चुनाव न लड़ने की बात अखिलेश का ब्लफ या सियासी दांव
तौक़ीर सिद्दीक़ी
एक ऐसी पार्टी जिसका मुखिया 403 में चार सौ सीटें जीतने के दावे कर रहा हो, अचानक वह चुनाव नहीं लड़ने की बात कहकर पक्ष विपक्ष सबको हैरान कर देता है. जितने मुंह उतनी बातें होने लगती हैं. लोग कहीं की ईंट और कहीं का रोड़ा जोड़कर ईमारत खड़ी करना शुरू कर देते हैं. सपा प्रमुख का यह बयान विरोधी सियासी पार्टियों के लिए किसी झटके से कम नहीं। पिछले दिनों प्रियंका गाँधी ने कई सियासी झटके दिए और बारी अखिलेश की थी.
अखिलेश के इस बयान के पीछे सोच क्या है, यह एक ऐसा सवाल है जो किसी पहेली से कम नहीं। यह तो सभी जानते हैं कि सपा सरकार बनी तो अखिलेश के अलावा कोई और मुख्यमंत्री नहीं बन सकता। और जब अखिलेश ही मुख्यमंत्री पद के इकलौते उम्मीदवार हैं जो चुनाव लड़ने से इंकार क्यों? वह भाजपा को क्यों यह कहने का मौका दे रहे हैं कि जंग शुरू होने से पहले ही राजा मैदान से भाग खड़ा हुआ. यकीनन अपने इस एलान से पहले सपा प्रमुख के ज़हन में यह बात ज़रूर होगी, फिर ऐसा एलान क्यों?
कहा जा रहा है कि अखिलेश चुनाव को ज़्यादा तैयारी से लड़ने जा रहे हैं इसलिए अपने को वह कहीं बांधना नहीं चाहते, बात सही भी लगती है क्योंकि सामने खड़ा दुश्मन धन, बल और छल से बहुत मज़बूत है, फिर अन्य दूसरी ताकतें भी सर उठा रही हैं, लेकिन इस फैसले के पीछे सिर्फ इतना भर है इसपर यकीन थोड़ा मुश्किल है. हाँ अखिलेश के इस एलान पर पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव ज़रूर याद आता है. क्या अखिलेश के दिमाग़ में ममता बनर्जी की हार है, क्या अखिलेश पश्चिम बंगाल की कहानी यूपी में दोहराने नहीं देना चाहते। हालाँकि दोनों राज्यों में फ़र्क़ है. वहां विधान परिषद् नहीं थी लेकिन यूपी में है, मगर मामला तो तब भी चुनाव आयोग के ही हाथ में रहेगा।
शायद अखिलेश के दिमाग़ में कुछ उसी तरह की बातें चल रही हैं, या फिर विरोधी पार्टियों की रणनीति को भटकाने का यह एक प्रयास भी हो सकता है. अखिलेश जानते हैं कि इस चुनाव में उनके लिए वापसी कितनी ज़रूरी है. परिस्थितियां भी काफी अनुकूल दिख रही हैं, सत्ता पलट के लिए प्रदेश में बिलकुल परफेक्ट माहौल है. भाजपा और योगी सरकार का वापस हिन्दू-मुसलमान के एजेंडे पर लौटना यह साबित करता है कि पिछले साढ़े चार साल से ज़्यादा समय में सरकार ने जनता की भलाई का ऐसा कोई काम नहीं किया जिसे लेकर वह चुनाव में उनके पास जांय।
मंहगाई हो, बेरोज़गारी हो, शिक्षा हो या स्वास्थ्य हो. हर क्षेत्र में सरकार की नाकामी उजागर हो चुकी है, यहाँ तक भक्ति की हद तक पहुँच गए समर्थक भी अब कहने लगे हैं कि पानी सिर से ऊंचा हो गया है. समाजवादी पार्टी के लिए इन हालातों को कैश करने का अच्छा मौका है. हो सकता है कि अखिलेश का यह एलान इस मौके को कैश करने की योजना का कोई हिस्सा हो, जो भी होगा समय के साथ सामने आ ही जायेगा मगर सपा मुखिया के इस एलान ने विरोधियों को बाल नोचने पर ज़रूर मजबूर कर दिया है.