समाजवादी पेंशन योजना को हाई कोर्ट से मिली क्लीन चिट
लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार की समाजवादी पेंशन योजना का लाभ धर्म विशेष के लोगों को देने का आरोप लगाकर दाखिल की गई याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा है कि यह योजना विभेदकारी नहीं है और जीवन यापन करने में असमर्थ आर्थिक व सामाजिक रूप से अतिपिछड़ों के उत्थान के लिए लागू की गयी है। संविधान के अनुच्छेद 15 के अन्तर्गत ऐेसे लोगों के उत्थान के लिए राज्य सरकार को योजना लागू करने का अधिकार है।
यह आदेश न्यायमूर्ति वीके शुक्ल तथा न्यायमूर्ति बीके श्रीवास्तव की खंडपीठ ने हिंदू-फ्रंट फॉर सोशल जस्टिस की तरफ से दाखिल जनहित याचिका पर दिया है। याची का कहना था कि पेंशन योजना में लाभार्थियों में 90 फीसद अल्पसंख्यक समुदाय के धर्म विशेष के लोग शामिल हैं। योजना में धर्म के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है। प्रदेश के महाधिवक्ता विजय बहादुर सिंह, उदय प्रताप सिंह व अशोक कुमार लाल ने सरकार का पक्ष रखा। तर्क दिया कि समाजवादी पेंशन योजना के तहत प्रथम चरण में 40 लाख परिवारों को लाभ पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। इसमें अल्पसंख्यकों सहित गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे सभी नागरिकों को प्रतिमाह 500 रुपये से सात सौ रुपये तीन वर्ष के लिए दिया जाना है। सरकार ने लाभार्थियों पर शर्त लगायी है कि महिला को प्रसव स्वास्थ्य केंद्र में करना होगा, बच्चों को सभी टीके लगवाने होंगे तथा बच्चों को स्कूल भेजना अनिवार्य होगा। दो पहिया वाहन रखने वालों को पेंशन से बाहर रखा गया है। योजना गरीबों के लिए है। धार्मिक भेदभाव नहीं किया गया है। यदि समुदाय विशेष में गरीब अधिक हैं तो योजना को विभेदकारी नहीं माना जा सकता। योजना अनुच्छेद 15 (3) के प्राविधानों के अनुरूप है। सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को चिन्हित कर योजना का लाभ दिया जा रहा है।