दीन दयाल उपध्याय राज्य ग्राम विकास संस्थान में विधिक साक्षरता अभियान पर कार्यशाला आयोजित

लखनऊ: ”कानून सामाजिक व्यवस्था में बदलाव के लिए एक यन्त्र की तरह है जिसके इस्तेमाल की जानकारी समाज के प्रत्येक व्यक्ति को होनी चाहिए। इसकी जिम्मेदारी हर उस सक्षम नागरिक की है जो कानूनी व्यवस्था से भिज्ञ है।“

उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश राकेश तिवारी दीन दयाल उपाध्याय राज्य ग्राम्य विकास संस्थान, बख्शी का तालाब द्वारा आयोजित विधिक साक्षरता अभियान विषय पर आयोजित राज्य स्तरीय कार्यशाला में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने इस अवसर पर अपने पूर्व बोलने वाले सभी वक्ताओं के विचारों का उल्लेख करते हुए अपनी बात को बहुत मजबूती से रखा। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा अनेक प्रयास किए जा रहे हैं फिर भी रफ्तार बहुत धीमी है, ऐसा क्यों है इस पर विचार करना अतिआवश्यक है। उन्होंने कहा कि इस महत्वपूर्ण काम के लिए हमें समर्पित, ईमानदार और जागरूक कार्यकर्ताओं की जरूरत है। जनपद तथा तहसील स्तर पर विधि सहायकों को नियुक्त किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आपस में एक दूसरे की गलतियों को नजरंदाज करते हुए जमीनी स्तर पर काम करना होगा तभी सफलता मिलेगी। 

इस मौके पर राज्य ग्राम्य विकास संस्थान के महानिदेशक एन0एस0 रवि ने कहा कि नियम, कानून की जानकारी के अभाव में अधिकांश लोग लोकतांत्रिक व्यवस्था का पूरा लाभ नहीं उठा पाते हैंे। उन्होंने बताया कि यह विधिक साक्षरता अभियान (लीगल लिटरेसी कैम्पेन) इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए है ताकि आम जनता को रोज के जीवन में शामिल कानून की सही-सही जानकारी हो। कार्यशाला के प्रारम्भ में अनुपम चटर्जी ने एक प्रेजेंटेशन के माध्यम से एस0आई0आर0डी0सी0 की कार्यप्रणाली पर विस्तार से प्रकाश डाला। 

 विधि एवं न्याय मंत्रालय भारत सरकार में संयुक्त सचिव अतुल कौशिक ने कहा कि युनाइटेड नेशन डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत चलने वाला यह अत्यधिक महत्वपूर्ण प्रोग्राम है। उन्होंने बताया कि लीगल लिटरेसी कैम्पेन अनेक अन्य राज्यों जैसे मध्यप्रदेश, राजस्थान, झारखण्ड, जयपुर आदि में भी चलाए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि आंकडे़ बताते हैं कि अनेक वर्षों से लगातार काम करने के बाद भी सफलता का प्रतिशत बहुत कम है। इसमें और तेजी लाने की जरूरत है गिरि इन्स्टीट्यूट आॅफ सोशल साइन्स के कार्यकारी निदेशक प्रो0 ए0 के0 सिंह ने भी इस ओर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने भी कहा कि हमारे पास कानून हैं, योजनाएं हैं पर उन्हें सही रूप में कार्यान्वित करने में हम पूर्णतः सफल नहीं हो पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारी अदालतंे ओवर बर्डन हैं जिसकी वजह से लोगों को त्वरित न्याय नहीं मिल पा रहा है। लोगों में जागरूकता लाने के साथ ही उन्हें सक्षम भी बनाना है ताकि वे अपने अधिकारों की रक्षा कर सकें। उन्होंने कहा कि गांवों में जाकर कैम्प आयोजित किए जाने चाहिए। महिलाओं, अनुसूचित जाति तथा दीन-हीन वर्ग के बीच खुलकर बातचीत होनी चाहिए ताकि बात ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे। उन्होंने सुझाव दिया कि गांवों में विधि सहायक नियुक्त किए जाने चाहिए, इससे यह काम तो आसान होगा ही साथ ही सुखद परिणाम भी सामने आएंगे। 

इस अवसर पर इलाहाबाद हाइकोर्ट से अवकाश प्राप्त न्यायाधीश मुक्तेश्वर प्रसाद ने अपनी बात को राजभाषा हिन्दी में रखते हुए इस बात पर दुःख व्यक्त कि गांवों में अभी भी शिक्षित लोगों की संख्या बहुत कम है। उन्होंने कहा कि यद्यपि साक्षरता दर बढ़ी है फिर भी गांवों के जीवन स्तर में बहुत सुधार नहीं आया है। श्री मुक्तेश्वर ने कहा कि अधिकांश लोगों को यह भी नहीं पता है कि कानून के बारे में अल्पज्ञता या अनभिज्ञता क्षम्य नहीं है। उन्होंने कहा कि पिछले तीन दशकों से लोक अदालतों का आयोजन होता आ रहा है लेकिन फिर भी बहुत कम लोग लीगल एड से परिचित हैं। लोक अदालतों के आयोजन का उद्देश्य भी यही है कि धनाभाव के कारण कोई भी नागरिक न्याय से वंचित न हो। प्रचार सामग्री गांवों में वितरित करें जिससे अधिकतर लोग लाभान्वित हो सकंे। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की योजनाओं को सफल बनाने में सभी का योगदान होता है अतः सभी को अपने-अपने स्तर पर व्यक्तिगत रूचि लेते हुए कार्य करना चाहिए। 

न्यायिक प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान के अध्यक्ष जस्टिस यू0एस0 खान ने कहा कि बहुत से कानून इसलिए भी कार्यान्वित नहीं हो पाते क्योंकि उनकी व्यवहारिक उपयोगिता नहीं होती है, अतः कानून बनाते समय उनकी व्यवहारिक उपयोगिता को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए। 

इस कार्यशाला के दौरान एक डाक्यूड्रामा ’मुक्ति‘ का प्रदर्शन भी किया गया। इसके अतिरिक्त संस्थान द्वारा प्रकाशित प्रचार साहित्य का लोकार्पण भी किया गया। कार्यशाला में समस्त क्षे़त्रीय प्रशिक्षण संस्थान एवं जिला प्रशिक्षण संस्थानों से पिं्रसिपल तथा प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे खाद्य सुरक्षा अधिकारियों ने भी भाग लिया।