यूपी: सपा पुनर्वापसी तो भाजपा सत्ता प्राप्ति की कवायद में
अतिपिछड़ों का अतिदलितों की बदौलत लोक सभा चुनाव-2014 में अप्रत्याशित सफलता हासिल करने वाली भाजपा इन वर्गों को अपने पाले में मजबूती के साथ जोड़े रखने के लिए तरह-तरह के प्रयास में जुटी हुयी है। उत्तर प्रदेश की 17 आरक्षित लोक सभा की सीटों पर भाजपा का कब्जा है तो विधान सभा की 56 सीटों पर सपा के दलितों का कब्जा है, ऐसे में दोनों दल दलितों को जोड़ने व अपने पाले में करने की कोशिशों का ताना-बाना बुन रहें है। लोक सभा की जो 17 सीटें हैं, उस पर 5 पासी, 2-2 कोरी, धोबी, 1-1 मल्लाह, खरवार, दुसाध, खटिक, वाल्मीकि, चमार/जाटव, नट, सांसदों का कब्जा है, जो सभी भाजपा के हैं। सपा के अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष व सैदपुर के विधायक सुभाष पासी को दलितों को जोड़ने की जम्मेदारी दी गयी है।
सामाजिक न्याय समिति-2001 के अनुसार प्रदेश मंे दलितों की संख्या -24.95 प्रतिशत व अनुसूचित जनजातियों की संख्या 0.6 प्रतिशत है। जिसमें चमार/जाटव की कुल दलित संख्या में 55.70 प्रतिशत भागीदारी है। अन्य दलित जातियों में पासी, तड़माली- 15.91 प्रतिशत, धा ेबी-6.51 प्रतिशत, कोरी-5.39 प्रतिशत, वाल्मीकि-2.96 प्रतिशत, खटिक-1.83 प्रतिशत, धानुक-1.57 प्रतिशत, गोड़-1.25 प्रतिशत, कोल-1.11 प्रतिशत तथा श्ेाष 57 दलित जातियों की संख्या-7.78 प्रतिशत है। वैसे देखा जाय तो दलितों में चमार/जाटव बसपा का काडर वोट बैंक और अभी भी वह बसपा से दूर जाता नहीं दिख रहा है। पासी/तड़माली किसी एक पार्टी विशेष के साथ नहीं रहता इस वर्ग के मतों में बिखराव निश्चित है।
खटिक जाति में उदित राज, दिल्ली से भाजपा के सांसद है और इन्हें दलित चेहरा माना जाता है। खटिक, वाल्मीकि, गोड़, दुसाध आदि बहुमत के साथ भाजपा के ही साथ रहते हैं और आगामी विधान सभा चुनाव में भी भाजपा के साथ ही जाने की पूरी सम्भावना है। 2002, 2007 व 2012 के विधान सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सत्ता का परिवर्तन 2.5 से 3.5 प्रतिशत मतों के ही उलट फेर से हुआ है, ऐसे में दलित मत निर्णायक है जिसके कारण सपा, भाजपा की गिद्ध दृष्टि दलित मतदाताओं को रिझाने में लगी है। भाजपा ने दलित समाज का धु्रवीकरण अपने पाले में करने के लिए डाॅ0 अम्बेडकर व सुहेल देव की जयन्ती विशेष तौर पर मनाकर दलितों के बीच पैठ बढ़ाने का प्रयास किया। दलित बस्ती में स्वच्छता अभियान चलाने व उन्हें पार्टी से जोड़ने के लिए भाजपा ने पिछड़े-सवर्ण समाज को लगाने के लिए एक 12 सदस्यीय कमेटी का गठन किया है। उत्तर प्रदेश में वही दल सत्ता पाने में सफल होगा जो दलितों, अतिपिछड़ों को अधिक प्रतिशत में अपने पाले में लाने में सफल होगा। आर0एस0एस0 का राची में चिन्तन शिविर लगने वाला है जिसमें उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष के संदर्भ में भी चर्चा निश्चित है और चर्चा यह है कि प्रदेश अध्यक्ष में बदलाव किया जायेगा। प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में प्रदेश महासचिव स्वतंत्र देव सिंह भागदौड़ में लगे है परन्तु इनकी कोई जातिगत व सामाजिक पहचान न होने से इनका अध्यक्ष बनना संदिग्ध है। 10 अशोक रोड से प्राप्त सूचना के अनुसार पार्टी नेतृत्व व आर0एस0एस0 की किसी अतिपिछड़े को प्रदेश अध्यक्ष बनाने पर मंथन कर रहा है। क्योंकि उसे अच्छी तरह पता है कि अतिपिछड़ों को साधे बिना उत्तर प्रदेश में सत्ता प्राप्त करना कठिन है। चर्चा है कि धर्म पाल सिंह लोधी व पूर्व संगठन मंत्री प्रकाश पाल को प्रदेश बागडोर सौंपी जा सकती है। पार्टी नेतृत्व साध्वी निरंजन ज्योति (निषाद), केशव मौर्य, के भी नाम पर विचार कर रहा है।
