लफ्जों के कारण बिहार में हुआ मोदी का बुरा हाल: मुनव्वर राणा
कोटा। अवार्ड लौटा चुके मशहूर शायर मुन्नवर राणा ने एक बार फिर केन्द्र सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए हैं। दादरी कांड से नाराज राणा ने टोंक जाते समय कोटा में पत्रकारों से कहा, ‘काले कपड़े नहीं पहने तो इतना तो कर ले, जरा देर के लिए कमरे में अंधेरा कर ले…’ शर्मिंन्दगी से कहे जो हुआ गलत हुआ। आप (प्रधानमंत्री मोदी) सबसे बड़े हो और जिम्मेदारी समझनी चाहिए।
राणा ने कहा कि बिहार चुनाव इसलिए हारे क्योंकि मोदी ने कहा ‘लालू जी अपनी लड़की को सेट कर रहे हैं।’ साहित्य की जुबां में ये बात गाली की तरह है। मेरे जैसा जाहिल भी उनके साथ होता तो उन्हें यह लफ्ज बोलने नहीं देता। लफ्जों के ही कारण ये हाल हुआ है। अच्छा शासक वो है जो 60 साल की खराबियों को पांच साल में ठीक कर दे, तो ही इतिहास में अकबर की तरह मोदी द ग्रेट लिखा जाएगा। राणा ने कहा कि देश ने अभी तक यह फैसला नहीं किया है कि आतंक शब्द का मतलब क्या है। जिस दिन आतंक की परिभाषा तय हो गई बहुत सारी पार्टियां प्रतिबंधित हो जाएंगी।
कालिख मल दो, मरवा दो, जेल में डाल दो। न कलम रुकेगी, न जुबां रुकेगी। देश के हित में बोल रहे हैं तो बात सुनी जानी चाहिए। प्रधानमंत्री ओहदे में बड़े हो सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं कि हम प्रधानमंत्री से कम दिमाग रखते हैं।
प्रधानमंत्री का फोन आना प्लस पाइंट है। इसका मतलब उनको चिंता जरूर है कि ठीक होना चाहिए। मेरा सुझाव था कि कुछ लोगों को और बुलाइए, मैं बहुत छोटा हूं उम्र और इल्म दोनों में। विचारधाराएं अलग हो सकती है, लेकिन चर्चा सामूहिक होनी चाहिए। एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए, ब्लड का तो गु्रप हो सकता है, लेकिन आंसू का कोई गु्रप नहीं होता।
इसे किसी पार्टी या लॉबी से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। मूल बात पर जाना चाहिए कि बात क्या है, दादरी काण्ड अखलाक के घर पर आतंकी हमला था। सरकार ने हमें कोई बंगला-कोठी नहीं दी। जान खुदा ने दी है, देश को जरूरत पड़ी तो जान भी दे देंगे।
अभी उतना माहौल नहीं बढ़ा है लेकिन ये इशारे हैं कि इस तरह के हंगामे और बढ़ते जाएंगे। या तो बेलगाम लीडर मोदी के कंट्रोल में नहीं हैं या ये वो दीमक हैं जो मोदी जी को खा रहे हैं। इन बेलगामों को कंट्रोल करना चाहिए। सरकार को आइने पे झुंझलाने से पहले अपने चेहरे की कमी भी देखनी चाहिए।
पीएमओ में सब ऐसे लोग हैं, जो पीएम को देख कर खड़े हो जाते हैं। कुछ ऐसे लोग भी होने चाहिए जिन्हें देख पीएम खड़े हो जाएं। अकबर जैसा भी बादशाह था, लेकन उसके पास नौ रत्न थे। पंडित नेहरू व कुछ-कुछ इंदिरा गांधी के बाद जितने भी प्रधानमंत्री हुए, उनके पास कोई रत्न नहीं। अनुपम खेर के मार्च पर उन्होंने कहा कि मेरी पत्नी एमपी होती तो मुझे भी यही करना पड़ता। साहित्यकारों का झगड़ा है, नौटंकी के लोगों को बीच में आने की क्या जरूरत है। मुम्बई वाले गूंगे हैं, हम लिखते हैं जब वे बोलते हैं।