‘द जंगल बुक’ : अद्भुत, अनुपम, अद्वितीय
नई दिल्ली : द जंगल बुक फिल्म उन लोगों को बेहद खास है, जिन्होंने 90 के दशक में अपना बचपन गुजारा और दूरदर्शन में जंगल बुक के साक्षी रहे। उनका बचपन एक फिर लौट आया है। नब्बे के दशक में अपना बचपन व्यतीत करने वाले भारतीय बच्चों के मन में ‘द जंगलबुक’ की यादें चिरस्थायी हैं और निर्देशक जोन फेवरियू ने इस चिरकालिक स्मृति को एक विस्तृत पटल पर पेश कर उसे अविस्मरणीय स्वरूप प्रदान किया है।
लेखक रूडयार्ड किपलिंग की मोगली की कहानियों पर आधारित डिज्नी ने एक एनिमेटेड फिल्म 1967 में बनाई थी जिसे अब एक नए रूप में डिज्नी पेश कर रहा है।
इस फिल्म में नवोदित अभिनेता नील सेठी ने मोगली का किरदार निभाया है और फिल्म में वह अकेले मानवीय कलाकार हैं बाकि अन्य सभी कलाकार कंप्यूटर ग्राफिक्स से बनाए गए हैं।
लगभग 107 मिनट लंबी इस फिल्म का कथानक इस तरह गढ़ा गया है कि आपको सांस लेने की भी फुरसत नहीं मिलेगी। भालू ‘बालू’ की आवाज को बिल मुरे और हिंदी में इरफान खान ने सजाया है और मोगली के साथ मानवीय बस्ती तक की उसकी यात्रा पर्दे पर रोमांचक प्रतीत होती है।
भारत के दर्शकों के लिए यह फिल्म एक अलग स्थान रखती है इसलिए इसे भारत में अमेरिका से एक हफ्ते पहले रिलीज किया गया है और इसके हिंदी संस्करण में प्रियंका चोपड़ा, इरफान, ओम पुरी, नाना पाटेकर और शेफाली शाह ने किरदारों को अपनी आवाज दी है। फेवरियू के निर्देशन में बनी यह फिल्म सभी तरह की सूचियों में उपर रहेगी ऐसी उम्मीद की जा सकती है। चूंकि फिल्म की कहानी से लोग भलीभांति परिचित हैं इसलिए फिल्म में पूरा जोर ‘क्या होगा’ के बजाय ‘कैसे होगा’ पर दिया गया है।
मोगली के किरदार में नील सेठी काफी जंचे हैं। फिल्म में अकेले मानवीय किरदार होते हुए भी उन्होंने भावनाओं को पर्दे पर बेहतर रूप में पेश किया है। फिल्म के स्पेशल इफैक्ट्स भी अच्छे हैं।
बच्चों की छुट्टियां शुरू होने वाली हैं। ऐसे में उनके लिए यह एक बेहद यादगार फिल्म होगी और नब्बे के दशक के बच्चे अब माता-पिता की भूमिका में हैं और इसे देखकर वे भी अपना बीता बचपन जरूर याद करना चाहेंगे।