समलैंगिकता पर फैसला संविधान पीठ के हवाले
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 पर अहम सुनवाई करते हुए मंगलवार को मामला पांच जजों की संविधान पीठ को भेज दिया है, जहां इस पर विस्तार से सुनवाई होगी। दरअसल, समलैंगिकता को IPC की धारा 377 के तहत अपराध की श्रेणी से हटाया जाएगा, या यह अपराध बना रहेगा, इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को तीन जजों की पीठ में सुनवाई थी।
इस मामले में 2009 में दिल्ली हाईकोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटाने का फैसला दिया था, जिसे केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसने दिसंबर, 2013 में हाईकोर्ट के आदेश को पलटते हुए समलैंगिकता को IPC की धारा 377 के तहत अपराध बरकरार रखा। दो जजों की बेंच ने इस फैसले पर दाखिल पुनर्विचार याचिका भी खारिज कर दी थी।
इसके बाद, 23 अप्रैल, 2014 को चार जजों – तत्कालीन चीफ जस्टिस पी सदाशिवम, जस्टिस आरएम लोढा, जस्टिस एचएल दत्तू और जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय – की बेंच ने क्यूरेटिव पिटीशन पर खुली अदालत में सुनवाई करने का फैसला दिया था, लेकिन अब ये चारों जज भी रिटायर हो चुके हैं।
वैसे 2013 में ही सुप्रीम कोर्ट की दूसरी बेंच ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए ट्रांसजेंडरों को तीसरी कैटेगरी में शामिल कर उन्हें ओबीसी के तहत आरक्षण और दूसरी सुविधाएं देने के आदेश दिए थे, हालांकि उस समय बेंच ने समलैंगिकता के आदेश पर कोई टिप्पणी नहीं की थी।