अखिलेश को आयी आज़म की याद!
लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
राज्य मुख्यालय लखनऊ।चुनाव की आहट दिखाई देने लगी है इसके साथ ही नेताओं के द्वारा घड़ियाली आँसू बहाने की शुरूआत भी हो गई| सपा के सीईओ अखिलेश यादव को भी आज़म खान की याद आनी शुरू हो गई है| उनका कहना है कि आज़म खान के साथ इतना अन्याय हो रहा है जिसकी आप कल्पना भी नही कर सकते। उनकी गलती सिर्फ़ इतनी है कि उन्होंने एक विश्विद्यालय बनाने की चेष्टा की।जबकि हक़ीक़त यह है कि इसको सपा कंपनी ने भी रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन सपा रोक नहीं पायी अगर राज्यपाल अज़ीज़ क़ुरैशी हस्ताक्षर न करते तो उनका यह ख़्वाब पूरा नहीं होता चलो हो गया तो अब योगी सरकार को निशाने पर लेकर सियासत कर रहे हैं|
आज़म खान की रिहाई के लिए सपा ने अब तक क्या किया है यह सवाल बना हुआ है ?इसका कोई जवाब नही है सपा के मालिक अखिलेश यादव के पास और न उनके समर्थकों के पास यही सच है। हँसी आती है सपा के सीईओ अखिलेश यादव की इस मासूमियत पर, लेकिन मुसलमान मात्र बँधवा मज़दूर है इसकी अक़्ल में नहीं आता| अपने आपको बर्बाद कर लिया चाहे कांग्रेस हो या सपा दोनों ने बहुत नुक़सान दिया है। ख़ैर सपा के मालिक अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा की सरकार से अच्छा और बड़ा झूठ कोई बोल नहीं सकता| सोलर पैनल के बारे में मुख्यमंत्री नहीं जानते 10 हज़ार मेगावाट बिजली बढ़ाने का झूठा वादा कर दिया गाँवों की बिजली काट दी गईं, गाँव में फ्री बिजली क्यों नहीं दे रहे, मिस कॉल करके देश की सबसे बड़ी सरकार बना ली, यूपी की अर्थव्यवस्था तब तक बेहतर नहीं हो सकती जब तक किसानों का भुगतान नहीं होगा| लोगों का घर तोड़ रहे हैं ये लोग लेकिन खुद का नक्शा कब पास हुआ नहीं बताएंगे| सपा किसान बिल का विरोध करेगी लेकिन सिर्फ़ ट्विटर पर सड़क पर नही।
इस सरकार के लोग आपस में एक दूसरे पर आरोप लगाते हैं, ये सरकार किसी को भी फँसा कर जेल भेज सकती है।सपा के सीईओ अखिलेश यादव आया राम गया राम की नीति पर चलने वाले नेताओं जिनको लगता है सपा की सरकार आने वाली है उनको सपा कंपनी की सदस्यता दिलाने के अवसर पर बोल रहे थे।सपा कंपनी में शामिल होने वालों में चौधरी बृजेन्द्र सिंह पूर्व सांसद अलीगढ़ काँग्रेस छोड़ सपा में शामिल। जमीरउल्लाह खान पूर्व विधायक कोल अलीगढ़ भी सपा में हुए शामिल, सहारनपुर के पहले बसपा फिर नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी के साथ कांग्रेस में शामिल होने वाले चौधरी लियाकत पूर्व अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष सपा में शामिल। प्रदीप शर्मा और इंद्रदेव चौहान भी सपा में शामिल। अब्दुल रशीद खान भी सपा में शामिल ,सपा सीईओ अखिलेश यादव की मौजूदगी में सपा की ली सदस्यता। नेताओं को लग रहा है कि सपा की सरकार आने जा रही है जिसके चलते यह सब हो रहा है जबकि हक़ीक़त कुछ और ही है अभी तक ऐसा