मोदी का स्वच्छ भारत अभियान सुपर फ्लाप शो: थरूर
जयपुर। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के चौथे दिन कई विषयों पर चर्चा हुई, उन्हीं में से एक है-स्वच्छ भारत अभियान। शशि थरूर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस अभियान की कहानी को बयां किया। शशि ने इसे एक मूवी की तरह बताया, वह भी जो बॉक्स आॅफिस पर पानी तक नहीं मांगती, जी हां, शशि ने स्वच्छ भारत अभियान का बुरी तरह एक फ्लॉप शो बताया। इस दौरान शशि ने यह भी कहा कि मोदी कहते हैं कि वो न खाएंगे, न खाने देंगे, लेकिन क्या नहीं खाने देंगे-बीफ या पैसा।
चूंकि सवाल यह उठता है कि जहां मोदी अपने इस अभियान पर गर्व करते हैं, वहीं उनके विपक्षी इसे फ्लॉप शो कह रहे हैं। शशि ने कहा कि इस अभियान इसलिए फ्लॉप कहा जा रहा है, क्योंकि यूपीए सरकार के दौरान निर्मल भारत अभियान का बजट मौजूदा सरकार से कहीं ज्यादा था। भारत को साफ-सुथरा रखने की हमारी सबकी जिम्मेदारी है, लेकिन वर्तमान सरकार की नेतृत्व में झोल है, वह काम नहीं कर रही, सिर्फ प्रचार कर रही है। अब देखिए न, सरकार ने देश में जो टॉयलेट बनवाए हैं, उनमें पानी तक नहीं आता है। किस काम के ये टॉयलेट। स्वच्छता को लेकर बड़ी-बड़ी बातें की जा रही हैं, जबकि सच्चाई तो यह है कि हर तरफ कचरा फैला हुआ, गंदगी का अबार लगा हुआ है। सिर्फ कुछ जगह सफाई कर देने से भारत स्वच्छ नहीं हो जाता।
थरूर ने कहा कि देशभर में गांधी जयंती के मौके पर स्वच्छ भारत अभ्यिान को प्रमुखता से प्रमोट किया गया, लेकिन सपफाई कम पफोटो सेशन ज्यादा हुए। कई बड़े नेता झाड़ू लेकर सामने आए और कैमरों के सामने फोटो खिंचवाते नजर आए। यही सच है। सेशन में मौजूद पंजाब से आए दूसरे स्पीकर देसराज काली ने कहा कि कभी गांधीजी भी स्व्चछता अभियान चलाया था, लेकिन उस वक्त वो भी अकेले पड़ गए थे। न केाई आगे आया था, न किसी ने साथ दिया था। अंबेडकर का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जब दलित और गरीबों के उत्थान के लिए अंबेडकर ने उन्हें शहर भेजने की बात की, तो वहां का मंजर ही कुछ और हो गया। वहां इन्हें देश के सिस्टम ने झुग्गियों में जगह दे दी, जो अब भी बनी हुई हैं। दरअसल इसके पीछे अंबेडकर मंशा यह थी कि इससे शहरों में गरीब और दलितों को जाति भेद से मुक्ति मिल जाएगी।
देसराज ने यह भी कहा कि भारत जब सफाई को लेकर चर्चा होती है, तो उसे वर्ग भेद से जोड़ दिया जाता है। सफाई करने वाले को गटर का आदमी क्यों कहा जाता है। ये रोंगटे खड़ें कर देनेे वाला वर्ग विभाजन है। इसे खत्म करना ही होगा। सफाईकर्मी की हालत यह है कि वह अपनी जिंदगी में कभी रिटायर ही नहीं हो पाता है। दरअसल वह साफाई करते हुए जहरीली गैस से मर जाता है। थरूर ने कहा कि देश के भीतर सफाई को लेकर वर्ग भेद की जो नीति है वो बेहद भयावह है और लोकतंत्र में यह स्थिति बेहद शर्मसार है। सफाई कर्मचारियों को केंद्र सरकार की ओर से अच्छा वेतन, बेहतर सुविधाएं और पेंशन स्कीम देनी चाहिए। सफाई का काम जिम्मेदारी भरा है, जाति से जुड़ा नहीं है।
देसराज ने एक अंदर की बात साझा की। उन्होंने कहा कि आज जालंधर में तीन हजार रुपए में टॉयलेट बनाने के लिए दिए जा रहे हैं, लेकिन क्या इतने पैसे में टॉयलेट बनना संभव है। अरे, तीन हजार रुपए में तो सिर्फ टॉयलेट शीट आती है। इन तीन हजार रुपए में से कुछ ब्यूरोक्रेसी, तो कुछ ठेकेदार खा जाता है। बाकी कितने पैसे बचे होंगे, जिससे टॉयलेट बनेगा। एक ओर जहां पंजाब के ही जालंधर के एक एनआरआई के घर में तीन लाख टॉयलेट शीट लगा है, वहीं तीन हजार रुपए में टॉयलेट बनाने के लिए दिए जाते हैं। यह देश की कैसी बिडंबना है।