आइपीएफ उन सभी ताकतों, समूहों और व्यक्तियों से एकताबद्ध होते हुए ऐसे किसी बड़े राजनीतिक मंच का हिस्सेदार बनना चाहता है जो सरकारी दमन का प्रतिरोध कर सके।