समीक्षा: उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी ‘स्पेक्टर’
जेम्स बॉन्ड फ्रैंचाइज की नई फिल्म ‘स्पेक्टर’ के बारे में। ये बात तो माननी पड़ेगी की ‘स्कायफॉल’ जैसी फिल्म से बेहतर फिल्म बनाना बेहद मुश्किल है। डैनियल क्रेग और डाइरेक्टर सैम मेंडेस ने एक बेहतरीन एक्शन मूवी दी थी, जिसमें एमोशनल डेप्थ भी थी, स्ट्रॉंग कैरेक्टर्स थे और वो पिछली बॉन्ड फिल्मों की याद दिलाती थी। जाहिर तौर पर यह हाल ही में आई 007 फिल्मों में सबसे बेहतरीन फिल्म थी और इसलिए उस फिल्म ने पूरी दुनिया में बिलियन डॉलर्स की कमाई भी की।
इन सभी के बावजूद क्या ये हैरानी की बात है कि मेंडेस द्वारा ही निर्देशित नई जेम्स बॉन्ड फिल्म ‘स्पेक्टर’ उम्मीदों पर खरी नहीं उतार पाती? मेक्सिको सिटी में फिल्माया गया फिल्म का शानदार ओपनिंग सीक्वेन्स देख आप इस बात का अंदाजा नहीं लगा पाएंगे। कैमरा बॉन्ड को एक सिंगल ट्रैक शॉट में फॉलो करता हुआ, भीड़ भाड़ से भारी तंग गलियों से लेकर, एलिवेटर, होटेल रूम और फिर रूफ टॉप तक पहुंचता है जहां बड़ा धमाका होता है। और इसके बाद हवा में उड़ रहे हेलिकॉप्टर में होने वाली फाइट आपकी सांसें रोक देगी। सच पूछा जाए, तो ‘स्पेक्टर’ कहीं भी ‘स्कायफॉल’ या ‘कसीनो रॉयल’ के सस्पेंस या इमोशनल इंपैक्ट को मैच नहीं कर पाती, पर ये एक अच्छी ब्लॉक बस्टर एंटरटेनमेंट फिल्म है।
कहानी शुरू होती है जब बॉन्ड को एक खूफिया मेसेज मिलता है जिसके बाद वो एक इंटरनैशनल क्रिमिनल ऑर्गनाइजेशन से वाकिफ होता है जिसका नाम है स्पेक्टर। वहीं लंदन में ब्रिटिश इंटेलिजेन्स के नए हेड यानी एंड्रयू स्कॉट ने एम यानी राल्फ फियनेस की जिंदगी में मुश्किलें खड़ी कर रखी हैं। ये धमकी देते हुए की वो डबल-0 प्रोग्राम को खत्म कर देगा। बॉन्ड, रोम में एक खूबसूरत विधवा औरत यानी मोनिका बेलूची के साथ इश्क लड़ाता है। उसके बाद ऑस्ट्रियन आल्प्स में वो एक पुराने विलेन की बेटी मेडेलिन स्वान यानी ली सेडोक्स से मिलता है और फिर नॉर्थ आफ्रिका पहुंचता है जहां वो चलती ट्रेन में डेव बटीस्टा के साथ लड़ाई करता है।
इन सब के बीच बॉन्ड उससे क्रिमिनल मास्टरमाइंड को ढूंढ रहा है जो असल में उसकी सारी परेशानियों की वजह है। क्रिस्टोफ वॉल्ट्ज द्वारा निभाया गया फ्रैन्ज ओबेरहौजर का किरदार बहुत ही जाना पहचाना लगता है और विलेन के तौर पर बिल्कुल भी कन्विंसिग नहीं लगता, जिसकी वजह है उसकी बैक स्टोरी जो उसे बॉन्ड से लिंक करती है। खुद फिल्म की भी यही प्राब्लम है- ये ओवर प्लॉटेड है, बहुत लंबी है और ये खूब सारी कड़ियों को जोड़ने की कोशिश कर रही है।
देखा जाए तो ‘स्पेक्टर’ सिर्फ ‘स्कायफॉल’ के कंपैरिजन में निराश करती है। यहां मेंडेस एक्शन में कोई कमी नहीं रखते और फिल्म को खूब सारे ह्यूमर से भर देते हैं जिसमे शामिल है बेन व्हीशॉ यानी की क्यू जो कई सारे मजेदार गैजेट्स बनाता है। फिल्म बॉन्ड मैथॉलजी की याद दिलाती है। जैसे पुराने विलेन का फिर एक बार वापस आना, 007 का ट्रस्टेड एस्टन मार्टिन और विलेन का एक ताकतवर गुंडा जो हमारे हीरो को मुश्किलों में डाल देता है। ये सब ढाई घंटे लंबी इस फिल्म के बावजूद भी मजेदार लगता है। डैनियल क्रेग जो टॉम फोर्ड की जगह लेते हैं। अच्छे फॉर्म में हैं और साफतौर पर बॉन्ड के किरदार में वो इतने कंफर्टेबल पहले कभी नहीं दिखे।
उनके एक्शन सीन्स में वो सेन्स ऑफ अर्जेन्सी है, पर स्क्रिप्ट की कमियों की वजह से आप ना ही ली सेडोक्स के साथ उनके रोमांस में कोई दिलचस्पी रखते हैं और ना ही आप इस बात की परवाह करेंगे की वो क्रिस्टोफर वॉल्ट्ज को हरा सकते हैं या नहीं। ‘स्पेक्टर’ पूरी तरह से किसी मसाला बॉलीवुड फिल्म जैसी है और यह कोई बुरी बात नहीं है लेकिन अगर वो थोड़ी और मेहनत करते तो इससे ज्यादा अच्छी फिल्म दे पाते। मैं ‘स्पेक्टर’ को पांच में से साढ़े तीन स्टार देता हूं।