ये जश्ने जिगर जश्ने जिगर जश्ने जिगर है
(जिगर डे के अवसर पर )
सईद लखनवी
कहते हैं जिगर जिसको वो शायर था सरापा
मिन्जुम्लाए अहबाब में लगता था वो यकता
अब तक कि सुखनवर नहीं पैदा हुआ ऐसा
मुद्दत हुई फिर भी उसे भूली नहीं दुनिया
गोंडा में लहद उसकी ही क्या तुमको पता है
ये जश्ने जिगर जश्ने जिगर जश्ने जिगर है
खामोश जिगर क्या हुए खामोश है हर साज़
अब वैसा तरन्नुम न तो वैसी कोई आवाज़
पाकीज़ा वो तखय्युल किसी में न तगो तार
इस अहद का शायर हुआ बस तालिबे एजाज़
गुलज़ारे सुखन लगता है बेबर्गो समर है
ये जश्ने जिगर जश्ने जिगर जश्ने जिगर है
मयखाने में कोई नहीं अब ऐसा बलानोश
मयखाना ये कहता है कि होता नहीं मदहोश