जल संरक्षण – हमारी आवश्यकता
आशीष कुमार श्रीवास्तव
कन्हैया, वन्दे मातरम , अनुपम खेर और भारत माता के शोर मे हम प्रायः मानवता और राष्ट्रभक्ति के सबसे मूल तत्व की उपेक्षा कर जाते है | जिहाद ,फतवा और ओवेसी के चक्कर में हम किसी भी मजहब की सबसे जरुरी बात को नजरंदाज करते है और वह है पानी | आज हम 21 वी सदी वालो को 16 वी सदी की उस सीख की सबसे अधिक आवश्कता है, जब कहा गया था कि –
रहिमन पानी रखिये, बिन पानी सब सुन |
पानी गए ना उबरे, मोती मानुष चुन ||
क्या हमारी राष्ट्र के प्रति और मजहब परस्ती सिर्फ कृतिम मुददों पर ऑंखें तरेरने भर से पूरी हो जाती है | क्या किसी भी राष्ट्र या मजहब का अस्तित्व बगैर पानी के संभव है | अगर हम रोज के अख़बार उठाये ( इलेक्ट्रॉनिक मीडिया – सामाजिक मुद्दों पर प्रायः खामोश रहती है क्योंकि हम राजनितिक मुद्दों पर ज्यादा मजे लेते है | ) तो पाएंगे कि पिछले कुछ वर्षो से हमारे देश मैंस्तिथि बनी हुई है | कही कर्णाटक और तमिलनाडु कावेरी के लिए मल्ल युद्ध कर रहे है तो कही दिल्ली हरियाणा के साथ जोर-अजमाइश पर उतारू है | कही विदर्भ मैं एक बाल्टी पानी के लिए गोलियां चल रही है तो पुरे भारत मैं सूखे की वजह से किसान आत्महत्या कर रहे है | ट्रेनों से पानी पहुचने की नौबत आ गयी | हमें क्या, हम बड़ी आसानी से इसके लिए प्रशासनिक और राजनितिक प्रणाली के ऊपर दोष मढ़ पानी की दिन रात बरबादी मैं निर्विकार और निष्काम भाव से लगे रहते है | जबकि साच यह है की इस देश में जिम्मेदार अधकचरी मानसिकता वाले पढ़े-लिखे-गंवार नागरिक है | आइये पानी ही की समस्या पर इसे लेकर सिद्ध करते है-
एक अनुमान के अनुसार , वर्तमान में गोरखपुर नगर-निगम में एक लाख R.O सिस्टम घरों मैं लगे है, इस संख्या मैं व्यावसायिक R .O या पेयजल सुविधा उपलब्ध कराने वाले तंत्र शामिल नहीं है नहीं तो यह संख्या लगभग दोगुनी हो जायेंगी |
इस R.O सिस्टम के काम करने के तरीके में यह औसत है कि हमारे पीने लायक 1 लीटर पानी निकालने के लिए यह करीब 4 लीटर पानी को दूषित पानी के रूप मैं फेकता है जिसे हम एक अन्य पाइप के रूप में अपने वॉशबेसिन आदि के माध्यम से सीधे नालियों मैं बहा देते है | अर्तःत हम 1 लीटर पेयजल के लिए औसतन 4 लीटर पानी अतरिक्त रूप से बहा देते है |
अब इस आंकड़ो में कुछ और रोचक तथ्य जोड़ देते है- राष्ट्रीय जनसँख्या प्रतिदर्श के अनुसार प्रति परिवार 4.3 सदस्य होते है और प्रति परिवार प्रति दिन पेयजल की आवश्यकता 20 litre है | अर्थात इस न्यूनतम 20 लीटर पानी के लिए हमें अतिरिक्त 80 लीटर पानी प्रति परिवार प्रतिदिन बहाना होता है | अगर हम 1 लाख R.O वाले परिवारों को इसमें शामिल करे तो औसतन केवल गोरखपुर शहर में 80 लाख लीटर प्रति पानी प्रतिदिन बेकार बहा दिया जाता है जो करीब 800 घन मीटर होगा अर्थात 2,92,000 घन मीटर प्रति वर्ष |
सरकारी आंकड़ो के अनुसार 2050 तक प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 1235 घन मीटर होने की सम्भावना है | जबकि वर्तमान में हम औसतन प्रति वर्ष 73,000 घन मीटर पानी प्रति वर्ष हम नालो मैं बर्बाद कर देते है इन आंकड़ो को ऐसे समझिये कि 2050 तक करीब 25% भारतीयों को पेयजल उपलब्ध ही नहीं होगा और जिनको होगा भी उनको वर्तमान देशी घी के मूल्य पर | में तो आश्चर्यचकित हु कि आप में से बहुतो के घर अब दूसरी पीढ़ी ही जन्म नहीं लेगी और अगर लेगी भी तो गंभीर बीमारियों के साथ | फिर कैसे आपका वंश आगे बढेगा , कैसे विभाजन दंगा परस्ती वाली राजनीती के नारे होंगे और कौन जिहाद करेगा भाई ?
