लखनऊ से उठी न्यायिक सुधार की चिंगारी बनेगी ज्वाला
बीते 12 दिसम्बर को जहाँ एक तरफ पूरा देश लोक अदालतों के माध्यम से मुकद्दमो के अम्बार को कम करके न्याय में देरी की बीमारी के इलाज में व्यस्त था तो वहीं आबादी के हिसाब से देश के सबसे बड़े सूबे यूपी की राजधानी लखनऊ के हजरतगंज इलाके में सामाजिक संगठन येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव उर्वशी शर्मा के नेतृत्व में देश भर से आये समाजसेवी 12 फुट ऊंचे पोस्टर के साथ अदालतों की ‘तारीख पे तारीख, दिए जाने की कार्यप्रणाली के खिलाफ हुंकार भर मुकद्दमों का अम्बार इकठ्ठा होने की बीमारी को होने से रोकने के लिए उपाय करने की मांग कर रहे थे. समाजसेवियों ने न्यायिक सुधारों की मांग करते हुए जिलाधिकारी आवास से जीपीओ स्थित महात्मा गांधी पार्क तक ‘न्याय संघर्ष यात्रा 2015’ के नाम से पैदल शांति मार्च निकाला और महात्मा गांधी की प्रतिमा के नीचे मोमबत्ती जलाकर भारत की अदालतों में ‘न्याय’ की जगह ‘तारीख पे तारीख’ ही मिलने की बात रखते हुए अदालती कार्यवाहियों में ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग कराने, अदालतों में मामलों के निपटारे की अधिकतम समय सीमा निर्धारित करने समेत अनेकों मांगों को बुलंद कर न्यायिक भ्रष्टाचार की भर्त्सना की और अदालती कार्यवाहियों में पारदर्शिता और जबाबदेही लाने के लिए अपनी आवाज बुलंद की.
कार्यक्रम की संयोजिका येश्वर्याज की सचिव और आरटीआई कार्यकर्त्ता उर्वशी शर्मा ने एक बातचीत में बताया कि न्याय मिलने में देरी भी मानवाधिकारों का उल्लंघन ही है और इसीलिये भारत की सभी अदालतों में सभी को एक समान,सस्ता,सही और त्वरित न्याय दिलाने के लिए लखनऊ से शुरू की गए इस पहल को अब एक देशव्यापी मुहिम का रूप दिया जाएगा. उर्वशी ने बताया कि लखनऊ से उठी न्यायिक सुधार की इस चिंगारी को देश भर में फैलाकर ज्वाला बनाने की इस मुहिम में येश्वर्याज के साथ साथ दिल्ली की सामाजिक संस्था फाइट 4 जुडिशिअल रिफॉर्म्स, गाजियावाद की राष्ट्रीय सूचना का अधिकार टास्क फोर्स ट्रस्ट और लखनऊ की एस.आर.पी.डी.एम. समाज सेवा संस्थान ने यह निर्णय लिया है कि शीघ्र ही देश के सभी राज्यों की राजधानियों में और उसके बाद देश भर के सभी जिला मुख्यालयों में न्याय संघर्ष यात्राएं निकालकर न्यायिक पारदर्शिता और जबाबदेही की मांग की जायेगी.
उर्वशी ने बताया कि न्यायिक भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए इस विरोध प्रदर्शन के बाद येश्वर्याज ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के माध्यम से देश के राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री,मुख्य न्यायधीश और सभी प्रदेशों के राज्यपालों,मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के न्यायधीशों को समाजसेवियों द्वारा हस्ताक्षरित 5 सूत्रीय ज्ञापन भेजकर जजों के रिक्त
पदों को समयबद्ध रूप से भरने;जजों की नियुक्ति करने,जजों के कार्यों का ऑडिट करने,भ्रष्टाचारी और अन्य मामलों के दोषी जजों की शिकायतों की जांच के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्पेशल ज्युडिशिअल कमीशन जैसे स्वतंत्र आयोगों की स्थापना करने; वर्तमान कानून में संशोधन करके अदालती कार्यवाहियों की आडिओ-वीडिओ रिकॉर्डिंग को अनिवार्य बनाने; सभी ट्रायल कोर्ट और अपीलीय कोर्ट में मामलों के निस्तारण की अधिकतम समयसीमा का निर्धारण करने और जजों के विरुद्ध शिकायतों के निस्तारण की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की मांग की है.
भारतीय संविधान की बात करते हुए उर्वशी ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में स्वतंत्रता और समानता से पहले न्याय को जगह दिया जाना यह स्पष्ट करता है कि संविधान निर्माताओं ने भारत के सभी नागरिकों को न्याय उपलब्ध कराने को प्रमुखता दी थी किन्तु आजाद भारत की सरकारें इस संविधान के लागू होने के 65 सालों के बाद भी न्यायिक प्रक्रियाओं में समानता स्थापित करने में असफल ही रही हैं.उर्वशी ने कहा कि न्यायपालिका द्वारा स्वायत्तता के नाम पर जवाबदेही से बचने के कारण ही न्याय व्यवस्था दूषित हो गयी है और न्याय की एक पारदर्शी और जिम्मेदार प्रणाली विकसित किये बिना इस समस्या का समाधान संभव ही नहीं है.