दिल्ली वार्ता के बाद भी ऑल इज़ नॉट वेल
-मो. आरिफ़ नगरामी
विगत सात सालों में शायद पहला मौका है जब बीजेपी में अन्दूरूनी सतेह पर जबर्दस्त व्याकुलता और बेचैनी पैदा हुयी है और इस बेचैनी की लहेर आर0एस0एस0 के समन्दर में भी महसूस की जा रही है। खास तौर पर उत्तर प्रदेश और कई दूसरे राज्यों में जो उठा पटख चल रही है उसने आर0एस0एस0 के बडे लीडरों को घोर चिंता और बेचैनी में डाल दिया है। खास कर पश्चिमी बंगाल में बीजेपी की जबर्दस्त और शर्मनाक हार के बाद मुल्क की पांच रियासतों, उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में होने वाले एलेक्शन के मद्देनजर बीजेपी और आर0एस0एस0 हर कदम बहुत फूंक फूंक कर रख रहे है। खासकर उत्तर प्रदेश को लेकर बीजेपी और आर0एस0एस0 दोनों बहुत ज्यादा फिक्रमंद हैं क्योंकि संघ परिवार ने उत्तर प्रदेश मेें जो इन्टरनल चुनावी सर्वे कराया है इसमें बीजेपी को सौ से ज्यादा सीटें मिलती नहीं दिखायी दे रही हैं हालांकि उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने दावा किया है कि आने वाले एलेक्शन में बीजेपी को तीन सौ से ज्यादा सीटें हासिल होंगी। ठीक इसी तरह बंगाल के चुनावी परिणाम आने से पहले तक मोदी और अमित शाह समेत बीजेपी के तमाम बडे लीडर बंगाल में दो सौ से ज्यादा सीटें हासिल करने का दावा जोर शोर से कर रहे थे।
बीजेपी के लाख दावों के दरमियान यह बात बिल्कुल साफ है कि लखनऊ और दिल्ली के बीच स्थितियां अनुकूल नहीं है। वप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और सीएम योगी आदित्य नाथ के बीच सियासी बढ़त की जंग अपने चरम पर है। भले ही आर0एस0एस0 के बड़ों ने योगी जी को दिल्ली बुलाकर उनकी मुलाकात पीएम नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी के सदर, जगत प्रकाश नड्डा से करायी। योगी के दिल्ली पहुंचने के बाद तीनों केंद्रीय नेताओं से मुलाकात के लिये योगी को जो इन्तेजार कराया गया वह योगी को बहुत बुरा लगा है। खैर तीनों लीडरों से मुलाकात के बाद भी दिल्ली और लखनऊ के रिश्तों में पहले जैसी गर्मजोशी दिखायी नहीं दी। भले ही ऊपर से सबकुछ सही दिख रहा है है लेकिन अन्दर ही अन्दर नाराजगी और अविश्वास की लहरें हलचल मचा रही हैं और अगर निकट भविष्य में कोई घटना हो जाय हो जाये तो कोई तअज्जुब नहीं होना चाहिये। हालांकि बीजेपी और आर0एस0एस0 गोदी मीडिया के जरिये उत्तर प्रदेश के अवाम को यह पैगाम देने की कोशिश की जा रही है कि सब कुछ ठीक ठाक हो गया है और अब किसी को किसी से कोई गिला और शिकायत नहीं है लेकिन हकीकत इसके बिल्कुल उलट है क्योंकि प्रदेश के दीप्ती सीएम केशव प्रसाद मौर्या शुरू से ही खफा है। क्योंकि उन्होंने उत्तर प्रदेश बीजेपी के सदर की हैसियत से एलेक्शन में बहुत ज्यादा मेहनत की थी और शान्दार जीत के बाद केशव मौर्या को पूरा यकीन था कि मुख्यमंत्री की कुर्सी उन्हें ही मिलेगी । सभी संभावित उम्मीदवारों को पीछे धकेल योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश की कमान दे दी गयी। पश्चिम बंगाल की हार और फिर बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल राय की टी0एम0सी0 में वापसी ने बीजेपी में खलबली मचा दी है।