उत्तर प्रदेश की जातीय समीकरण में सामान्य वर्ग-20.94 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग -54.05, अनुसूचित वर्ग-24.95 प्रतिशत, जनजाति वर्ग-0.06 प्रतिशत है। उत्तर प्रदेश में सत्ता परिवर्तन कुल जनसंख्या के 43 प्रतिशत से अधिक गैर यादव पिछड़ों, अतिपिछड़ों के ऊपर निर्भर है। लोक सभा चुनाव में सपा बसपा ने 6-6 अतिपिछड़ों को उम्मीदवार बनाया था वहीं भाजपा ने पिछड़ा कार्ड खेलते हुए एक यादव सहित 24 गैर यादव पिछड़ों, अतिपिछड़ों को उम्मीदवार बनाकर जातिगत समीकरण को बेहतर तरीके से साधा। सपा सरकार की रवैया से गैर यादव पिछड़ा, अतिपिछड़ा वर्ग काफी रूष्ट चल रहा है। कारण कि उसे कोई महत्व नहीं मिल रहा है। गैर यादव पिछड़ों में राम मूर्ति वर्मा (कुर्मी) व गायत्री प्रसाद प्रजापति कैबिनेट मंत्री हैं, परन्तु मांझी, लोधी, किसान, शाक्य, पाल, जाति के राज्यमंत्री बनाकर दोयम दर्जे का राजनीतिक बर्ताव किया गया है। जिससे यह वर्ग राजनीतिक रूप से बेहद उपेक्षित मान रहा है।
विगत 27 सितम्बर को सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव, राष्ट्रीय महासचिव प्रो0 राम गोपाल यादव, वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने विधान सभा चुनाव-2017 के सम्बन्ध में गहन मंत्रणा किया और उत्तर प्रदेश मंत्री मण्डल के पुनर्गठन के सम्बन्ध में भी चर्चा हुयी। पार्टी सूत्र बताते है कि पहले से 6 मंत्री पद रिक्त हैं और आधा दर्जन से अधिक मंत्रियों की छठनी होगी। कुछ नये विधायकों को मंत्री मण्डल में स्थान देकर व कुछ राज्यमंत्रियों का स्तर बढ़ाकर सामाजिक समीकरण को पर चर्चा हुयी है। सपा सूत्रों के अनुसार अम्बिका चैधरी, पारस नाथ यादव, राजा रण विजय सिंह, गायत्री प्रसाद प्रजापति, विजय मिश्र, मनोज कुमार पाण्डेय, शंखलाल मांझी आदि को मंत्री मण्डल से छुट्टी कर संगठन के कार्य में लगाया जायेगा। वहीं चर्चा है कि अशोक बाजपेयी, साहब सिंह सैनी, लक्ष्मीकांत निषाद, रामजतन राजभर, अविनाश कुशवाहा,, ललई यादव, शिव चरण प्रजापति, उदय राज यादव, दीप नारायण यादव को मंत्री मण्डल में स्थान देकर व विजय बहादुर पाल, नितिन अग्रवाल, विवेक कुमार शाक्य, राम मूर्ति सिंह वर्मा, मानपाल सिंह वर्मा, को कैबिनेट में स्थान देकर या स्वतंत्र प्रभार का दर्जा देकर सामाजिक समीकरण को मजबूत किया जायेगा।
मंत्री मण्डल में पुनर्गठन के साथ-साथ निगम, आयोग, परिषद व सरकार संस्थाओं में रिक्त पदों को भर कर विधान सभा चुनाव-2017 के मद्दे नजर सामाजिक व जातिगत समीकरण को साधने पर पार्टी का ध्यान है। पार्टी हवाले से प्राप्त सूचना के अनुसार कमलेश चैहान, नानकदीन भुर्जी, लौटन राम निषाद, डाॅ0 उमाशंकर यादव, रविन्द्र यादव, डाॅ0 सी0पी0 राय, रूबी श्रीवास्तव, निर्भय पटेल आदि को निगम, आयोग, परिषद में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सलाहकार आदि बनाकर सामाजिक व जातिगत समीकरण दुरूस्त किये जाने की चर्चा है साथ ही राज्यपाल द्वारा विधान परिषद में मनोनयन के लिए जिन-5 नामों पर आपत्ति उठाकर स्वीकृति देने से मना कर दिया गया है, इन नामों में परिवर्तन कर नई सूची भेजे जाने पर भी पार्टी नेतृत्व गम्भीर है।
