कालीचरण पी0जी0 कालेज ने मनाया 42वाँ ‘संस्थापना दिवस
लखनऊ: कालीचरण पी0जी0 कालेज, चौक लखनऊ ने 06 दिसम्बर को समारोहपूर्वक अपना 42वाँ ‘संस्थापना दिवस’ मनाया। इस अवसर पर महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने सरस्वती वन्दना की, रंगारंग प्रस्तुति दी एवं अपने उद्बोधन के द्वारा महाविद्यालय के अतीत पर प्रकाश डाला। उपस्थित प्राध्यापकों ने महाविद्यालय से अपने जुड़ाव को व्यक्त करते हुए इसके गौरवमयी परम्परा पर अपने विचार रखे। डाॅ0 अर्चना मिश्र ने छात्र-छात्राओं का उत्साहवर्धन करते हुए बताया कि कालीचरण कालेज की नींव पक्के पुल के निर्माण के साथ ही 1913 में रखी गयी थी। डाॅ0 पंकज सिंह ने छात्र-छात्राओं को अपने पूर्व छात्र-छात्राओं के गौरवमयी परम्परा को याद करते हुए बताया कि मोहनलालगंज के सांसद कौशल किशोर और आनन्द शुक्ल जैसे अधिकारी कालीचरण डिग्री कालेज के छात्र रहे हैं। इतना ही नहीं अनेक छात्र-छात्रा बैंकों में मैनेजर, विभिन्न संस्थानों में प्राध्यापक और मीडिया के क्षेत्र में पत्रकार और छायाकार के पद पर शोभायमान हैं। डाॅ0 पंकज सिंह ने यह भी बताया कि एक समय ऐसा था कि महाविद्यालय में शिक्षकों की भारी कमी हो गयी थी लेकिन 90 के दशक के बाद उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग से चयन के उपरान्त शिक्षकों की संख्या प्राप्त हो गयी, फिर काॅमर्स फैकल्टी एवं समाजशास्त्र विभाग के परास्नातक होने तथा स्ववित्तपोषित कक्षाओं के चलने से शिक्षकों एवं छात्र-छात्राओं की संख्या में पर्याप्त वृद्धि हुई जो आज बढ़कर 42 शिक्षक एवं 03 हजार छात्र-छात्राओं के रूप में हमारे सामने हैं।
महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ0 देवेन्द्र कुमार सिंह ने अपने सम्बोधन में महाविद्यालय के स्वनामधन्य प्रकाश-स्तम्भ कालीचरण जी के उदार दो लाख रजत मुद्रा के दान और उनके 17 एकड़ भूमि दान से 1912-13 में कालीचरण कालेज के मूर्तरूप देने के सम्पूर्ण इतिहास पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कालीचरण जी अन्तिम नवाब वाजिद अली शाह के कलकत्ता निर्वासन के क्रम में स्वयं भी कलकत्ता के मटियाबुर्ज में जाकर बस गये और वहाँ उन्होंने जो धन अर्जित किया उसे वसीयत के रूप में तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर (कालान्तर में जिलाधिकारी) को भेज दिया कि मेरी भूमि जो कोनेश्वर मन्दिर के बगल में है वहाँ उक्त धन से एक विद्यालय बनाया जाए। अतः बाबू गंगा प्रसाद वर्मा के सद्प्रयत्नों से कालीचरण जी का सपना 1913 में जाकर साकार हुआ। 1913 में स्थापित कालीचरण इन्टर कालेज पल्लवित-पुष्पित होता हुआ 06 दिसम्बर, 1973 को डिग्री कालेज के रूप में स्थापित हुआ। प्राचार्य डाॅ0 देवेन्द्र सिंह ने कालीचरण इण्टर कालेज में हिन्दी के शिक्षक एवं हास्य कवि के रूप में प्रसिद्ध ‘सनकी’ जी के कथन को याद करते हुए कहा कि – जहाँ पहले पढ़ते थे हम ए और बी, अब वहाँ पढ़ेंगे बीए ।