नेशनल हेराल्ड विवाद
नेशनल हेराल्ड केस में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी को 19 दिसंबर को कोट में पेश होने के लिए कहा गया है। भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने आरोप लगाया है कि दोनों ने कुछ लोगों के साथ मिल कर नेशनल हेराल्ड अखबार की पांच हजार करोड़ रुपए मूल्य की संपत्ति हथियाने के लिए घपला किया। इस विवाद को लेकर कांग्रेस सांसदों ने संसद के अंदर जो तेवर अपनाया, उससे साफ हो गया कि सरकार और विपक्ष के बीच की जो दूरी प्रधानमंत्री पाटना चाहते हैं, वह संभव नहीं। इस विवाद की धुंध पूरे शीतकालीन सत्र में छाए रहने की आशंका है और जीएसटी बिल भी इसकी भेंट चढ़ सकती है। नेशनल हेराल्ड मामले ने इन दिनों सोनिया और राहुल गांधी की मुश्किलें बढ़ रखी हैं। फिलहाल तो सोनिया और राहुल गांधी को 19 दिंसबर तक की फौरी राहत मिल चुकी है, लेकिन इस मामले में इन दोनों की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।
आपको बता दें कि नेशनल हेराल्ड नामक अखबार की शुरुआत साल 1938 में लखनऊ में की गई थी। इस अखबार का हिंदी अर्थ भारत का अग्रदूत था। शुरु-शुरु में अखबार में ये लाइने लिखा हुआ करती थीं Freedom is in Peril, Defend it with All Your Might यानी स्वतंत्रता खतरे में हैं और हमें इसकी रक्षा करनी है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इसके पहले संपादक थे। साल 1942 में अंग्रेजों ने इंडियन प्रेस पर हमला कर दिया था जिस वजह से इस अखबार को बंद करना पड़ा। साल 1942 से लेकर 1945 तक अखबार का एक भी अंक प्रकाशित नहीं हुआ। साल 1945 के खत्म होते होते इस अखबार को एक बार फिर से शुरु करने की कोशिश की गई। नेहरू के प्रधानमंत्री बनने के बाद के राम राव हेराल्ड के संपादक पद पर बैठे।
साल 1946 में इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी ने अखबार का प्रबंधन संभाला। ये वो दौर था जब मानिकोंडा चलापति राव अखबार का संपादन कार्य कर रहे थे और इसके दो संस्करण दिल्ली और लखनऊ से छापे जा रहे थे। साल 1977 में एक बार फिर से इस अखबार को बंद करना पड़ा। इंदिरा गांधी की चुनाव में हार हुई। अब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को अखबार की कमान संभालनी पड़ी। लखनऊ संस्करण को मजबूरन बंद करना पड़ा, सिर्फ दिल्ली का अंक ही प्रकाशित हो पाता था। खराब प्रिंटिंग और तकनीकी खामियों का हवाला देते हुए साल 2008 में इसके दिल्ली अंक को भी बंद करने का फैसला किया गया। उस वक्त अखबार के संपादक थे टीवी वेंकेटाचल्लम।
कांग्रेस ने एजेएल को चलाते रहने के लिए बिना ब्याज और सिक्युरिटी के कई साल तक उसे लोन दिया। ऐसा 2010 तक चलता रहा। मार्च 2009 के आखिर तक एजेएल को दिया गया अनसिक्योर्ड लोन 78.2 करोड़ रुपए का था और मार्च 2010 तक यह बढ़कर 89.67 करोड़ रुपए हो गया। माना जाता है कि कंपनी के पास रीयल एस्टेट से जुड़ी जो संपत्तियां हैं, उनकी वैल्यू इस कर्ज से कहीं ज्यादा है। इसके बावजूद, एजेएल कंपनी ने कांग्रेस से लिए गए लोन को चुकाने के लिए कोई खास कोशिश नहीं की। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मोतीलाल वोरा 22 मार्च 2002 से इस कंपनी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। इससे ठीक पहले, वे ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष थे।
