रोज किताब पढ़ने से ज्ञानवर्द्धन के साथ मन को शांति मिलती है: नाईक
राज्यपाल ने किया 13वें राष्ट्रीय पुस्तक मेले का उद्घाटन
लखनऊः उत्तर प्रदेश के राज्यपाल, श्री राम नाईक ने आज मोती महल लान में आयोजित 13वें राष्ट्रीय पुस्तक मेले का उद्घाटन किया। इस अवसर पर भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य महाप्रबंधक गौतम सेन गुप्ता, मुरलीधर आहूजा संरक्षक पुस्तक मेला, देवराज अरोड़ा एवं उमेश ढल आयोजक सहित बड़ी संख्या में पुस्तक प्रेमीजन उपस्थित थे। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि 13वाँ पुस्तक मेला भारतीय संविधान और पूर्व राष्ट्रपति डाॅ0 ए0पी0जे0 कलाम को समर्पित है। डाॅ0 ए0पी0जे0 अब्दुल कलाम जब भी लखनऊ आते थे उनके आग्रह पर राजभवन में रूकते थे तथा कई बार उन्होंने अपनी पुस्तकें भी भेंट की। डाॅ0 कलाम ऐसे राष्ट्रपति थे जिनका दलीय संबंध नहीं था। अपने राष्ट्रपति पद के कार्यकाल के बाद भी वे सक्रिय रहे एवं भारत विश्व शक्ति कैसे बने, इसको साकार करने के लिए प्रयासरत रहे। राज्यपाल ने डाॅ0 कलाम को याद करते हुए अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
राज्यपाल ने पुस्तक मेले के उद्घाटन समारोह में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि पुस्तक प्रेमियों की भीड़ को देखते हुए लगता है कि लोग किताब पढ़ते हैं। रोज किताब पढ़ने से ज्ञानवर्द्धन होता है और मन को शांति मिलती है। आज अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस है। वृद्ध जनों का किताब से बढि़या कोई दूसरा साथी नहीं होता। पुस्तके कभी अकेलापन नहीं महसूस होने देती हैं। पुस्तक पढ़ने की प्यास होनी चाहिए तथा खरीदकर पढ़ने की आदत डालें। उन्होंने कहा कि पुस्तक पढ़ने से सात्विक आनन्द मिलता है।
श्री नाईक ने बताया कि उन्होंने राज्यपाल पद की शपथ लेते हुए कहा था कि पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करते रहेंगे जिसका वे पालन भी करते हैं। उन्होंने उपस्थित जन समूह से यह भी अनुरोध किया कि उनकी कार्यपद्धति से संबंधित यदि कोई सुझाव हों तो वे उस पर विचार करेंगे।
राज्यपाल ने मेले में उपस्थित पुस्तक प्रेमियों को भारत के संविधान की मूल सुलिखित प्रतिलिपि (हिन्दी संस्करण) के संक्षिप्त इतिहास तथा संविधान में प्रयोग निदर्श-चित्रों की सूची प्रदर्शित की। संसद भवन में भारत का संविधान की अंग्रेजी प्रति 1955 में आम जनता के अवलोकनार्थ रखी गयी थी। उनके सुझाव पर 1999 से संसद भवन में संविधान की हिन्दी प्रति भी आम जनता के अवलोकनार्थ रखी गयी है।
श्री नाईक ने बताया कि 1956 में भारत के मूल संविधान का सुलेख (हिन्दी संस्करण) नासिक के श्री वसन्त कृष्ण वैद्य द्वारा तैयार किया गया। सुलिखित कागज को नन्द लाल बोस, अरूण कुमार दास एवं चितरंजन जैसे सुप्रसिद्ध चित्रकारों द्वारा वैदिक काल, मोहनजोदड़ों एवं स्वतंत्रता संग्राम के चित्रों से सुसज्जित किया गया। उन्होंने बताया कि हिन्दी संस्करण के पृष्ठों पर चित्रकारी के अतिरिक्त किनारों पर असली सोने के स्प्रे से नक्काशी की गयी है। भारत के संविधान की मूल सुलिखित प्रतिलिपि को वैज्ञानिक पद्धति से संरक्षित रखने हेतु सावधानीपूर्वक रखा गया है।
राज्यपाल ने बताया कि संविधान निदर्श चित्रों में 22 प्रकार के चित्र हैं जिनमें श्रीराम की लंका पर विजय, बुद्ध के जीवन की झांकी, सम्राट अशोक द्वारा भारत और विदेशों में बौद्ध धर्म के प्रसार को चित्रित करता एक दृश्य, अकबर का चित्र और मुगल वास्तुकला, टीपू सुल्तान और लक्ष्मीबाई के चित्र, महात्मा गांधी के चित्र, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और अन्य देशभक्त भारत से बाहर रहकर भारत माता को स्वतंत्र कराने का प्रयास करते हुए एवं हिमालय का दृश्य आदि सम्मिलित हैं।