निकाय चुनाव में शिवसेना ने बीजेपी पर मारी बाज़ी
मुंबई: शिव सेना ने मुंबई के उपनगर कल्याण-डोंबीवली निकाय चुनाव में जीत हासिल कर ली है। इस चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना गठबंधन के बीच की दरारें काफी खुलकर सामने आई हैं। सेना ने 120 में से 52 सीटों पर जीत हासिल की है, वहीं भाजपा ने 41 सीटों पर कब्ज़ा जमाया है। दो सीटों पर मतदान नहीं हुए थे।
वैसे तो यह दोनों पार्टियां महाराष्ट्र की मौजूदा सरकार में सहयोगी हैं लेकिन मुंबई के उपनगर नगर निकाय चुनाव में दोनों एक दूसरे को कड़ी टक्कर देते नज़र आए। एक तरह से यह चुनाव दोनों ही पार्टियों के लिए प्रतिष्ठा का मुद्दा बन गया था। अलग से चुनाव लड़ने का फैसला शिवसेना का था और इसके बाद पूरे अभियान में दोनों पार्टियों के बीच इतनी कड़वाहट दिखाई दी कि पिछले हफ्ते तो शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने गठबंधन से हाथ खींच लेने की धमकी भी दे डाली।
यह टकराव तब सामने आया जब महाराष्ट्र सरकार के मंत्री और शिवसेना के नेता एकनाथ शिंदे ने यह आरोप लगाते हुए इस्तीफा देने की बात कही कि उनकी सहयोगी पार्टी (भाजपा) सेना के कार्यकर्ताओं को नीचा दिखाती रहती है। उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा लेने से इंकार कर दिया और कहा कि ‘अगर सरकार को इतना ही अंहकार है तो हम सब साथ में इस्तीफा देंगे। एकनाथ शिंदे अकेले त्यागपत्र नहीं देंगे।’
इसके जवाब में भाजपा नेता और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस पूरे विरोध को ‘ड्रामा’ का नाम दिया। फडणवीस के नेतृत्व में ही अपने सहयोगी पार्टी के खिलाफ भाजपा ने कल्याण-डोंबीवली से चुनाव लड़ने की हिम्मत जुटाई जो मूलतः शिवसेना का गढ़ माना जाता है। 44 साल के मुख्यमंत्री ने इस इलाके के चुनावी अभियान में कोई कसर नहीं छोड़ते हुए स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का ऐलान भी कर दिया।
फिलहाल नगर निकाय पर भाजपा-शिवसेना दोनों का ही राज है और लगभग एक महीने पहले शिवसेना ने पूरी 122 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था जिसके बाद इस दस साल पुराने गठबंधन को लेकर कई सवाल खड़े होने लगे हैं। गौरतलब है कि 2017 में होने वाले मुबंई के अहम नगरीय निकाय चुनाव होने वाले हैं और उससे पहले शिवसेना का इस तरह अकेले चुनाव लड़ने का फैसले इस गठबंधन के आखिरी दिनों की ओर भी संकेत करता दिख रहा है।
यह दोनों ही पार्टी केंद्र के साथ साथ महाराष्ट्र सरकार में भी एक दूसरे की सहयोगी है जहां शिवसेना ने भाजपा को विधानसभा में बहुमत हासिल करने में मदद की है। पिछले साल विधानसभा चुनाव में 288 सदस्यों की सभा में भाजपा ने 122 सीट पर कब्ज़ा जमाया था और 23 सीटों से बहुमत हासिल करने से रह गई थी। दूसरे नंबर पर 63 सीटों से शिवसेना थी जिसे तगड़ा झटका लगा था क्योंकि अभी तक इस गठबंधन में पार्टी का दबदबा ही रहा था। कड़ा दिल करके सेना ने सरकार में शामिल होने का फैसला तो कर लिया लेकिन अपने रोल में इस तरह की कटौती शायद यह पार्टी अभी तक पचा नहीं पाई है।