कितनी जन-मित्र है हमारी पुलिस?
-एस.आर.दारापुरी आई.पी.एस.(से.नि.)
हाल में राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ने “क्राईम इन इंडिया” शीर्षक के अंतर्गत पूरे देश में वर्ष 2013 में घटित अपराध के आंकड़े प्रकाशित किये हैं. इन आंकड़ों में पुलिस से संबधित दो आंकड़े बहुत रोचक हैं क्योंकि वे आम जन में व्याप्त पुलिस की उत्पीड़क छवि को झुठलाते दिखाई देते हैं जो कि वास्तविकता से परे है.
यह सर्वविदित है कि पुलिस ही प्रतिदिन मानवाधिकारों का सब से बड़ा हनन करती दिखाई देती है जो कि केस दर्ज न करना, आरोपियों/गैर आरोपियों की अवैध गिरफ्तारी, पुलिस हिरासत में हिंसा, तफ्तीश में कानून की बजाये डंडा तफ्तीश, झूठे मुकदमों में फंसाना, फर्जी बरामदगी दिखाना, रिश्वतखोरी और फर्जी मुठभेड़ों में मारना आदि के रूप में सामने आता है. पुलिस की यह कार्रवाही स्पष्ट तौर पर लोगों के मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन है. अतः यह स्वाभाविक है कि पुलिस की इन गैर कानूनी कार्रवाहियों के विरुद्ध बहुत सारी शिकायतें भी होती होंगी. परन्तु राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो द्वारा वर्ष 2013 के लिए जारी किये गए आंकड़े दर्शाते हैं कि इस पूरे वर्ष में पूरे देश में पुलिस के विरुद्ध मानवाधिकार हनन की कुल दो शिकायतें प्राप्त हुयी थीं जिन में दोषियों के विरुद्ध कार्रवाही की गयी. इसी प्रकार उक्त अवधि में फर्जी मुठभेड़ की केवल दो शिकायतें प्राप्त हुयीं जिन में अभी तक कोई कार्रवाही नहीं हुयी है. क्या इन आंकड़ों पर विशवास किया जा सकता है. काश हमारी पुलिस वैसी होती जैसा कि ये आंकड़े दर्शाते हैं.
अब अगर उपरोक्त अवधि में पुलिस के विरुद्ध प्राप्त शिकायतों की स्थिति देखी जाये तो वह भी उपरोक्त जैसी ही है. यह भी सर्वविदित है कि आम आदमी पुलिस के विरुद्ध शिकायत करते हुए डरता है. वह तभी शिकायत करता है जब उस के साथ बहुत ज्यादती होती है और उसे कहीं से कोई राहत नहीं मिलती. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो द्वारा वर्ष 2013 के लिए जारी किये गए आंकड़े यह दर्शाते हैं कि उक्त अवधि में पुलिस के विरुद्ध 51,120 शिकायतें प्राप्त हुयी थीं जिन में से 14928 में विभागीय जांच, 247 में मैजिस्टीरियल जांच और 655 में न्यायिक जांच की गयी. इन जांचों के परिणाम बहुत स्तब्धकारी हैं क्योंकि इन में से 26,640 यानि कि 52% शिकायतें झूठी पाई गयीं. इन जांचों के परिणामस्वरूप 1989 (3%) मामलों में ही पुलिस वालों के विरुद्ध केस दर्ज हुए. जांच से दोषी पाए जाने पर 3896 (7%) मामलों में विभागीय कार्रवाही के आदेश दिए गए और 799 अर्थात 1% मामलों में न्यायालयों में आरोप पत्र प्रेषित किये गए. यह आंकड़े भी दर्शाते हैं कि पुलिस के विरुद्ध की गयी शिकायतों में केवल 8% मामलों में ही विभागीय तथा मुकदमा चलाने की कार्रवाही की गयी और 92% मामलों में कोई भी कार्रवाही नहीं हुयी.
पुलिस द्वारा मानवाधिकार हनन तथा अन्य शिकायतों के सम्बन्ध में की गयी कार्रवाही के आंकड़े दर्शाते हैं कि हमारे देश में पुलिस वालों को दण्डित करने की व्यवस्था बहुत कमज़ोर है जिस कारण पुलिस वाले धड़ल्ले से गैर कानूनी कार्र्वाहियाँ करते रहते हैं क्योंकि उन्हें इस के लिए दण्डित किये जाने का कोई भय नहीं है. पुलिस वालों के लिए दंड से इस छूट के मुख्य कारण एक तो विभाग के अन्दर उच्च अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त होना है क्योंकि निचले अधिकारियों द्वारा बहुत से गैर कानूनी काम उच्च अधिकारियों की सहमति से ही किये जाते हैं. ऐसी हालत में उन से गैर कानूनी कामों के लिए निचले अधिकारियों को दण्डित करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है. इसी का नतीजा है कि वर्ष 2013 में पुलिस के विरुद्ध शिकायतों में से 52% फर्जी/झूठी होना दर्शाया गया है. इस के इलावा बहुत से पुलिस कर्मचारी अपनी राजनीतिक अथवा अन्य पहुँच के कारण भी दंड से बच जाते है. दरअसल पुलिस में जन-शिकायतों के निस्तारण की व्यवस्था बहुत कमज़ोर है. यद्यपि मानवाधिकारों के संरक्षण और उन के हनन के मामलों में जांच/कार्रवाही करने के लिए हरेक राज्य में मानवाधिकार आयोग बने हैं परन्तु वे विभिन्न कारणों से निष्प्रभावी हैं. एक तो उन में नियुक्तियां राजनीतिक लिहाज़ से की जाती हैं और दूसरे उन के पास स्टाफ बहुत कम होता है जो कि प्राप्त शिकायतों की जांच अपने स्तर से करने में अक्षम होता है. इसी लिए आयोग में प्राप्त शिकायतों को उसी पुलिस के पास भेज दिया जाता है जिन के विरुद्ध शिकायत होती है. इस से शिकायतकर्ता का दोहरा उत्पीडन होता है और जांच भी निष्पक्ष तौर पर नहीं होती. यही स्थिति राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की भी है.
अतः जनता की पुलिस के विरुद्ध शिकायतों के त्वरित और सही निस्तारण के लिए एक स्वतंत्र शिकायत निवारण व्यवस्था की सखत ज़रुरत है ताकि लोगों को न्याय मिल सके और कानून का उल्लंघन करने वाले दोषी पुलिस कर्मचारी दण्डित हो सकें. इस के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा आदेशित किये गए पुलिस सुधारों को लागू किया जाना आवश्यक है क्योंकि उन में पुलिस के विरुद्ध जन शिकायतों के निस्तारण के लिए प्रदेश तथा जिला स्तर पर पुलिस शिकायत निवारण कमेटियां बनाने की व्यवस्था है. अतः मेरे विचार में यह लोगों के हित में है कि वे पुलिस सुधारों को लागू करने के लिए जनांदोलन चलायें और सभी राजनीतिक पार्टियों पर दबाव बनायें ताकि उन्हें वर्तमान में शासक वर्ग की पुलिस की बजाये जनता की पुलिस मिल सके जो उत्पीड़क की बजाये जन-मित्र हो.