पहचान के संकट से गुजर रही है घरेलू कामगार महिलाएॅ: रिचा चन्द्रान
घरेलू कामगार महिलाएॅ-“स्थिति, चुनौतियाॅ व भविष्य की राह“ विषय पर सम्मेलन आयोजित
लखनऊ। असंगठित क्षेत्र में कार्य कर रही घरेलू कामगार महिलाएं समाज के एक महत्वपूर्ण घटक होने के बावजूद अभी भी पहचान के संकट से गुजर रही है जबकि विभिन्न अनुमानों के अनुसार हमारे देश में इनकी संख्या करोडा़े में है। रोजगार की दृष्टि से यह तेजी से बढ़ता हुआ क्षे़त्र होने के बावजूद इन घरेलू कामगार महिलाओं की सुरक्षा व कल्याण के लिए कोई कानूनी प्रावधान नही है जिसकी वजह से इन महिलाओं का हमेशा शोषण होता है। इसके लिए सरकार के साथ- साथ समाज के हर तपके के लोगों को आवज बुलंद करना होगा।
उक्त विचार सुश्री रिचा चन्द्रान ने अंकुर युवा चेतना शिविर एवं इण्डो ग्लोबल सोशल सर्विस सोेसाइटी,नईदिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में जयशंकर प्रसाद सभागार में आयोजित उत्तर प्रदेश में घरेलू कामगार महिलाएॅ-“स्थिति, चुनौतियाॅ व भविष्य की राह“ सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए ब्यक्त किया। उन्होने बताया कि हमारे देश में लगभग 9 करोड़ घरेलू कामगार महिलाएं हंै जबकि एन0एस0एस0ओ0 के 2004-2005 के 61वें चरण के सर्वे के अनुसार देश में लगभग 4.75 करोड़ घरेलू कामगार महिलाएं हंै। घरेेलू कामगारों में 90 प्रतिशत महिलाएं और बच्चे हैं जो 12-75 वर्ष की उम्र की हैं और इनमें 25 प्रतिशत 14 साल से भी कम आयु के हैं। एन0एस0एस0ओ0 के 2005 के सर्वेक्षण के मुताबिक 4.75 करोड़ महिलाएं घरेेलू कामगार है तथा यह क्षेत्र रोज़गार की दृष्टि से शहरी क्षेत्रों का सबसे बड़ा क्षेत्र है। शहरी भारत की महिला कामगारों का 12 प्रतिशत 3.05 करोड़ घरेेलू कामगार महिलाओं से है। यह क्षेत्र रोजगार के लिए तेजी़ से बढ़ोत्तरी करने वाला क्षेत्र है जो 1990-2000 से अब तक 222 प्रतिशत की वृ़द्धि दर्ज करा चुका है। एन0सी0ई0यू0एस0 (2007) के अनुसार 84 प्रतिशत से ज्यादा घरेेलू कामगार न्यूनतम मजदूरी से कम वेतन पाती हैं।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए संस्था सचिव खुशवंत सिंह ने कहा कि लखनऊ शहर की मलिन बस्तियों में रहने वाली कामकाजी महिलाओं के साथ संस्था सघन रुप से काम कर रही है। निश्चित तौर में इन महिलाओं में अपने अधिकार के प्रति चेतना आई है किन्तु सुरक्षा व कल्याण के लिए कोई कानूनी प्रावधान व नीति न होने से वे ठगी सी रह जाती है।
वही अपने सम्बोधन में नेशनल डोमेस्टिक वर्कर्स मुवमेंट के प्रेम जी ने कहा कि भारत में कुल श्रम शक्ति का लगभग 96 प्रतिशत हिस्सा असंगठित क्षे़त्र में कार्यरत है जिसमें महिलाओं की संख्या शहरी क्षेत्र में सवाघिक है। जो चाहरदीवरी के भीतर काम करती है उनके लिए ना तो कोई कानून है और ना ही कोई नीति निर्धारण की गयी है जिससे वे शोषित व उपेक्षा का दंश झोल रही है। घरेलू कामगार यूनियन कानपुर के मोनासुर ने अपने सम्बोधन में भारत सरकार के घरेेलू कामगारों को असंगठित कामगार सुरक्षा अधिनियम 2008 में शामिल प्रावधानों का जीक्र करते हुए कहा कि उसे आज तक अमली जामा न पहना कर मजदूरो के साथ सरकारें क्रूर मजाक करती आ रही हैै।
उपश्रमायुक्त विजय सिंह ने सरकार द्वारा जदूरों के लिए किये जा रहे प्रयासों को बताया उन्होने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार तमाम योजनाओं के माध्यम से प्रदेश में मजदूरों को उनके हक दिलाने का प्रयास कर रही है उन्होने बताया कि सरकार द्वारा उ0प्र0 भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड का गठन कर उनकी समस्याओं को चिन्हित निदान किया जा रहा है।उन्होने घरेलू कामगार महिलाओं को ले कर कहा कि आप लोगों का जो सुझाव होगा उस पर पहल किया जायेगा।
उ0प्र0 भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड के सदस्य राजनाथ सिंह ने बताया कि प्रदेश सरकार के दिशा निर्देशन में बोर्ड का गठन किया गया है जो पूरी तरह श्रमिको के हक में काम कर रहा है।उन्होने अपने सम्बोधन में कहा कि यह सरकार मजदूरों गरीबो के हक के लिए प्रयास करती आयी है और करती रहेगी।श्री ंिसंह ने कहा कि बोर्ड घरेलू कामगार महिलाओं के लिए निर्धारित मानक को पूरा करने का हर सम्भव प्रयास करेगा। श्री सिंह ने कहा कि निश्चित तौर पर गैर सरकारी संगठनों का प्रयास सराहनीय है जो इस ज्वलंत मुद्दे को उठाने के लिए निरंतर प्रयास कर रहे है। अपने सम्बोधन में एडवा के मधु गर्ग ने कहा कि निश्चित ही घरेलू कामगार महिलाएं सरकार व समाज के आइने में नही दिखती किन्तु उनके हक दिलाने के लिए प्रदेश सरकार को कारगर कदम उठाने होगें।
असंगठित कामगार महिलाओं के मुद्दे पर कार्यकर रही निर्मल निकेतन नई दिल्ली के प्रमोद पटेल ने कहा कि सभी तरह के पेशों में कार्यरत असंगठित श्रम शक्ति की पहचान कर केन्द्र सरकार द्वारा सामाजिक सुरक्षा कानून में निहित प्राविधानों को जनपक्षीय कानून का स्वरुप देने पर बल दिया।
कार्यक्रम में आयी कामकाजी महिलाओं ने भी अपनी -अपनी बात रखी । इस क्रम में फूलमति ने बताया कि काम के अनंुसार मजदूरी नही मिलती बीमार पडने पर पैसा काट लिया जाता है। पिंकी ने अपनी बात करते हुए बताया कि जिन घरों में मै पहले काम करती थी वहां के लोगों को पता चला कि हम बैठक में जाते है तो काम से हटा दिया गया बाद कुछ लोगो ने बुला कर काम दिया। वही रेशमा ने बताया कि घरों में चैका बर्तन साफ सफाई का काम करती है जब कभी बच्चे या खुद बीमार पड़ती है तो उन दिनो की मजदूरी नही मिलती बताया जाता है कि तुम दैनिक मजदूर हो काम करो तो पैसा लो। कार्यक्रम का संचालन अंकुर युवा चेतना समिति के निदेशक ज्योति खरे ने किया