कुछ नज़र नही आ रहा है कि योगी सरकार या मोदी की भाजपा की सरकार यूपी से जा रही है बहुत मुश्किल है यूपी से 2022 में भाजपा की सरकार का जाना| ख़ैर यह तो आने वाले दिनों में और साफ़ हो जाएगा कि क्या होने जा रहा है। बात करते हैं सपा की कि वह किस बुनियाद पर सरकार में आने का सपना संजोये हुए है अपनी जाति यादव वोटबैंक पर जिसने पिछले दो चुनाव से सपा को वोट न देकर मोदी की भाजपा के साथ जाना गवारा किया| क्या वह इस बार 2022 के चुनाव में मोदी की भाजपा के साथ नही जाएगा इस पर यक़ीन नहीं होता। रही बात 22% मुसलमान की, क्या वह असदुद्दीन ओवैसी के साथ जाएगा या कांग्रेस के साथ जाएगा या फिर सपा के पल्ले पर सियासी नीयत बाँधेगा इस पर भी अभी शंकाओं के बादल मंडरा रहे हैं, अगर मुसलमान ने बिहार वाला फ़ैसला लिया जिसके ज़्यादा चांस बनते नज़र आ रहे है तो सपा का सरकार बनाने का ख़्वाब असदुद्दीन ओवैसी के बिना पूरा नही होगा यह बात यकीनी तौर पर कही जा सकती है। ओवैसी से तथाकथित सेकुलर दल गठबंधन से बचते हैं उसकी बहुत बड़ी वजह यह मानी जाती है कि ओवैसी से समझौता करने के बाद मुसलमानों को अपना नेता मिल जाएगा जिसके बाद इनकी सियासी दुकान बंद हो जाएगी|
जैसे सपा की ही बात करते हैं मुसलमानों के हट जाने के बाद सपा ज़ीरो पर आ जाती है लोकदल की तरह लेकिन मुसलमान उसके साथ अगर रहता है वह मज़बूत मानी जाती है, मुसलमान वोटबैंक की वजह से ही बसपा ने सपा के साथ लोकसभा चुनाव में समझौता किया था क्योंकि माना जाता कि मुसलमान सपा के पल्ले पर सियासी नमाज़ पढ़ता है अगर सिर्फ़ यादव ही होते तो क्या बसपा सपा से समझौता करती ? मुसलमानों की वजह से प्रदेश के नेता सपा में अपना सियासी भविष्य सुरक्षित महसूस कर उससे अपना नाता जोड़ रहे हैं, यह बात अलग है जीतने के बाद वह बग़ावत कर मोदी की भाजपा में ही चले जाए जैसे गए भी हैं | पूर्व प्रधानमंत्री स्व चन्द्रशेखर के पुत्र सपा सांसद राज्यसभा नीरज शेखर, सपा से एमएलसी सरोजिनी अग्रवाल ,सपा से राज्यसभा सांसद सुरेन्द्र नागर , सपा से राज्यसभा सांसद एवं कोषाध्यक्ष संजय सेठ व सपा से एमएलसी चौधरी वीरेन्द्र सिंह आदि जिन्होंने तलाक़ व 370 को पास करवाने में मोदी सरकार की मदद की इसी तरह आगे भी जा सकते हैं| जीतेंगे सेकुलर वोटबैंक से, मौक़ा लगने पर जा मिलते हैं साम्प्रदायिक दलों से | आगे ऐसा नही होगा इसकी किसी के पास कोई गारंटी नही है।यह सब होने के बाद सेकुलर वोट अपने आपको ठगा सा महसूस करता है उसमें सबसे बड़ी तादाद मुसलमानों की मानी जाती है इसलिए असदुद्दीन ओवैसी की पैरवी करने वाले मुसलमानों का मानना है कि जब हारना ही है तो असदुद्दीन ओवैसी को ही वोट देकर हारा जाए या जीता जाए कम से कम वह साम्प्रदायिक दलों में तो नही जाएगा। देखते हैं क्या होता है यह तो आगे-आगे सियासी तस्वीर साफ़ होगी फ़िलहाल यूपी की सियासत का पारा गर्म है जिसके और गर्म होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।