BMC ने मीट की बिक्री पर प्रतिन्ध का निर्णय वापस लिया
मुंबई: जैन समुदाय के पर्यूषण पर्व के दौरान शहर में दो दिनों तक वध एवं मांस की बिक्री पर प्रतिबंध के बीएमसी के फैसले का देशभर में जबरदस्त विरोध हुआ। इस निर्णय पर विरोध का सामना कर रही बृहन्मुम्बई महानगर पालिका (बीएमसी) ने शुक्रवार को बम्बई हाई कोर्ट को बताया कि उसने अपना निर्णय वापस लेने का निर्णय किया है।
बीएमसी ने अदालत को अपने निर्णय के बारे में मांस विक्रेताओं की ओर से दायर एक अर्जी की सुनवायी के दौरान सूचित किया। मांस विक्रेताओं ने मांस बिक्री पर चार दिन के प्रतिबंध को चुनौती देते हुए अर्जी दायर की थी, जिसमें राज्य सरकार का दो दिवसीय प्रतिबंध भी शामिल है।
बीएमसी ने प्रतिबंध की घोषणा 13 और 18 सितम्बर के लिए की थी, सरकार ने 10 और 17 सितम्बर को इस पर प्रतिबंध लगाया है। बीएमसी की तरफ से पेश होने वाले वरिष्ठ वकील एन.वी. वालावाल्कर ने न्यायमूर्ति अनूप वी. मेहता और न्यायमूर्ति अमजद सैयद की एक खंडपीठ को बताया कि बीएमसी ने गत एक सितम्बर वाला अपना परिपत्र वापस लेने का निर्णय किया। इसके तहत शहर में 13 और 18 सितम्बर को मटन और चिकन के लिए वध और बिक्री पर प्रतिबंध लगाया गया था।
वालावाल्कर ने कहा, ‘जनहित और मुंबईवासियों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए परिपत्र को वापस लेने का निर्णय किया गया है।’ हाई कोर्ट बाम्बे मटन डीलर्स एसोसिएशन की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवायी कर रहा था। याचिका में राज्य सरकार के 10 और 17 सितम्बर को मांस बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के निर्णय को भी चुनौती दी गई थी।
जब बीएमसी ने हाई कोर्ट को प्रतिबंध वापस लेने के अपने निर्णय के बारे में सूचित किया तो सभी पक्षों की दलीलों पर सुनवायी पूरी कर चुकी अदालत ने मामले की अगली सुनवायी 14 सितंबर तय की। 14 सितंबर को इस पर आदेश जारी किये जाने की संभावना है।
बीजेपी हालांकि इस पूरे मामले पर सहयोगी दल की भूमिका को लेकर खिन्न थी, लेकिन परिषद के अन्य दलों के साथ उसने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया। बाद में एमसीजीएम के वकील ने बम्बई हाई कोर्ट को बम्बई मटन डीलर्स एसोसिएशन द्वारा रोक के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान इस संबंध में सूचना दी।
अदालत ने गुरुवार को इस आदेश को गंभीरता से लेते हुए सरकार से इस पर जवाब मांगा था। अदालत ने शुक्रवार को इस फैसले और स्थानीय निकाय के खिलाफ टिप्पणी करते हुए कहा कि मुंबई जैसे शहर पर इस तरह की पाबंदियां नहीं लगाई जानी चाहिए।
अदालत ने कहा, ‘मुंबई के साथ एक प्रगतिवादी सोच जुड़ी हुई है। ऐसे फैसले प्रकृति से प्रतिगामी होते हैं। क्या खाना है यह एक व्यक्तिगत पसंद है। कोई इस पर बंदिश कैसे लगा सकता है?’