भरतनाट्यम भारतीय संस्कृति की अनमोल विरासत में से एक है: राज्यपाल
लखनऊः उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने आज यहाँ गन्ना संस्थान के प्रेक्षागृह में सृजन संस्था द्वारा आयोजित भरत नाट्यम आरेंगट्रम कार्यक्रम का दीप प्रज्जवलित कर शुभारम्भ किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राम नाईक ने सृजन संस्था की संस्थापिका एवं भरतनाट्यम की गुरू पल्लवी त्रिवेदी, ज्ञानेन्द्र बाजपेयी तथा भरतनाट्यम का उत्कृष्ट नृत्य प्रस्तुत करने वाली संगीत नृत्य की छात्राओं, सुश्री गायत्री प्रकाश एवं सौदामिनी शैल तथा उनके माता-पिता के योगदान की सराहना की। सुश्री गायत्री प्रकाश एवं सौदामिनी शैल ने भरतनाट्यम नृत्य के माध्यम से पुष्पांजलि, मंगलम्, यतिस्वर्णम्, वर्णनम्, शब्दम्, देवी स्तुति, गणेश स्तुति तथा शिव स्तुति का मनोहारी नृत्य प्रस्तुत किया।
राज्यपाल ने उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा कि भरतनाट्यम भारतीय संस्कृति की अनमोल विरासत में से एक है। उन्होंने कहा कि सुश्री गायत्री प्रकाश एवं सौदामिनी शैल द्वारा प्रस्तुत मनमोहक भरतनाट्यम नृत्य के गीत, संगीत, नृत्य, ताल, लय तथा स्वर झनकार में अद्भुत जादू है। लम्बी एवं कठिन साधना के पश्चात भरतनाट्यम नृत्य की ऐसी प्रस्तुति देखने को मिलती है। उन्होंने कहा कि वे उत्तर प्रदेश के 25 विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति हैं। वे दीक्षान्त समारोहों में 20-21 वर्ष से लेकर इससे अधिक आयु के छात्र-छात्राओं को उपाधियाँ प्रदान करते हैं लेकिन मेरे जीवन का यह सौभाग्य है कि आज प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 15 वर्ष तथा इससे कम आयु की दो छात्राओं सुश्री गायत्री प्रकाश और सौदामिनी शैल को उपाधि देने का अवसर मिला है जिससे उन्हें हार्दिक प्रसन्नता हुई है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति की यही विशेषता है कि संस्कृति में कला, नृत्य, गायन, वादन, संगीत आदि सबका समन्वय होता है, जिससे दर्शकों/श्रोताओं को आनन्द की अनुभूति मिलती है। कलाकार जब गीत, संगीत एवं लय, स्वर, ताल आदि पर अपने शरीर के अंगों की भाव भंगिमाओं का एकाग्रता के साथ मनमोहक प्रदर्शन करता है तो आनन्द मिलता है।
राज्यपाल ने कहा कि एक चिडि़या जब अपने घोसले में बच्चों को अपनी चोंच में उन्हें खाने की चीजें लाकर घोसलें में बैठे चोंच खोले हुए बच्चों की चोंच में अपनी चोंच से दाना खिलाती है तो बच्चों को और उनके माता-पिता को बड़ा आनन्द होता है। चिडि़या के बच्चे जब बडे़ होते हैं और उनके भी पंख निकल आते हैं तो चिडि़या अपने बच्चों को खुले आसमान में उड़ान भरने के लिए प्रोत्साहित एवं प्रेरित करती है। तब बच्चे एक दिन घोसले से उड़कर आसमान की ऊँचाईयों को छूने लगते हैं। ठीक उसी प्रकार भरतनाट्य नृत्य की इन दोनों छात्राओं के माता-पिता तथा गुरू ने उनकी कला प्रतिभा को निखारने का काम किया है। श्रीमती पल्लवी त्रिवेदी ने अपनी दोनों शिष्याओं को मुक्त गगन में उड़ान भरने के लिए उनका उत्साह बढ़ाया है और उनका यह प्रयास दोनों छात्राओं को सफलता के शिखर पर ले जायेगा।
श्री नाईक ने कहा कि सुश्री गायत्री प्रकाश एवं सौदामिनी शैल के भरतनाट्यम नृत्य एवं कला तथा संगीतज्ञों के स्वर, ताल, लय एवं गायन का मूल्याकंन उपस्थित दर्शकों ने किया और तालियाँ बजाकर सफल कार्यक्रम की प्रस्तुति पर अपनी सहमति प्रदान कर दी है।