अब घड़ी-घड़ी इस देश के नेताओ को कोसने वालों आप कहेंगे की हम क्या कर सकते है –अरे भैया | आप ही कर सकते है – बस थोडा सा अपनी आदत में बदलाव करके –
1, R.O से बहने वाले पानी को पाइप के रास्ते सीधे वॉशबेसिन में न गिरा कर किसी तब या बाल्टी में रोक ले और इस पानी से आप बागवानी या घर की साफ़-सफाई में इस्तेमाल में ला सकते है या कूलर मैं इस्तेमाल कर सकते है | अन्यथा इन्ही कामो के लिए आपको बिजली खर्च कर पानी निकलना होता है और बिल भरते समय माथे पर पानी चमकता है | इस तरीके से आपके बिजली के बिल में 10% तक की कमी आयेगी |
2, अपनी पानी की टंकियो मैं सेंसर लगवाए (कीमत करीब 1500 रु ) जिससे टंकी भरते ही मोटर अपने आप बंद हो जायेगा | जिससे पानी के साथ साथ बिजली की भी बचत होगी |
3, बर्तन या गाड़ियाँ सीधे पाइप या नल से न धुले इसमें पानी अधिक व्यर्थ होता है पहले से पानी भरकर तब धुले | यही काम नहाने के समय भी करे | सीधे शावर मैं न नहाये | ऐसे पानी की 10गुनी बर्बादी होती है |
4, टॉयलेट का फ्लश औसतन 12 से 15 लीटर पानी एक बार में बहाता है | इसलिए लघुशंका के बाद पानी मग से डालिये | प्रति परिवार प्रतिदिन करीब 100 से 150 लीटर पानी बचेगा |
5, घरो में वर्षा का पानी सहेजने के लिए सोखता बनवाए जिससे की भू-जल स्तर मैं सुधार होगा |
6, प्रति सदस्य एक पेड़ जरुर लगवाये | जितने अधिक संख्या में जिस क्षेत्र मैं पेड़ होंगे उस क्षेत्र में वर्षा होने की सम्भावना उतनी अधिक बढ़ जाती है |
नहीं तो आप स्वयं अपने बुढ़ापे और बच्चो की बर्बादी का कारण होंगे | हम किसी ऐसे दिन की कल्पना नहीं करना चाहेंगे कि जिस तरह से आज देश के कई हिस्सों मैं लोगो को सिर्फ पानी की कमी की वजह से अपना सब कुछ छोड़ कर जाना पड़ रहा है हमें भी उस तकलीफ से गुजरना पड़े इसलिए सिर्फ अपने लिए या अपने बच्चो के लिए ही नहीं बल्कि समाज व देश के लिए भी ये जरुरी है की हम पानी बचाये | इसलिए पुनः में इस लेख का अंत उन्ही पंक्तियों से कर रहा हु जिससे इसका आरंभ किया था |
रहिमन पानी रखिये ,बिन पानी सब सुन |
पानी गए ना उबरे, मोती मानुष चुन ||