दोषियों को दण्डित कराना ही कन्हैया का पक्ष !
माओवादी ‘लाल’ चिन्तन का शैक्षणिक परिवेश में विस्तार और राष्ट्रविरोधी सोच के सम्मिश्रण के रासायनिक प्रयोग का प्रतीक जेएनयू छात्रसंघ का अध्यक्ष कन्हैया एकाएक ख्यात हो गया। कुख्यात, विख्यात या प्रख्यात? इस प्रश्न के उत्तर ही लाल-हरे-भगवा व आॅटो लेंस जो तापमान के अनुरूप परिवर्तित होने वाले चश्मों से प्रथक-प्रथक निकलना स्वाभाविक है। कन्हैया दोषी है या निर्दोष? ये प्रश्न भी उपरोक्त सियासी चश्मों द्वारा तय किया जा रहा है। अगर आज के हालात पर आध्यात्मिक दृष्टि डाली जाय तो सारा फसाद मिट जायेगा।
अध्यात्म-मनोविज्ञान नाम व वंशानुक्रम से अधिक प्रभावी वातावरण यानी संगति को मानता है। यानी पाप-पुण्य का हस्तांतरण कर्मेन्दियों और ज्ञानेन्द्रियों द्वारा होता है। शिक्षार्जन के लिए व्रह्मचर्य की अर्हता मन एवं इन्द्रियों को जीतने की है। मगर मौजूदा हालात में शैक्षिणिक परिसर राजनीतिक पथ की प्रथम सीढ़ी है, जिसे लाल-हरे-भगवा व आॅटोलेंस चश्में के रूप में देखा जाता है। जेएनयू में लाल पर हरे कलर के रिप्लेक्शन की परिणति ने कन्हैया को दोषी बनाया। जहां एक और लाल नक्सली विद्रोह का प्रतीक है तो कथित हरा अलगाव का। छात्रसंघ अध्यक्ष पद एक जिम्मेदारी का पद है, जिसपर राष्ट्रद्रोह का आरोप लगना पाप-पुण्य के हस्तान्तरण का रासायनिक सूत्र लागू होता है।
जैसे कदाचारियों में एक सदाचारी भी कदाचारी माना जायेगा, जिसका जीवन्त उदाकरण सत्यनिष्ठा के अभियान इण्डिया अगेंस्ट करप्शन के सियासी स्वरूप आप के रूप में है। जुएं के अड्डे पर मजा लेने के मकसद से वैठा एक व्यक्ति दांव नहीं लगाता है किन्तु सामान्यतः उसकी पहचान जुआरी के रूप में हो जाती है। यानी स्पर्श, गंध, दृष्टि, श्रवण व रस के रूप में जुआरियों के व्यसनी-तत्व हस्तांतरित होने पहचान बदली। वैसे ही जेएनयू व प्रेस काउंसिल में हुए राष्ट्रद्रोही घटनाक्रम है, कन्हैया का दोष राष्ट्रविरोधी तत्वों से नजदीकियां है। कन्हैया का पक्ष लेना यदि निर्दोष को बचाना है तो दोषियों को दण्डित कराने में मदद करनी होगी। खामख्वाह का तमाशा करना सियासी रोटियां सेंकना यानी वोटबैंक की राजनीति लाल-भगवा के टकराव से राष्ट्रप्रेम व राष्ट्रद्रोह का परिभाषित करके भ्रमजाल बिछाना मात्र है। अब राष्ट्रप्रेम वह होगा कि आतंकी अफजल को महिमामंडित करने तथा भारत की बर्बादी के नारे लगाने वाले तत्वों को सजा दिलाना।