राहुल व मायावती उपप्रधानमंत्री हों
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक कार्यक्रम में प्रस्ताव रखा कि यदि कांग्रेस मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री स्वीकार करे तो उस स्थिति में केंद्र में कांग्रेस से गठजोड़ किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र में सत्तारूढ़ होने पर इस गठजोड़ का उपप्रधानमंत्री राहुल गांधी को बनाया जा सकता है। यद्यपि बाद में अखिलेश यादव ने लखनऊ में जो बात कही, उससे ध्वनित होता है कि उन्होंने उक्त प्रस्ताव गैरसंजीदगी से किया था। लेकिन परोक्ष रास्ता तो खुल ही गया है। राहुल गांधी भी, जिन्हें देश की जनता प्यार से पप्पू कहती है, उस कार्यक्रम में मौजूद थे, किन्तु उन्होंने पूछे जाने पर भी प्रस्ताव के पक्ष में कुछ नहीं कहा। वह केवल मुस्कुरा दिए। उनकी मुस्कुराहट का यह अर्थ निकाला जा रहा है कि उन्हें प्रस्ताव स्वीकार है तथा वह मम्मी सोनिया गांधी से उसकी सिफारिश करेंगे। लोगों को आशा है कि जिस कांग्रेस की नाव डूबने के कगार पर है, उसे मुलायम सिंह यादव-जैसा सशक्त खेवनहार मिल जाय तो उसका उद्धार हो जाएगा। समाजवादी पार्टी का छोटा खेमा तथा कांग्रेस का बड़ा खेमा इस प्रस्ताव से गद्गद दिखाई दे रहा है। दोनों को पूरी आशा है कि 2019 के लोकसभा-चुनाव में उक्त गठजोड़ केंद्र की सत्ता हासिल कर लेगा।
कुछ लोगों ने सुझाव दिया है कि उस गठजोड़ को भी ‘महागठजोड़’ बनाते हुए उसमें मायावती, अजीत सिंह, मौलाना बुखारी, उबैसी, कम्युनिस्टों तथा कुछ अन्य पार्टियों व लोगों को, जिनका प्यास से गला सूख रहा है, शामिल कर लिया जाय। उस गठजोड़-सरकार में उपप्रधानमंत्री के दो पद बनाए जाएं तथा दूसरा उपप्रधानमंत्री मायावती को बनाया जाय। इससे दलित समाज में यह अच्छा संदेश जाएगा कि दलित की बेटी की उत्तर प्रदेश में जो औकात थी, केंद्र में वह औकात बहुत बढ़ गई है। केंद्र के सर्वाधिक अर्थप्रधान विभाग उपप्रधानमंत्रियों के रूप में राहुल गांधी व मायावती के बीच बराबर बांट दिए जाएं। लोगों के अनुसार केंद्र की उस गठजोड़-सरकार में विदेश मंत्री का पद मौलाना बुखारी को दिया जाय। विदेषों से, विशेषकर भारत के शत्रु देश पाकिस्तान से, उनके अच्छे सम्बंध हैं। उनके साथ एक दर्जन विदेश राज्यमंत्री बनाए जाएं, जिनका चयन उन ‘विभूतियों’ में से किया जाय, जिन्होंने 60 साल के कांग्रेसी राज में खूब ऐश किया तथा अब दुर्दिन के शिकार हैं। हाल में उन्होंने नमकहलाली करते हुए सम्मान-वापसी का योजनाबद्ध अभियान चलाकर विष्वभर में देश एवं मोदी-सरकार को बदनाम करने का कठिन काम पूरा किया तथा बिहार के चुनाव में भाजपा को पराजित कराया। जहां तक गृहमंत्री का सवाल है, उसके लिए सर्वाधिक उपयुक्त पात्र अकबरुद्दीन उबैसी हैं, उनके साथ छोटे भाई अजहरुद्दीन उबैसी को गृहराज्यमंत्री बनाया जाय। वे दोनों भाई गृह विभाग मिलते ही देश की सबसे बड़ी समस्या 15 मिनट के भीतर हल कर देंगे। लेकिन उनके उस जोरदार सफाई-अभियान में देश में जो असीम मात्रा में कचरा निकलेगा, उसे तत्काल समुद्र में फेंकने की ठोस योजना उन दोनों भाइयों को पहले से तैयार कर लेनी होगी। आजम खां को उनका खास सलाहकार बनाया जा सकता है।
सूचना एवं प्रसारण मंत्री महेश भट्ट को बनाना उचित होगा। वह सेंसर बोर्ड को खत्म कर देंगे, जिससे देशवासियों को फिल्मों में चुम्बन एवं संभोग के दृश्य बेरोकटोक देखने को मिलेंगे। महेष भट्ट के विचारों के अनुरूप नई पीढ़ी को उन कलाओं में पारंगत एवं परिपक्व होने में सुविधा हो जाएगी। अजीत सिंह को राज्य पुनर्गठन मंत्री बनाया जाय, ताकि वह उत्तर प्रदेश को 50 टुकड़ों में बांटकर अपनी हसरत पूरी कर सकें। पाकिस्तान में राजदूत का पद सलमान खुर्शीद को मिलना चाहिए तथा उनके साथ मणिशकर अय्यर संयुक्त राजदूत बनाए जाएं। संभव है कि दोनों भारत व पाकिस्तान के बीच ऐसी एकता स्थापित कर दें कि फिर केंद्र सरकार में नवाज षरीफ एवं मुशर्रफ को भी शामिल करना पड़े। चीन में राजदूत पद के लिए हमारे यहां के कम्युनिस्ट नेता सर्वाधिक उपयुक्त हैं। दिग्विजय सिंह, शाहरुख खान, आमिर खान आदि जैसी विभूतियों को भी विदेश में भारत का नाम ‘ऊंचा’ करने का दायित्व सौंपा जाना चाहिए।
और तो सब ठीक है, किन्तु दो समस्याओं का हल कैसे होगा? हाल में मुलायम सिंह यादव स्पष्ट रूप से कई बार घोशणा कर चुके हैं कि समाजवादी पार्टी की पूरी नीति एवं अस्तित्व कांग्रेस-विरोध का रहा है। डाॅ. राममनोहर लोहिया का रोम-रोम कांग्रेस से घृणा करता था तथा वह देश की सारी समस्याओं एवं भ्रष्टाचार की जड़ कांग्रेस, जवाहरलाल नेहरू व इंदिरा गांधी को मानते थे। बिहार के महागठबंधन से मुलायम सिंह इसी कारण अलग हुए थे कि उसमें कांग्रेस को शामिल किया गया। अतः उस कांग्रेस से समाजवादी पार्टी का मेल कैसे होगा? क्या समाजवादी पार्टी अपने प्रेरणास्रोत डाॅ. राममनोहर लोहिया से विश्वासघात करेगी? डाॅ. लोहिया राष्ट्रवादी थे तथा उन्होंने रामायण मेला षुरू कराया था। कांग्रेस तो इन बातों की धुर-विरोधी है। दूसरी समस्या यह है कि कांग्रेस नेहरू वंश के अलावा अन्य किसी को महान मानती ही नहीं तथा मायावती की सूची में भी महान लोगों की बहुत सीमित संख्या है।