नवोन्मेष को लोगों के लिए उपयोगी बनाएं वैज्ञानिक: प्रधानमन्री
भुवनेश्वर : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज वैज्ञानिकों से कहा कि वे नवोन्मेष को लोगों के लिए उपयोगी बनाएं और ऐसी तकनीक विकसित करें जो पर्यावरण पर बिना कोई विपरीत प्रभाव डाले आमजन के लिए किफायती साबित हो।
मोदी ने भुवनेश्वर के नजदीक जटनी में राष्ट्रीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (एनआईएसईआर) के नए परिसर का उद्घाटन करते हुए कहा, ‘अनुसंधान में शामिल हर किसी को शायद नोबेल पुरस्कार नहीं मिले, लेकिन उनके लिए असली पुरस्कार यह है कि उनका अन्वेषण आम लोगों के लिए उपयोगी हो।’ देश के पारंपरिक ज्ञान पर मोदी ने कहा, ‘डॉ. मंजुल भार्गव पांडुलिपियों से ज्ञान अर्जित करके एक महान गणितिज्ञ बने। उनके पिता संस्कृत के विद्वान थे। हमें विज्ञान एवं तकनीक के साथ पारंपरिक ज्ञान को जोड़ना चाहिए।’
उन्होंने कहा, ‘हमारी प्राथमिकता विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को लोगों के लिए किफायती बनाने की होनी चाहिए जिसका जीरो-इफेक्ट एवं जीरो डिफेक्ट हो।’ प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘जीरो-इफेक्ट’ का मतलब पर्यावरण पर किसी विपरीत प्रभाव नहीं पड़ने और दुष्प्रचार से मुक्त होने से है। मोदी ने कहा कि ओडिशा के पास बड़ा कोयला भंडार है। ऐसे में किफायती, सस्ती और हरित तकनीक का विकास होना चाहिए ताकि कोयला गैसीकरण यहीं विकसित हो सके।
भारत के समुद्र एवं आकाश की संसाधन की क्षमता का दोहन अभी नहीं होने का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने वैज्ञानिक समुदाय से कहा कि वह संसाधनों का अन्वेषण करे और लोगों के फायदे के लिए इनका उपयोग करे। मोदी ने कहा, ‘हमारे पूर्वजों ने समुद्र को ‘रत्न गरभा’ क्यों कहा। यह इसलिए कि संपदा समुद्र में है। समुद्री अनुसंधान समुद्री क्षेत्रों में होनी चाहिए।’
अंतरिक्ष अनुसंधान पर प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत मंगल मिशन के जरिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में अपनी उपस्थिति पहले ही महसूस करा चुका है। उन्होंने इस बात का स्मरण किया कि जब वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी पर अनुसंधान आरंभ किया तब उनको पर्याप्त मात्रा में साजो-सामान का सहयोग नहीं मिलता था। इसके बाद भी वे बहुत सफल हैं।
ऊर्जा संरक्षण और सस्ती ऊर्जा की जरूरत पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि सस्ती सौर उर्जा का उत्पादन वैज्ञानिकों के लिए बड़ी चुनौती है। तकनीक का विकास ऐसे होना चाहिए ताकि देश के गरीब लोगों को भी फायदा हो सके। उन्होंने कहा, ‘अगर 100 स्मार्ट शहर एलईडी बल्ब का इस्तेमाल करते हैं तो देश 20,000 मेगावाट बिजली की बचत करेगा। एक छोटी तकनीकी पहल से करोड़ों रूपये बचाए जा सकते हैं।’