भारत में सहनशीलता की सख्त जरूरत : अमर्त्य सेन
कोलकाता। नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने बुधवार को कहा कि भारत में सहनशीलता की सख्त जरूरत है। इसके अलावा उन्होंने संदिग्ध सहनशीलता के महत्व को भी रेखांकित किया। सेन तत्कालीन प्रेसिडेंसी कॉलेज के पूर्व छात्र हैं
जो अब प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय बन चुका है। उन्होंने 19वीं सदी के कवि हेनरी लुईस विवियन डेरोजियो के शिक्षा और समाज पर योगदान की चर्चा करते हुए कहा, सामान्य सोच यह है कि किसी भी तरह के विश्वास को स्वीकार करना चाहिए। सहनशीलता एक बहुत बड़ा नैतिक गुण है और भारत में इस वक्त इसकी बेहद सख्त जरूरत है।
उन्होने कहा कि भारत में संदिग्ध सहनशीलता की भी जरूरत है। जो डेरोजियो के विभिन्न विचारों में से एक है। उनकी किसी समूह से दुश्मनी नहीं थी, लेकिन हरेक समूह के लिए उनके पास प्रश्न था। सेन को प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय में यहां डीलिट् की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया।
प्रेसिडेंसी कॉलेज हिन्दू कॉलेज से बना है, जिसकी 1817 में स्थापना की गई। उसे 1855 में प्रेसिडेंसी कॉलेज का नाम दिया गया। डेरोजियो हिन्दू कॉलेज के सहायक प्रधानाध्यापक थे। डेरोजियो की विरासत पर जोर देते हुए सेन ने प्रेसिडेंसी के वर्तमान छात्रों को भारत की प्रमुख समस्याओं पर ध्यान देने को कहा। हालांकि उन्होंने राज्य सरकार के द्वारा बहुत ज्यादा हस्तक्षेप किए जाने को लेकर चेतावनी दी।
उन्होंने कहा, हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जहां बहुत सारी समस्याएं हैं जिन पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। हम इन पर किसी सरकारी कॉलेज के छात्र के नाते ध्यान नहीं देंगे, बल्कि हमारा मूल नागरिक समाज है। प्रेसिडेंसी को निश्चित रूप से सरकारी मदद की आवश्यकता है, लेकिन हस्तक्षेप की कीमत पर नहीं।
उन्होंने आगे कहा, प्रेसिडेंसी के छात्रों को अपने आप से यह प्रश्न लगातार पूछने की जरूरत है कि भारत के लिए और दुनिया के लिए क्या वे प्रासंगिक हैं। हम दुनिया के लिए क्या कर सकते हैं। हम एक ऐसे कठिन समय में रह रहे हैं जहां हिंसा, भूख, कुपोषण, अशिक्षा, निरक्षरता और स्कूल स्तर पर घटिया शिक्षा जैसे मुद्दे हैं। हमें इन मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि यही हमारे देश की तकदीर तय करते हैं।