नई दिल्ली : वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में पिछला दशक 1970 और 1980 के दशक की तरह ‘बर्बाद’ रहा क्योंकि निर्णय लेने की प्रक्रिया प्रधानमंत्री कार्यालय से बाहर चली गयी थी, जबकि अब ऐसा नहीं है। जेटली ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के कामकाज में कोई बाहरी हस्तक्षेप नहीं है।

उन्होंने यहां इंडिया इकनोमिक कन्वेंशन में कहा, ‘निसंदेह रूप से प्रधानमंत्री का निर्णय अंतिम होता है। कोई सरकार, कोई वित्त मंत्री या अन्य कोई भी मंत्री कभी प्रधानमंत्री के पूरे समर्थन के बिना बदलाव और सुधारों की श्रृंखला को लागू नहीं कर सकते।’ जेटली ने कहा कि देश में 30 साल बाद बहुमत की सरकार चुनने के लिए मतदाताओं का आभार है।

उन्होंने कहा, ‘30 साल के बाद भारत को एक पार्टी की बहुमत सरकार मिली, फिर भी हम एक गठबंधन सरकार हैं और बने रहेंगे।’ जेटली ने कहा कि इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया में प्रधानमंत्री कार्यालय अंतिम निर्णयकर्ता बना, जबकि पिछले दशक में प्रधानमंत्री कार्यालय को हाशिये पर डाल दिये जाने की वजह से नीतिगत स्तर पर कमजोरी देखी गयी, जब निर्णय लेने की प्रक्रिया सरकार के बाहर थी।

पिछली संप्रग सरकार को आड़े हाथ लेते हुए उन्होंने कहा, ‘भारत में शासन का राजनीतिक मॉडल इसलिए कमजोर हो गया क्योंकि प्रधानमंत्री कार्यालय खुद हाशिये पर रहा जिसे देश में अंतिम निर्णायक इकाई होना चाहिए और अंतिम निर्णय उसका होना चाहिए।’ वित्त मंत्री ने कहा कि मौजूदा सरकार इस बारे में पूरी तरह सुस्पष्ट है कि देश के आर्थिक शासन को किस दिशा में ले जाने की जरूरत है।