मूर्तियों का जल में विसर्जन मूर्खतापूर्ण तरीकाः हाई कोर्ट
चेन्नई। मद्रास हाई कोर्ट ने भगवान की मूर्तियों को जल में विसर्जित किए जाने की आलोचना की है। कोर्ट ने कहा है कि यह पूरे इको सिस्टम को प्रदूषित करता है। कोर्ट ने इस चलन को “पानी के प्रति एक मूर्खतापूर्ण तरीका” तरीका बताते हुए कहा कि इसे खत्म कर दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने गुरूवार को कहा कि जल में मूर्तियों का विसर्जन करने की परंपरा और आदत से एक ओर जहां पानी प्रदूषित होता है वहीं मछलियों और पक्षियों के लिए खतरा पैदा होता है।
उन्होंने कहा, “विसर्जन के समय मिट्टी, बांस, घास, लकड़ी, धातु, जूट, रंग, रंगे हुए कपड़े, फूल, धूप-अगरबत्ती, कपूर और राख जैसी चीजें भी पानी में मिल जाती हैं। मूर्ति बनाने में जिन जहरीले रसायनों का इस्तेमाल होता है वह विसर्जन के बाद पानी में मिल जाती हैं और जलीय स्रोतों के लिए गंभीर खतरा पैदा करती हैं।”
जस्टिस एस.वैद्यनाथन ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। वह 2 आरोपियों की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। दोनों पर पिछले महीने हुए गणेशोत्सव में विनायक चतुर्थी के दौरान प्रतिमा विसर्जित करने के दौरान हुए एक झगड़े में हत्या की कोशिश करने व फसाद करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
कोर्ट ने इसका तरीका सुझाते हुए कहा है कि त्योहार के समय विशेष इलाकों में कृत्रिम तालाब बनाकर उसमें प्रतिमाएं विसर्जित करने का काम किया जा सकता है। उन्होंने कहा, “प्रतिमा विसर्जन के नाम पर जलीय स्रोतों का प्रदूषण होने से रोकने के लिए यह बेशक एक कारगर उपाय है।” उन्होंने कहा, “पानी की पहले से ही कमी है। ऐसे में उसे और प्रदूषित करना तार्किक और समझदारी नहीं है। पानी व जलीय स्रोतों के प्रति इस मूर्खतापूर्ण बर्ताव को खत्म कर दिया जाना चाहिए।”