सहमति से बने सभी शारीरिक सम्बन्धो को रेप नहीं कहा जा सकता: हाई कोर्ट
नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि शादी का वादे पर अगर लड़की लंबे समय से आपसी सहमति से जिस्मामी संबंध कायम रखती है तो इसे हमेशा रेप नहीं कहा जा सकता है।
याचिका ख़ारिज
कोर्ट ने एक महिला की याचिका को खारिज करते हुए ये बात कही। महिला ने एक पुरुष पर रेप के आरोप लगाए थे। आरोपों के अनुसार शख्स उस महिला से सहमति से कई महीनों तक संबंध कायम करता रहा।
जबर्दस्ती शारीरिक संबंध से बनता है रेप केस
जस्टिस विभू बाखरू ने कहा कि अगर किसी के साथ शादी का झूठा वादा कर एक बार बहकाया जाता है तो ये अपराध हो सकता है। कोर्ट ने कहा, ‘कुछ मामलों में शादी का वादा केवल जिस्मानी संबंध के लिए किया जा जाता है जबकि दूसरा पक्ष इसके लिए सहमति नहीं रखता है। केवल ऐसे मामलों में जहां शादी का झूठा वादा कर बिना सहमति के जबर्दस्ती शारीरिक संबंध बनाए जाते हैं, वहां भारतीय दंड संहित के सेक्शन 375 के तहत रेप का केस बनता है।’
लम्बे समय तक चलने वाले सम्बन्ध रेप नहीं
एक अंग्रेजी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट ने आगे कहा कि जहां ऐसे रिश्ते लंबे समय तक चलते रहते हैं, उसे इस तरह रेप की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है।
आरोपी को दोषमुक्त किया
इसी के साथ हाई कोर्ट ने एक ट्रायल कोर्ट के फैसले को जारी रखते हुए शख्स को रेप के आरोपों से मुक्त कर दिया। कोर्ट महिला की याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें कहा गया था कि शख्स ने उसे धोखा दिया है और शादी का झूठा वादा कर कई बार संबंध बनाए। साथ ही महिला ने आरोप लगाए थे कि शख्स ने उसे दूसरी महिला के लिए छोड़ दिया।
महिला की इच्छा से बने सम्बन्ध
हाई कोर्ट ने कहा कि ये साफ है कि महिला ने अपनी इच्छा के अनुसार शख्स के साथ शारीरिक संबंध रखे। ये दिखाता है कि महिला के मन में भी उसके लिए चाह थी। हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की बात से भी इत्तेफाक रखा कि महिला से शारीरिक संबंध बनाने की सहमति शादी का वादा देकर नहीं ली गई थी बल्कि बाद में शादी को लेकर बात हुई थी।