वर्तमान की भौतिकवादी मीडिया
मीडिया जगत से जुड़े लोग कुछ उस तरह के हो गए हैं जैसे पुराने समय में एक राज्य का महामंत्री। शायद इस कहानी को अधिकाँश लोग नहीं सुने होंगे। उस कहानी का सार यहाँ प्रस्तुत करना आवश्यक हो गया है। कहानी के अनुसार उक्त राज्य में अकाल पड़ गया था प्रजा में त्राहि-त्राहि मची थी। यह बात राजा के कानो तक नहीं पहुँची थी। राजा जब भीं भरी सभा में अपने खास महामंत्री से पूछता कि बताओ राज्य की प्रजा का क्या हाल है? तब महामंत्री उत्तर देता कि हे राजन, राज्य में दूध घी की नदियाँ बह रही हैं प्रजा खुशहाल है।
इसके बावजूद राजा को गुप्तचरों ने राज्य में ‘अकाल‘ की जो विभीषिका प्रस्तुत किया उससे राजा का मन विचलित हो गया। मुलतः वह एक दिन अचानक अपने खास गुप्तचरों के साथ राज्य भ्रमण पर निकल पड़ा। हालात जो दिखाई दिए उससे ‘राजा‘ को अन्दर ही अन्दर महामंत्री के मिथ्या और भ्रामक संवाद से क्रोध भी आया। दूसरे दिन भरी सभा में राजा ने फरमान जारी कर दिया कि महामंत्री जो राजकीय सुख-सुविधाएँ प्रदान की गई हैं वह वापस ली जाएँ। राजा के हुक्म की तामील हुई और महामंत्री को प्रदत्त सभी राजकीय सुविधाएँ वापस ले ली गईं।
दरबार बैठता है। राजा ने महामंत्री से पूछाँ ‘अब बताओ राज्य में कैसा चल रहा है …..? महामंत्री ने कहा सरकार अवर्षण से सूखा पड़ गया है। राज्य में दुर्भिक्ष आ गया है। नदी नाले सूख गए हैं, प्रजा भूखो मर रही है। सर्वत्र त्राहि-त्राहि मची है। महामंत्री के इस उद्बोधन से उपस्थित सभा सदों को घोर आश्चर्य हुआ लेकिन राजा खामोश था। क्योंकि वह जानता था कि महामंत्री को इस बात का एहसास तब हुआ जब उनकी सभी राजकीय सुविधाएँ वापस ले ली गई थी। राजा ने तत्काल आदेश जारी किया कि महामंत्री अविलम्ब राज्य की प्रजा का ध्यान दें और हरहाल में जनता को कोषागार से धन निकालकर जीने के लिए समस्त सुविधाएँ मुहैया कराई जाएँं।
ठीक उसी तरह से अब मीडिया और उससे जुड़े स्वार्थी तत्व कृत्य करने लगे हैं जैसे उस राज्य का महामंत्री कर रहा था। मसलन पेड न्यूज का प्रकाशन/प्रसारण वह भी अच्छी-खासी कीमत के एवज में ये लोग करने लगे हैं। अवाम की चिन्ता नहीं है। ये स्वंय सुख-सुविधा संपन्न हैं इसलिए इनको सुविधाएं मुहैया कराने वालों की फिक्र ज्यादा रहती है। विधुत संकट, किसानों में सिंचाई के लिए पानी का संकट और अन्य कष्टोंें का प्रकाशन तभी होता है जब इनके पृष्ठों में खबरों का अकाल रहता है।
मीडिया स्वार्थपूर्ति हेतु संघर्ष समिति के रूप में कार्य करने लगी है, ऐसा देखा, पढ़ा और महसूस किया जा सकता है। अकबर इलाहाबादी का शेर याद आने लगा है- न तीर निकालो-न तलवार निकालो, गर दुश्मन हो मुकाबिल तो अखबार निकालो। अकबर साहेब ने यह उस जमाने में कहा था जब मीडिया का एक ही स्वरूप प्रचलित था वह था अखबार (प्रिण्ट)। अब तो प्रिण्ट इलेक्ट्रॉनिक और वेब मीडिया का जमाना चल रहा है। बहरहाल कुछ भी हो इस समय मनी/मीडिया/माफिया का गठजोड़ कायम है। ऐसी स्थिति में मीडिया और इससे सम्बद्ध लोगों को अवाम की पीड़ा का एहसास नहीं हो रहा है। ज्यादा क्या लिखूँ/कहूँ आप सब समझदार हैं और समझदार के लिए इशारा ही काफी होता है।