नई दिल्ली: अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में अभूतपूर्व गिरावट से उपभोक्ताओं के अच्छे दिन नहीं आये, लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार के खजाने में करोड़ों रुपये की बरसात हो रही है। आइए नजर डालते हैं कि कच्चा तेल 110 डॉलर प्रति बैरल से 27 तक उतरने के बावजूद आम जनता के बजाए किसकी झोली में जा रहा ये मुनाफा।

जून 2014 में 115 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुँच चुका ब्रेंट क्रूड गुरुवार को 27.10 डॉलर प्रति बैरल तक उतर चुका है जो लगभग 13 साल के न्यूनतम स्तर पर है। चालू वित्त वर्ष के दौरान सरकार कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का फायदा उपभोक्तओं को न देकर उत्पाद शुल्क बढ़ाकर अपना वित्तीय घाटा लक्ष्य के भीतर रखने के प्रयास में है। वर्ष 2015-16 में सरकार चार बार उत्पाद शुल्क बढ़ा चुकी है और इससे चालू वित्त वर्ष में उसके खजाने में 13800 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व आने का अनुमान है।

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल में गिरावट के कारण भारतीय बास्केट में कच्चे तेल की कीमत गुरुवार को 1633.49 रुपये प्रति बैरल (24.03  डॉलर प्रति बैरल) पर आ गया। एक बैरल लगभग 159 लीटर होता है। अगर लीटर के संदर्भ में इसकी गणना की जाये तो यह 10.76 लीटर प्रति बैरल का पड़ेगा। लेकिन, केंद्र सरकार के पिछले साल नवंबर से जनवरी 2016 के बीच उत्पाद शुल्क में चार बार और वित्त वर्ष के दौरान दिल्ली सरकार द्वारा वैट में दो बार बढ़ोतरी करने से दिल्ली में पेट्रोल 59.99 रुपये और डीजल 44.71 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है। वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमत में हुयी गिरावट का लाभ उठाते हुये सरकार ने गत नवंबर से अब तक चार बार में पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क 3.02  रुपये और डीजल पर 5.30 रुपये प्रति लीटर बढ़ाया है जिससे चालू वित्त वर्ष में सरकार को 13800 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व मिलने की उम्मीद है।