मोदी की चुप्पी देश में चल रहे हालात का समर्थन हैः नयनतारा सहगल
चंडीगढ़। पंडित जवाहर लाल नेहरू की भांजी नयनतारा सहगल ने गुरुवार को देश में बढ़ती असहिष्णुता के सवाल पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। सहगल ने कहा कि हर देश में हर सरकार गलतियां करती है, लेकिन ये सरकार जो कर रही है वो पहले कभी नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि मोदी और उनकी सरकार हिंदुत्व को जिस तरह से प्रमोट कर रही हैं वो ठीक नहीं है। गौरतलब है कि सहगल करेंट टॉपिक्स पर लिखने के लिए मशहूर हैं। उल्लेखनीय है कि नयनतारा सहगल ही वो पहली लेखिका हैं, जिन्होंने सबसे पहले साहित्य एकेडमी अवार्ड लौटाया था। उन्हें यहां चंडीगढ़ लिट्रेचर फेस्टिवल में अदब फाउंडेशन की तरफ से लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा। उन्हें एक लाख रुपए कैश के अलावा एक प्लेक और शॉल दिया जाएगा।
सहगल ने कहा कि “चुप्पी साधकर और विचारों की स्वतंत्रता के प्रति इस तरह का रवैया अपनाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में चल रहे हालात का समर्थन कर रहे हैं। फासिस्ट टेक्नीक का इससे बेहतर उदाहरण कोई और नहीं हो सकता। हिटलर ने भी यही रास्ता अपनाया था।” उन्होंने कहा कि हर देश की सरकार अलग-अलग तरह की गलतियां करती हैं, पर मौजूदा सरकार जिस तरह की गलतियां कर रही है, ऐसा पहले कभी भी नहीं हुआ। नरेंद्र मोदी ने अपने चुनाव कैंपेन में हमेशा देश के विकास की बात की थी। हिंदुत्व की तो कहीं झलक भी नहीं थी। वह हिंदू राष्ट्र, दूसरे शब्दों में हिंदू पाकिस्तान प्रोमोट कर रहे हैं। जबकि उन्हें इस बात को समझना चाहिए कि हम भारतीय मुसलमान या भारतीय हिंदू नहीं बल्कि भारतीय हैं।
उन्होंने कहा कि, “1984 सिख दंगों के विरोध में भी मैंने और मेरी मां ने आवाज उठाई थी, तब मेरी कजिन इंदिरा गांधी हमसे काफी नाराज हुई थीं। आज भी गलत हुआ है और मैंने आवाज उठाई है। आज जो लोग उन्हें पाखंडी कह रहे हैं या विश्वभर में भारत को बदनाम करने का इलजाम दे रहे हैं। उनसे मैं बस इतना कहूंगी कि अपने प्रजातंत्र के कारण ही भारत ने विश्वभर में इज्जत पाई है और आज जो देश में हो रहा है, उससे क्या देश की छवि खराब नहीं हो रही? मुझे लगता है कि भारत जैसे सेक्युलर देश में हमें अपनी बात रखने का हक है। इस दिशा में सबसे पहले मेरा अवॉर्ड लौटाना भी इस बात को ही सपोर्ट करता है कि कुछ तो है जो गलत हो रहा है। यह मेरा एक नॉन-वॉयलेंट प्रोटेस्ट है। अब इस प्रोटेस्ट को आगे बढ़ाते हुए वह मौजूदा हालातों पर शॉर्ट स्टोरीज की एक किताब भी लिखेंगी। उन्होंने कहा यह पहली बार नहीं है एमरजेंसी के समय भी उन्होंने साहित्य अकादमी से फ्रीडम ऑफ स्पीच ऑफ राइटर्स पर सेंसरशिप के प्रति आवाज उठाने के लिए कहा था। उस दौरान कई राइटर्स को सजा हुई थी। चूंकी उस वक्त अकादमी से कोई पॉजिटिव रिस्पॉन्स नहीं मिला था, इसलिए एक बोर्ड मेंबर होने के नाते मैंने अपना इस्तीफा दे दिया था।”