उत्तर प्रदेश में राजनीतिक हालात पर पिछड़ा वर्ग चिन्तक व राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चै0 लौटन राम निषाद से जब विधान सभा चुनाव 2017 के बारे में पूछा गया तो उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि अतिपिछड़ांे का 60 फीसदी से अधिक हिस्सा जो दल अपने तरफ करने में सफल होगा, वहीं सत्ता पाने में का हकदार होगा। अतिपिछड़ा वर्ग भी सामाजिक-राजनीतिक रूप से जागरूक हुआ है, उसमें सम्मान की भूख जागृत हुयी है, राजनीतिक सम्मान देने वाले दल के साथ इनका ध्रुवीकरण स्वाभाविक तौर पर होगा। 17 अतिपिछड़ी जातियां का आरक्षण मुद्दा भी 2017 में खास भूमिका निभायेगा।
उत्तर प्रदेश में निषाद, केवट, मल्लाह, बिन्द, पाल, बघेल, गड़ेरिया, धनगर, कुशवाहा, मौर्य, शाक्य, सैनी, लोधी, किसान, जैसी मजबूत आधार वाली जातियां सपा से खासा नाराज है जिसका असर 2017 के विधान सभा चुनाव में पड़ना स्वाभाविक है। निषाद आरक्षण आन्दोलन के कारण प्रदेश की राजनीति को प्रभावित करने वाली 12.91 प्रतिशत आबादी वादी निषाद/कश्यप/बिन्द , जातियां सपा से खासी नाराज है जिसका लाभ उठाने के लिए भाजपा पूरी तरह जुट गयी है। सपा भी निषादों उपजे असंतोष व नाराजगी के डैमेज कन्ट्रोल के लिए चिन्तन में डूबी हुयी है।
सामाजिक न्याय समिति-2001 के अनुसार पिछड़े वर्ग की 54.05 प्रतिशत आबादी में यादव/अहिर-19.40 प्रतिशत, निषाद (मल्लाह, केवट, बिन्द, कश्यप, धीवर,)-12.91 प्रतिशत, मौर्य/कुशवाहा (माली, सैनी, काछी, कोयरी, मुराव)-8.35 प्रतिशत, गड़ेरिया, बघेल-4.43 प्रतिशत, कुर्मीध्पटेल, सैन्थवार-7.46 प्रतिशत लोधी/किसान/खागी-6.06 प्रतिशत, तेली/साहू-4.01 प्रतिशत, जाट-3.61 प्रतिशत, कुम्हार/प्रजापति-3.42 प्रतिशत, नाई, सविता-3.01 प्रतिशत, राजभर-2.44 प्रतिशत, बढ़ई/विश्वकर्मा-2.37 प्रतिशत, नोनिया/चैहान-2.33 प्रतिशत लोहार/सैफी-1.81 प्रतिशत, गूजर-1.71 प्रतिशत, भुर्जी/कांदू-1.44 प्रतिशत, शेष हिन्दू अतिपिछड़ी जातियों की संख्या पिछड़ों में 12-13 प्रतिशत है।
भाजपा से 5-5 लोधी, कुर्मी, जाट, 3-3 निषाद/कश्यप, कुशवाहा/मौर्य/सैनी, 2 गूजर, 1-1 राजभर, तेली, सांसदों सहित 24 अतिपिछड़े सांसद हैं। पूर्व में कोयरी/काछी, मतदाता, बसपा का दूसरा आधार वोट माना जाता था पर अब भाजपा के साथ जाता दिख रहा है। पिछड़ों ने जाट, लोधी, किसान, गूजर, तेली, पाल, साहू, विश्वकर्मा, राजभर, चैहान भाजपा के ही साथ जाने का मन बनाये है। पिछड़ों में यादव के बाद निषाद, सपा का खास वोट बैंक माना जाता था परन्तु इस समय खास बड़ा वोट बैंक सपा से खासा नाराज है। कारण कि इस समाज की पूर्व से भी कहीं अधिक उपेक्षा हो रही है। अनुसूचित जाति आरक्षण सवाल पर 17 अतिपिछड़ी जातियां विधान सभा चुनाव-2012 में सपा के साथ बहुमत के साथ गयी थी परन्तु इन्हें अभी तक मिला कुछ नहीं। सपा के एक सूत्र ने बताया कि पार्टी नेतृत्व लौटन राम को विशेष महत्व देने का मन बनाये था परन्तु मण्डल कमीशन की पूरी रिपोर्ट लागू करने की मांग उठाये जाने से सपा की भौहे तन गयी। पिछड़ा मत को ध्यान मंे रखकर भाजपा कुछ नया कर पिछड़ों को रिझाने की कवायद में जुटी है। 8 जून को सुहेल देव जयन्ती के अवसर पर गृह मंत्री राजनाथ सिंह का बयान आया था कि उत्तर प्रदेश सरकार की सामाजिक न्याय समिति-2001 के आधार पर केन्द्रीय पिछड़ा वर्ग सूची का तीन वर्गों में विभाजन किया जायेगा। अगर भाजपा सरकार ऐसा कदम उठाती है तो निश्चित रूप से उसे विधान सभा चुनाव-2017 में राजनीतिक लाभ मिलेगा। अब देखना है कि भाजपा, सपा, कांग्रेस, बसपा आदि दल अतिपिछड़ों, दलितों को अपने-अपने पाले में करने के लिए कौन-कौन से टोटके करते हैं।