धर्मस्थलों को बचाने के लिए AIMPLB ने बनाई योजना, कानूनी लड़ाई में करेगी मदद
राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर मोर्चा खोलने की तैयारी भी
टीम इंस्टेंटखबर
ज्ञानवापी मस्जिद को बचाने के लिए आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कानूनी लड़ाई लड़ने से लेकर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर मोर्चा खोलने की तैयारी में है. ज्ञानवापी मस्जिद मामले को लेकर मंगलवार को मौलाना राबे हसन नदवी के नेतृत्व में कल रात एक आपातकाली बैठक हुुई. इस बैठक में बोर्ड से जुड़े देशभर के 45 सदस्य शामिल हुए थे, जिसमें तय हुआ कि बाबरी मस्जिद की तरह देश की दूसरी मस्जिदों को हाथ से नहीं जाने देंगे, वो चाहे काशी की ज्ञानवापी मस्जिद हो या फिर मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद. इन तमाम मस्जिदों को बचाने के लिए AIMPLB मुस्लिम पक्ष के वकीलों को कानूनी मदद तो करेगा ही साथ में सरकार पर भी दबाव बनाने का काम करेगा.
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तय किया है कि काशी के ज्ञानवापी मस्जिद से लेकर जिन भी मुस्लिम धार्मिक स्थल पर विवाद खड़े हो रहे हैं, उनमें से किसी भी मामले में सीधे तौर पर पक्षकार नहीं बनेगी. मस्लिम पक्ष के वकीलों के साथ पूरी शिद्दत से खड़ी रहेगा और उन्हें कानूनी लड़ाई में मदद भी करेगा. निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में कानूनी लड़ाई के लिए मुस्लिम पक्ष को मदद के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक लीगल टीम बनाने का फैसला किया है, जिसमें देश के एक से बढ़कर एक वकीलों का पैनल होगा. इसके अलावा पूरे मामले में कानूनी सलाह के लिए एक पूर्व जस्टिस के अगुवाई में पांच सदस्यीय कमेटी बनाई गई है.
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की यह लीगल टीम ज्ञानवापी मस्जिद से लेकर मथुरा, दिल्ली के कुतुबमीनार और जामा मस्जिद के लिए जो भी मुस्लिम पक्षकार है, उनके लिए इन धार्मिक स्थलों से जुड़े हुए तथ्यों को जुटाने से लेकर कानूनी मदद के लिए हरसंभव कदम उठाएगी. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के बड़े से बड़े वकील को हायर करेगी और उन्हीं के सलाह पर कानूनी लड़ाई लड़ेगी.
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने 1991 के पूजा स्थल अधिनियम को प्रोटेक्ट करने के लिए भी रणनीति बनाई है. बोर्ड के सदस्यों का एक प्रतिनिधि मंडल जल्द ही राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलकर 1991 के पूजा स्थल अधिनियम को प्रोटेक्ट करने की गुहार लगाएगा. इसके अलावा केंद्र सरकार के साथ-साथ अन्य राजनीतिक दलों का रुख भी इस मुद्दे पर जानने की कोशिश करेगा.
बोर्ड का मानना है कि 1991 का पूजा स्थल कानून कहता है कि पूजा स्थलों की जो स्थिति 15 अगस्त 1947 में थी वही रहेगी. बोर्ड का मानन है कि इसके बाद भी एक के बाद एक मुस्लिम धर्म स्थलों पर निचली अदालतें, क्यों उसमें दखल दे रही हैं. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के लोगों का भी मत है कि 1991 के एक्ट के खिलाफ है. ऐसे में संविधान और कानून के बचाने के लिए राष्ट्रपति से ही आखिरी उम्मीद है.
इसके अलावा बोर्ड ने तय किया गया कि धार्मिक स्थलों को लेकर जो भी विवाद है, उन पर आवाम को सही जानकारी पहुंचाने के लिए छोटी-छोटी पुस्तिका, किताबों का सहारा लेगी. बोर्ड ने माना कि लोगों को सही तथ्यों से अवगत कराया जाए ताकि लोग गुमराह न हो सकें.
बैठक में एक टीम गठित की गई है जो अपने स्तर पर इन विवादित स्थलों का दस्तावेजी प्रमाण तैयार करेगी है, ताकि कोर्ट के साथ सरकार तथा समाज के सामने इनके वजूद को जोरदार तरीके से रखी जा सकें. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का प्लान है कि इसे समाज को लोगों का समर्थन भी उन्हें मिलेगा, जो धार्मक स्थलों को बचाने लड़ाई में एक ताकत बनेगा.
मीडिया में पक्ष रखने के लिए बोर्ड के सदस्यों की तीन सदस्यीय कमेटी गठित की गई है. ये टीम रोजाना की गतिविधियों पर नजर रखेंगी और उस आधार पर प्रेस नोट तैयार करेगी. मीडिया से बात करने के लिए इसी टीम को अधिकृत किया गया है, जिसकी ज़िम्मेदारी कासिम रसूल इलियास और कमाल फारूकी को सौंपी गई है.
बोर्ड की मीटिंग में सर्वे के दौरान ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग मिलने के दावे वाले स्थान को सील करने के कोर्ट के आदेश को गलत ठहराया गया. साथ ही कहा गया कि वह इन मामलों में गंभीरता से आगे बढ़ाएगा. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि इस तरह से अफवाह के जरिए अदालत का मिस यूज किया जा रहा है. ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे की न तो अभी कोई रिपोर्ट कोर्ट में दी गई है और न ही कोई बात रखी गई है. अफवाह की बुनियाद पर शिवलिंग मिलने की बात कही जा रही है, जो झूठ है.