सामाजिक संगठनों के सामने छलका पट्टी देहलिया गांव के लोगों का दर्द
नृशंस आपराधिक अग्निकांड को प्रशासन दुर्घटना बताकर दोषियों को बचाने की फिराक में
सीतापुर। सीतापुर के लहरपुर थाने के पट्टी देहलिया गांव में हुई आगजनी के पीडि़तों से राजनीतिक व सामाजिक संगठनों के लोग मिले। रिहाई मंच, सोशलिस्ट पाटी (इंडिया), भाकपा माले (रेड स्टार), इंसाफ अभियान, पिछड़ा समाज महासभा, संगतिन किसान मजदूर संगठन के नेताओं से पीडि़तों ने अपने दर्द बयान किए।
दौरे के बाद जारी प्रेस विज्ञप्ति में नेताओं ने आरोप लगाया कि प्रधानी चुनाव में दबंग प्रत्याशी को वोट न देने के कारण दबंगों ने कहार समाज के 16 घरों को जलाकर पूरी तरह राख कर दिया जिससे 35 से अधिक परिवार प्रभावित हैं। जिसमें रमाकांत व रजनी देवी की 3 वर्षीय बेटी प्रियांशी व सियाराम व सुनीता देवी का 8 वर्षीय बेटा मुकेश जलकर राख हो गए। इस अग्निकांड में किशोरी गंभीर रूप से जल गए तो वहीं बस्ती के अधिकांश महिला व पुरुष झुलस गए। 12 मवेशी भी जलकर मर गए और लाखों रुपए की संपत्ती का नुकसान हुआ।
बस्ती के रामपाल ने बताया कि जब कमलेश वर्मा उनके घरों के पास में आग लगा रहा था तो उन लोगों ने मना किया पर उसने मना करने पर कहा कि अगर तुम लोगों का घर जल जाएगा तो 25-25 हजार रुपए और पक्का मकान मिल जाएगा। इस पर बस्ती के और भी महिला-पुरुषों ने उसका विरोध किया लेकिन उसने आग लगा दी। ग्रामीणों ने बताया कि बस्ती के मेड़ीलाल के छप्पर में उसने आकर खुद आग लगाई जिसके चपेट में पूरी बस्ती आ गई और उसके बाद वह ग्राम प्रधान के घर पर भग गया। ग्रामीणों का आरोप है कि इतनी बड़ी घटना के बावजूद ग्राम प्रधान देखने तक नहीं आईं। रामपाल समेत अनेक ग्रामीणों ने कहा कि उन लोगों ने वर्तमान प्रधान को वोट नहीं दिया था जिसके बाद प्रधान के गंुडों ने उन लोगों से कहा था कि तुम्हारी झोपडि़यों को जला देंगे।
एफआईआर दर्ज कराने गए पप्पू ने बताया कि घटना के बाद वे जब थाने जाकर कमलेश वर्मा द्वारा लगाई गई बस्ती में आग पर एफआईआर दर्ज कराने की बात कोतवाल से कही तो उन्होंने उसे डांटा और कहा कि ऐसा एफआईआर दर्ज कराओगे तो तुम लोगों को कुछ नहीं मिलेगा। जिसपर उसने कहा कि हमारे दो-दो छोटे-छोटे बच्चे इस आग में जल गए और हम उसके दोषी कमलेश वर्मा पर क्यों न एफआईआर दर्ज कराएं। बहुत मुश्किल से बाद में एफआईआर दर्ज हुआ पर आज तक कमलेश की गिरफ्तारी नहीं हुई।
दौरे पर गए नेताओं ने आश्चर्य व्यक्त किया कि इतनी बड़ी आपराधिक घटना के बावजूद ग्रामीणों की सुरक्षा के लिए एक पुलिस कर्मी का भी मौजूद न रहना दर्शाता है कि पीडि़तों की सुरक्षा की चिंता प्रशासन को बिल्कुल नहीं है और वह दबंगों को दोषियों पर दबाव बना ले जाने की खुली छूट देना चाहती है। प्रशासन की इस मंशा की तस्दीक इस तथ्य से भी होती है जब नेताओं ने आला अधिकारियों से बात की तो उनका जोर इसी पर था कि आग लगने की घटना दुर्घटनावश हुई है उसे किसी ने जानबूझकर नहीं अंजाम दिया। आला अधिकारी यह भी कहते पाए गए कि अगर पीडि़तों ने दुर्घटनावश आग लगने की रिपोर्ट लिखवाई होती तो उन्हें मुआवजा मिल जाता।
नेताओं ने आरोप लगाया कि इस नृशंस आपराधिक अग्निकांड जिसमें दो मासूम बच्चे जिंदा जलकर मर गए को पुलिस प्रशासन दुर्घटना के बतौर प्रचारित कर गुनहगारों को बचा रहा है। इस पूरे मामले पर जल्द ही विस्तृत रिपोर्ट लाई जाएगी। नेताओं ने मांग की कि पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए व प्रधान की षडयंत्रकारी भूमिका को देखते हुए उसे भी आरोपी बनाया जाए व उसे प्रधानपद से निलम्बित किया जाए, जिनके घर जले हैं उन्हें सरकारी आवास योजना के तहत पक्के मकान आवंटित किए जाएं व मृतकों के परिजनों को 50-50 लाख रूपए मुआवजा दिया जाए, प्रशासन तत्काल अंतरिम सहायता के बतौर खाद्य सामग्री व कपड़े और बिस्तर उपलब्ध कराए व पीडि़तों की सुरक्षा की गारंटी करे।