उर्दू लेखकों को मोदी सरकार फरमान
बताना होगा किताब सरकार या देश विरोधी तो नहीं
नई दिल्ली: केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले उर्दू भाषा के प्रचार के लिए राष्ट्रीय समिति (एनसीपीयूएल) ने एक फॉर्म जारी किया है, जिसमें लेखकों को हर साल इस बात की घोषणा करनी होगी कि उनकी किताब सरकार या देश के खिलाफ नहीं है। अंग्रेजी समाचार पत्र में छपी खबर के अनुसार, पिछले कुछ महीनों से कई लेखकों और संपादकों को ऐसे फॉर्म मिले हैं, जिसमें उनको दो गवाहों के हस्ताक्षर भी उपलब्ध कराने को कहा गया है।
वह फॉर्म उर्दू में लिखा गया है। जिसमें लेखक को बताना है कि एनसीपीयूएल के आर्थिक सहायता योजना के तहत अत्यधिक मात्रा में उनकी जिन किताबों या पत्रिकाओं को खरीदने का जो निर्णय लिया गया है, उसमें सरकार की नीतियों या राष्ट्रहित के खिलाफ कुछ भी नहीं है, और न ही उससे देश के विभिन्न समुदायों के बीच विद्वेष फैलता है, और न ही उसे सरकारी या गैर सरकारी संस्थाओं से आर्थिक मदद प्राप्त है।
उसमें चेताया गया है कि अगर घोषणा पत्र में किए गए दावे गलत पाए जाते हैं तो एनसीपीयूएल उस लेखक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकता है और आर्थिक सहायता वापस ले सकता है।
एनसीपीयूएल के निदेशक इर्तेजा करीम का कहना है कि अगर कोई लेखक सरकार से आर्थिक मदद चाहता है तो किताब में सरकार के खिलाफ कंटेंट नहीं होना चाहिए। एनसीपीयूएल एक सरकारी संस्था है और वे लोग सरकारी कर्मचारी हैं। हम सब सरकार के हितों का संरक्षण करेंगे।
उन्होंने बताया कि एक साल पहले परिषद सदस्यों की एक बैठक में इस घोषणा पत्र के संदर्भ में निर्णय लिया गया था। हमारे पास इतने कर्मचारी नहीं हैं कि हर किताब की हर पंक्ती को पढ़ा जा सके, ऐसे में यह फॉर्म हमारी मदद करती है।
उन्होंने बताया कि पिछले साल पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम के बारे में एक किताब में गलत सूचना दे दी गई। उन्होंने कहा कि कलाम एक राष्ट्रीय व्यक्तित्व हैं, उनसे संबंधित गलत सूचना राष्ट्रीय मुद्दा बन सकता है। हमलोग सब चीजों के लिए जिम्मेदारी नहीं ले सकते हैं।