अम्बेडकरनगर के डीएम का गुस्सा
अम्बेडकरनगर के डीएम को गुस्सा क्यों आया?
जिला छोड़ दो, वरना जेल भेज दूँगा
जिला आबकारी अधिकारी को लगाई कड़ी फटकार, और सभाकक्ष से निकाला बाहर
मामला ताड़ी दुकानों के नवीनीकरण का
दिनाँक- 17 अगस्त 2015, दिन- सोमवार, समय लगभग 12 बजे दोपहर, स्थान- अम्बेडकरनगर कलेक्ट्रेट सभागार, अवसर- जिलाधिकारी का जनता दर्शन। जिले के हाकिम का रौद्ररूप देख एवं उनकी कर्कश वाणी को सुनकर वहाँ उपस्थित लोग अवाक्।
क्या रहा कारण?
जिले की ताड़ी दुकानों से कथित अवैध वसूली व आबकारी विभाग द्वारा उनके लाइसेन्स नवीनीकरण में विलम्ब किए जाने से खफा जिलाधिकारी विवेक ने जिला आबकारी अधिकारी को बुलाकर कहा कि- जिला छोड़ दो, वरना जेल भेज दूंगा। साथ ही कड़ी फटकार लगाते हुए डी.एम. ने जिला आबकारी अधिकारी बजरंग बहादुर सिंह को सभाकक्ष से तुरन्त बाहर निकल जाने का भी हुक्म सुनाया। जिलाधिकारी विवेक जो कि काफी कूल दिमाग वाले कहे जाते हैं, उनको इस तरह गुस्सा क्यों आया? उन्होंने अपने अधीनस्थ एक जिलास्तरीय अधिकारी को सार्वजनिक रूप से फटकार क्यों लगाई? आदि अनेकानेक प्रश्न प्रबुद्ध वर्गीय लोगों की जेहन में जरूर उभरने लगे हैं।
वर्षो पूर्व कुछेक हाकिमों के तानाशाही रवैय्ये के चलते फटकार खाए अधीनस्थों को हृदयाघात भी हो चुका है और वे असमय ही कालकवलित हो गए ऐसी खबरें कई बार पढ़ने को मिल चुकी हैं। संयोग अच्छा है कि सार्वजनिक रूप से कड़ी फटकार पाए और सभाकक्ष से निकाले गए जिला आबकारी अधिकारी को इस तरह का कुछ भी नहीं हुआ और वह स्वस्थ हैं। जिला कब छोड़ेंगे और जेल कब जाएँगे, इसका रेनबोन्यूज से कुछ लेना-देना नहीं है, फिर भी रेनबोन्यूज एक आई.ए.एस. के इस अप्रत्याशित व्यवहार से अचंभित है। एक सुलझे हुए प्रशासनिक अधिकारी को इतना गुस्सा करते हुए देखना व सुनना रेनबोन्यूज को कुछ अजीब सा ही लगा।
05 फरवरी 2014 को जिले के हाकिम का पदभार ग्रहण करने वाले इस युवा आई.ए.एस. को सबसे सुलझा, मितभाषी और शान्तचित्त अधिकारी के रूप में जाना जाता रहा है। जिले की जनता-जनार्दन से किए गए सर्वेक्षण के आधार पर रेनबोन्यूज ने इन्हें कूल विवेक की उपाधि से नवाजा था। जिले के हाकिम हैं, उ.प्र. शासन का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, तो जाहिर सी बात है कि वह कुछ वैसा ही करेंगे जैसी सरकार की मंशा होगी। यह बात दीगर है कि इस जिले में सूबे की सरकार के प्रतिनिधियों और माननीयों की संख्या सर्वाधिक है, जिसके चलते शासन प्रतिनिधि (हाकिम) को सत्तापक्षीय लोगों के दबाव में काम करने की विवशता तो होगी ही। बहरहाल कुछ भी हो जिलाधिकारी विवेक के बारे में और कुछ कहने से इतना ही कहना काफी होगा कि- आखिर उन्हें यानि डी.एम. विवेक को गुस्सा क्यों और कब आता है?
आबकारी अधिकारी पर डी.एम. के गुस्से और फटकार लगाने का कारण
जिलाधिकारी विवेक सोमवार को जनता दर्शन के बीच अवाम की शिकायतें कलेक्ट्रेट सभागार में सुन रहे थे। जिले में संचालित 58 ताड़ी की दुकानें जो अक्टूबर 2014 से बगैर नवीनीकरण के चल रही हैं उनसे सम्बन्धित मामला तूल पकड़े था। दुकानदारों का आरोप था कि उन्होंने आबकारी विभाग का राजस्व चुकता कर दिया है, बावजूद इसके उनके लाइसेन्सों का नवीनीकरण नहीं किया गया, इसके अलावा वर्ष 2014-15 में ताड़ी के दुकानों के नवीनीकरण नहीं किए जाने को लेकर दुकानदारों ने जिलाधिकारी विवेक के समक्ष उपस्थित होकर नवीनीकरण कराए जाने की मांग की। कुछेक दुकानदारों ने आबकारी विभाग के अधिकारियों पर लाइसेन्स नवीनीकरण को लेकर 10 से 15 हजार रूपए सुविधा शुल्क लिए जाने का भी आरोप लगाया। इन सब शिकायतों से नाराज जिलाधिकारी विवेक ने दुकानदारों से
शपथ-पत्र पर शिकायत करने का निर्देश दिया और जिला आबकारी अधिकारी को तत्काल अपने पास बुलाया। जनता-दर्शन के अवसर पर शिकायतकर्ताओं से खचाखच भरे सभाकक्ष में जिलाधिकारी ने जिला आबकारी अधिकारी को कड़ी फटकार लगाई, सभाकक्ष से तत्काल बाहर निकल जाने का हुक्म दिया था।
इस आशय का संवाद सभी समाचार-पत्रों में प्रमुखता से प्रकाशित है। रेनबोन्यूज ने ‘न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर’ को चरितार्थ करते हुए उक्त संवाद पर काफी चिन्तन-मनन उपरान्त अपनी टिप्पणी दिया है। इस टिप्पणी के प्रकाशन का आशय यह कत्तई नहीं है कि यह मामला तूल पकड़े या इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़े। लेकिन जब एक अतिसुलझा आई.ए.एस. अधिकारी क्रोध से तमतमाकर दरोगा व कोतवाल की भाषा बोलने लगे तो यह अवश्य ही शोचनीय विषय बन जाता है।
रीता विश्वकर्मा