23 नवंबर 2010 को यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड नाम की सेक्शन 25 कंपनी सामने आई। गांधी परिवार के वफादार सुमन दुबे और सैम पित्रोदा जैसे लोग इसके डायरेक्टर थे। 13 दिसंबर 2010 को राहुल गांधी को इस कंपनी का डायरेक्टर बनाया गया। 22 जनवरी 2011 को सोनिया भी यंग इंडिया के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में शामिल हुईं। वोरा और कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य ऑस्कर फर्नांडीज भी उसी दिन यंग इंडियन के बोर्ड में शामिल किए गए। इस कंपनी के 38-38 फीसदी शेयरों पर राहुल और सोनिया की हिस्सेदारी है। बाकी के 24 पर्सेंट शेयर वोरा और फर्नांडीज के नाम हैं।
2010 में कांग्रेस ने एजेएल के हिस्से के 90 करोड़ रुपए के कर्ज को यंग इंडियन पर डालने का फैसला किया। इस तरह से एजेएल के कागजों में यंग इंडियन उसके कर्ज की हिस्सेदार हो गई। वो कर्ज जो कांग्रेस ने ही दिया था। इसके ठीक बाद, दिसंबर 2010 में इस 90 करोड़ रुपए के कर्ज के बदले एजेएल ने अपनी पूरी कंपनी यंग इंडियन को देने का फैसला किया। यंग इंडियन ने इस अधिग्रहण के लिए 50 लाख रुपए चुकाए। इस पूरी डील की वजह से कांग्रेस से 90 करोड़ रुपए का कर्ज लेने वाली एजेएल पूरी तरह यंग इंडियन की सहायक कंपनी में तब्दील हो गई। यंग इंडियन, जिसपर राहुल गांधी, सोनिया गांधी, मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नांडीज का मालिकाना हक है।
भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने सोनिया और राहुल के खिलाफ कर चोरी और धोखाधड़ी का आरोप लगा शिकायत दर्ज कराई। उनकी शिकायत के बाद दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने ईडी को इस मामले में जांच के निर्देश दिए और सोनिया और राहुल पर प्राइमरी जांच का केस दर्ज किया गया। दोनों पर फेमा नियमों का उल्लंघन करने पर मामला दर्ज किया गया। दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मोतीलाल बोरा और ऑस्कर फर्नांडीस के साथ ही यंग इंडियन के दो अन्य डायरेक्टरों-पूर्व पत्रकार सुमन दुबे और टेक्नोक्रेट सैम पित्रोदा को भी समन जारी कर दिया। ऐसा होने पर कांग्रेस नेताओं ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। याचिका में सोनिया-राहुल को कोर्ट में पेश होने से छूट दिए जाने की मांग की गई, जिसे खारिज कर दिया गया। हेराल्ड हाउस में अभी पासपोर्ट का दफ्तर है। इसे लेकर स्वामी का आरोप है कि केंद्र ने अखबार चलाने के लिए जमीन दी थी, न कि कोई बिजनेस करने के लिए।
अदालत में यंग इंडियन द्वारा एजेएल के अधिग्रहण को चुनौती दी गई है। इस मामले में जो अहम सवाल उठे हैं उनमें सोनिया और राहुल की 76 पर्सेंट हिस्सेदारी वाली यंग इंडियन लिमिटेड कंपनी पर एजेएल के 90 करोड़ रुपए की देनदारी क्यों डाली गई? यंग इंडियन के शुरू होने के एक महीने बाद ही एजेएल उसकी सहायक कंपनी बन गई। यंग इंडियन एजेएल की पूरे भारत में स्थित संपत्ित की मालिक बन गई।
एजेएल ने अपनी संपत्ित के कुछ हिस्से का इस्तेमाल करके कर्ज क्यों नहीं चुकाया? यह भी साफ नहीं है कि एजेएल ने यंग इंडियन कंपनी से अधिग्रहण के लिए अपने 1000 से ज्यादा शेयरधारकों की मंजूरी ली कि नहीं?
क्या एजेएल की संपत्ित का आकलन ठीक ढंग से हुआ क्योंकि महज 90 करोड़ रुपए के कर्ज और 50 लाख रुपए के अतिरिक्त भुगतान पर पूरे भारत में मौजूद कंपनी की संपत्ित यंग इंडियन को सौंपने का फैसला कर दिया गया।
कांग्रेस कमेटी में कोषाध्यक्ष, एजेएल में डायरेक्टर और यंग इंडियन में शेयरहोल्डर और डायरेक्टर का पद संभाल रहे मोतीलाल वोरा पर क्या हितों के टकराव का मामला बनता है?