किसानों को राहत में आंकड़ों की बाजीगरी का खेल शुरू: रालोद
लखनऊ: मौसम और सरकार का कहर किसानों पर जारी है पिछले तीन फसलों की तरह वर्तमान रबी की फसल बरसात व तेज आंधी तथा ओलावृष्टि के कारण चौपट हो गयी और सरकारी मशीनरी ने ईमानदरी से राहत देने की बजाय आंकड़ों की बाजीगरी का खेल शुरू कर दिया है। यह बात राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष मुन्ना सिंह चौहान ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कही। उन्होंने कहा कि लगभग तैयार रबी की फसल मौसम के कहर का शिकार हो गयी जो किसानों के लिए घातक साबित रहा। कहीं कहीं शतप्रतिशत क्षति हुई तो कहीं 70 से 80 प्रतिशत का नुकसान किसानों को उठाना पड़ेगा। जो गेंहूं खेत में गिर गया है वह पतला हो जायेगा और पैदावार चौथाई रह जायेगी इसी तरह सरसों की फसल भी टूटकर खेतों में बिखर गयी फलस्वरूप किसानों को काफी नुकसान हुआ।
श्री चौहान ने बताया कि गत वर्ष की भांति सरकारी मशीनरी ने आंकड़ों और सर्वे का खेल प्रारम्भ करते हुये आपदा राहत के तहत आवंटित होने वाले बजट का बंदर बांट करने का रास्ता तलाशना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि डिजिटल इण्डिया का नारा देने वाली सरकारे किसानों के मुददे पर न जाने क्यों मौन हो जाती है और उनको राहत देने की बजाय उनका शोषण करने में लग जाती है जबकि सरकार गूगल अर्थ पर सर्च करके एक एक इंच जमीन का सर्वे कर सकती है परन्तु आपदा राहत राशि को अपने चहेतों को देने व बंदरवाट करने के लिए लेखपाल, कृषि विभाग के आकड़ों पर आधारित हो जाती है। गत चार दिनों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर पूर्वांचल तक मौसम की मार से किसानों को होेने वाले नुकसान का कृषि विभाग के प्रारम्भिक आंकलन के मुताबिक 20 से 30 प्रतिशत दर्शाना अपने आपमें भ्रष्टाचार की पोल खोलने के लिए काफी है। गत वर्ष मुआवजा वितरण में हुयी धांधली व भ्रष्टाचार को ध्यान में रखकर सरकार को नई तकनीक का सहारा लेकर राहत पहंुचाने के लिए सैटेलाइट सर्वे कराकर अविलम्ब राहत राशि मुहैया करानी चाहिए।
श्री चौहान ने आगे बताया कि मौसम विभाग पूर्वांचल के जिलों में हल्के नुकसान का आंकलन कर रहा है जबकि जमीनी हकीकत इसके विपरीत है राजधानी से सटे बाराबंकी जपनपद से लेकर बिहार बार्डर के मिर्जापुर व सोनभद्र जिले तक किसानों की फसल को मौसम की बेरूखी से खो चुका किसान अब चौथी फसल का नुकसान सहने में असमर्थ है इसलिए सरकार को अपनी नैतिक जिम्मेंदारी महसूस करते हुये मानवीय आधार पर किसानों की क्षतिपूर्ति करने हेतु ठोस उपाय करते हुये कृषि ऋण एवं विद्युत बिल माफ किया जाय साथ ही आत्महत्या करने वाले किसानों के परिजनों को 20-20 लाख रूपये तथा एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की पहल करनी चाहिए और आपदा राहत वितरण में आंकड़ों की बाजीगरी व भ्रष्टाचार से परहेज करना चाहिए।