बहस: नागपुर में इंडिया जीती या टेस्ट क्रिकेट हारा
नागपुर में टीम इंडिया ने 124 रन से जीत हासिल करते हुए दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ सीरीज में 2-0 की अजेय बढ़त हासिल कर ली। बेशक टीम से इस जीत का श्रेय नहीं छीना जा सकता, लेकिन मैच जिस तरह की पिच पर खेला गया, उसने क्रिकेट समीक्षकों और पूर्व खिलाडि़यों में नई बहस को जन्म दे दिया है। मैच में गेंदबाजों का इस कदर दबदबा रहा कि तीन दिन में ही हार-जीत का फैसला हो गया। यह सबकुछ ऐसे समय हुआ, जब टेस्ट क्रिकेट के प्रति दर्शकों में रुचि फिर से जगाने के लिए पिंक बॉल से डे-नाइट टेस्ट मैच की शुरुआत हुई है।
नागपुर के जामथा का विकेट पहले दिन से ही ऐसा व्यवहार कर रहा था कि इसे ‘अनप्रिपेयर्ड विकेट’ की श्रेणी में रखना ही उचित होगा। पहले दिन ही गेंद लगभग 90 डिग्री के एंगल से टर्न कर रही थी। नतीजा यह हुआ कि बल्लेबाजों के लिए यह कब्रगाह साबित हुआ। यही कारण रहा कि पहली पारी में 40 रन बनाने वाले भारतीय ओपनर मुरली विजय मैच के सर्वश्रेष्ठ स्कोरर रहे। घरेलू सीरीज में मेजबान टीम की ओर से अपनी मर्जी के विकेट बनाने की बात समझी जा सकती है। दुनियाभर की टीमें ऐसा करती भी रही हैं, लेकिन नागपुर के विकेट ने जैसा व्यवहार किया, उसने टीम इंडिया की जीत को कहीं न कहीं फीका जरूर किया है।
विकेट ऐसा था कि पहले दिन से ही इस पर धूल उड़ रही थी। कई गेंदें इतनी नीची रह रही थीं कि बल्लेबाज दोहरे हुए जा रहे थे। यही नहीं, कई गेंदें तो इतनी घूम रही थीं कि स्थापित बल्लेबाज भी ‘अनाड़ी’ लग रहे थे। यह सवाल उठना लाजिमी है कि ऐसे विकेट ‘बनाकर’ आखिर हम साबित क्या करना चाहते हैं। दुनियाभर के ख्यातनाम क्रिकेटरों ने नागपुर के विकेट की आलोचना करते हुए इसे स्तर से नीचे का बताया है।
ग्लेन मैक्सवेल, वसीम अकरम, मैथ्यू हेडन, सभी की राय में यह बेहद खराब विकेट था। अकरम तो यह कहने से भी नहीं चूके कि क्रिकेट की शीर्ष संस्था आईसीसी को टेस्ट मैचों के विकेट तैयार करने का काम अपने पास ले लेना चाहिए। यदि वह ऐसा नहीं करती, तो स्तरीय विकेट न मिलने पर अंक काटने शुरू कर देना चाहिए। इसका सीधा असर टीमों की रैंकिंग पर पड़ेगा।
पाकिस्तान के इस महान तेज गेंदबाज ने कहा कि यदि ऐसे ही ‘अखाड़े’ जैसे विकेट मिलते रहे, तो टेस्ट क्रिकेट का कबाड़ा होना तय है। महान सुनील गावस्कर ने भी दबी जुबान में माना कि तीसरे टेस्ट मैच के विकेट को आदर्श नहीं माना जा सकता। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि बल्लेबाजों को हर तरह के विकेट पर खेलना आना चाहिए। ऐसे विकेट का प्लस पाइंट यह होता है कि तेज गेंदबाजी के लिए मददगार विकेट यदि असमान उछाल या व्यवहार करे, तो पिच को खतरनाक बताते हुए मैच रद्द कर दिया जाता है। पूर्व में कुछ मौकों पर ऐसा हो भी चुका है, लेकिन पहले दिन से ही स्पिन के मददगार विकेट के लिए ऐसी बात नहीं है।
दरअसल क्रिकेट या किसी भी खेल की अवधारणा ‘ईवन चांस’ पर आधारित है। तात्पर्य यह कि बल्लेबाजों और गेंदबाजों, दोनों को बराबर चांस मिले। विकेट इन दोनों तरह की विधाओं के माफिक हो। यह बात अलग है कि वनडे में विकेट दर्शकों को खींचने के लिए बल्लेबाजी के मददगार बनाए जाते हैं, तो ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में तेज गेंदबाजी के मददगार, लेकिन किसी भी स्थिति में एक पक्ष के अवसर पूरी तरह खत्म नहीं होते।
ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका या इंग्लैंड के विकेट शुरुआती सत्र में तेज गेंदबाजी को मदद करने के बाद बल्लेबाजों के लिए भी अनुकूल होते जाते हैं। वास्तव में यही क्रिकेट के खेल का चरित्र है और इसी के कारण यह खेल इतना लोकप्रिय है। दुर्भाग्य से नागपुर में ऐसा नहीं हुआ। देश में यदि ऐसे ही विकेट बनाए जाते रहे, तो भले ही हम घरेलू मैदान में जीतें, लेकिन एशियाई उप महाद्वीप के बाहर तेज गेंदबाजी के आगे संघर्ष करते रहेंगे। बेशक टीम इंडिया नागपुर टेस्ट जीती है लेकिन विकेट के अजीबोगरीब व्यवहार को देखते हुए क्या इसे टेस्ट क्रिकेट की ‘हार’ नहीं माना जाना चाहिए…।