पीएम मोदी और एचएम अमित शाह भले ही सियासी चालें चलने में माहिर है। दोनों अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये किसी भी हद तक जा सकते है। लेकिन विभिन्न मोर्चों पर मोदी सरकार की नाकामियों ने इन सर्वे में मोदी जी की लोकप्रियता का ग्राफ खतरनाक हद तक गिर गया है जिसकी वजह से दोनों लीडरों की चिंता सही है। उत्तर प्रदेश मेें योगी की बढती हुयी लोकप्रियता भी दोनों लीडर को हजम नहीं कर पा रहे हैं। सियासी गलियारों में मोदी के बाद योगी को कही जाने वाली बातें अमित शाह को बिल्कुल रास नहीं आ रही है। केंद्र ने अपने ताकत और अहमियत को दिखाने के लिये कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुये जितिन प्रसाद की पार्टी मेें शामिल करने के कार्यक्रम से योगी को दूर रखा। और यहां तक कि योगी को सीएम की हैसियत से इस कार्यक्रम में आमंत्रित करना चाहिये था मगर ऐसा नहीं हुआ और पार्टी में शामिल होने का कार्यक्रम भी लखनऊ के बजाये दिल्ली में रख कर योगी को बताया गया कि सब कुछ बीजेपी आला कमान के हाथ में है। योगी के दो दिवसीय दिल्ली दौरे के बाद हालात ज्यादा ही कुछ तनावभरे हो गये है क्योकि बीजेपी आला कमान ने यह मान लिया है कि आने वाले असेम्बली चुनाव योगी ही के नेतृत्व में लडा जायेगा। फिलहाल मंत्रिमंडल विस्तार का कठिन मामला सामने है क्योंकि जनवरी से एम0एल0सी0 बने मोदी जी के भरोसेमंद पूर्व आई0ए0एस0 अफसर अरविन्द कुमार शर्मा को मोदी जी के कई बार कहने के बावजूद योगी ने कैबिनेट मेें कोई जगह नहीं दी है। विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक मोदी के शर्मा जी को दीप्ती सीएम या फिर गृह मंत्रालय का पोर्टफोलियो दिलवाना चाहते है। मगर योगी दोनों ही पद शर्माजी को नहीं देना चाहते है। वह चाहते हैं कि शर्मा जी को गृह मंत्रालय सौंपने का मतलब कुर्सी से हाथ धोना है। दूसरे तीस साल कांग्रेस में गुजारने और बीजेपी को सेक्युलरिज़्म का दुशमन कहने वाले जितिन प्रसाद को भी कैबिनेट में लेना है। इसके बाद एलेक्शन से पहले वोटों के बंटवारे का सब से मुशकिल चरण है जिससे योगी को गुजरना है और यह चरण बहुत आसान नहीं होगा क्योंकि इस बार मोदी और अमित शाह की जोडी योगी के खिलाफ है यह तो आर0एस0एस0 का आशीर्वाद है कि योगी के ऊपर से कोई बिजली नहीं गिरी है। और अब बीजेपी आला कमान की मजबूरी है कि एलेक्शन से करीब मुख्यमंत्री को बदला नहीं जा सकता है और सब से बडी और अहेम बात यह है कि बीजेपी को सीएम योगी आदित्य नाथ जैसा बडा हिन्दुत्व का चेहरा भी नहीं मिलेगा नहीं तो आला कमान की बात न मानने पर अब तक पत्ता कट चुका होता वैसे भी ध्यान दिया जाये चाहे जिस पार्टी की आला कमान हो किसी और लीडर या नेता की लोकप्रियता को बर्दाश्त नहीं कर पाती है। याद कीजिये कल्याण सिंह बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद वह पूरे मुल्क हीरो और आंखों का तारा बन गये थे और फिर एक दिन वह आया कि वह एलेक्शन में अपने पुत्र के लिये टिकट की गुहार लगाते रहे मगर उन की आवाज किसी ने न सुनी। याद कीजिये कांग्रेस के शासनकाल में जब बहुगुना जी को उत्तर प्रदेश का सीएम बनाया गया था तो उनके स्वागत के लिये चारबाग रेलवे स्टेशन पर एक भीड़ उमड़ पड़ी थी । एक वक्त आया कि बहुगुना जी की लोकप्रियता का ग्राफ आसमान को छूने लगा। यह लोकप्रियता और प्रसिद्धि कांग्रेस आला कमान को पसन्द नहीं आयी और अचानक ही बहुगुणा को दिल्ली वापस बुला लिया गया और फिर बहुगुणा जी लापता हो गये। उन्होंने अपने वजूद को बरकरार रखने के लिये एक सियासी पार्टी भी बनायी और पार्टी चल न सकी। इसी तरह योगी बीजेपी आला कमान की आंखों में कांटे की तरह खटक रहे है। उन पर हर तरफ से हमले किये जा रहे है। देखना यह है कि योगी जी कितने दिनों तक अपने आपको बचा सकते है।