यूरोप में शरणार्थियों की समस्या
बर्लिन से आरिफ नकवी की रिपोर्ट
बर्लिन: जर्मनी के शहर ड्रेसडेन में, जो एक कल्चरल शहर माना जाता है शुक्रवार की शाम को न्यू नाजी पार्टी एनपीडी के लोगों ने शरणार्थियों के खिलाफ, जिनमें ज्यादातर सीरिया के पुरुष महिलाएं बच्चे और बूढ़े थे प्रदर्शन किया और जो जर्मन 470 शरणार्थियों के स्वागत में एकत्र हुए थे उनके साथ मारपीट की जिससे दो महिलाओं समेत तीनलोग घायल हो गये और पुलिस को दखल देकर एक आदमी को गिरफ्तार करना पड़ा। इससे एक दिन पहले जब रेडक्रास के लोग शरणार्थियों के लिए तम्बू लगा रहे थे तो उन पर भी दक्षिणपंथी अतिवादियों ने सख्त हमले किए। जिसकी जर्मनी के राज्य सैक्सोनी के महत्वपूर्ण राजनीतिक हलकों ने निंदा की है। अब जाहिरा तौर पर वहाँ हालात फिर सामान्य हो गए हैं। वहां पर शरणार्थियों की संख्या 800 तक हो जाएगी जिनमें विशेष रूप से सीरिया के लोग हैं। इस समय यहां आने वाले शरणार्थियों में विशेष रूप से सीरिया, इराक, अफगानिस्तान, अल्जीरिया और सोमालिया के लोग हैं, तथा अन्य अरब और अफ्रीकी देशों के लोग भी हैं जब कि कुछ पूर्वी यूरोपियन देशों के लोग भी बड़ी तादाद में यहां आ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार शरणार्थियों की संख्या दुनिया में पांच करोड़ तक पहुंच गई है। सीरिया के लाखों लोग जॉर्डन, लेबनान और तुर्की आदि में शरण ढूंढ रहे हैं। पिछले साल इन शरणार्थियों में से सवा छह लाख लोग यूरोपियन संघ में शामिल देशों में शरण लेने के लिए रजिस्टर थे। जिनमें से ज्यादातर अवैध रूप से आए हैं। जिनके लिए अक्सर यहां दरवाजे बंद रहते हैं और यहाँ की सरकारों के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। दैनिक मॉर्गन पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार जर्मनी में पुलिस की ट्रेड यूनियन के अध्यक्ष ने तो यहां तक कह दिया है कि बड़े पैमाने पर ऐसे शरणार्थियों की रक्षा करना उसके बस में नहीं है। अकेले 6 जून तक शरणार्थियों के ठिकानों पर 202 हमले हो चुके हैंए जिनमें से 173 हमले दक्षिणपंथी अतिवादियों ने किए थे। यह फिर भी छोटी मोटी रिपोर्टें हैं जो अक्सर सामने आती रहती हैं। इस साल 26 जून को यूरोपियन यूनियन ने फैसला किया था कि शरणार्थियों को ई यू में शामिल 28 देशों में बांटा जाएगा। वालनटरी आधार पर। दरअसल साठ हज़ार लोगों को इस तरह बांटने का सवाल हैए जिनमें से चालीस हजार इटली और ग्रीस में रहते हैं। उनके अलावा बीस हजार शरणार्थीए जिनमें से ज्यादातर सीरिया के हैं बांटा जाएगा। जर्मनी के लिए कहा जाता है, कि वह आठ हजार लेने को तैयार है। जैसा कि ऊपर लिख चुका हूँ सवा छह लाख शरणार्थियों ने पिछले साल यूरोपियन संघ में शामिल देशों में आवेदन किये थे जिनमें दो लाख से ऊपर जर्मनी में थे। माना जाता है कि इस साल यहां शरणार्थियों के आवेदनों की संख्या चार से पांच लाख तक पहुंच जाएगी। इसलिए अब यहाँ यह चर्चा चल रही है कि इस संबंध में एक नियमित कानून पास किया जाए, जिसके पक्ष में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी एसपीडी पहले से थीए मगर क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन तैयार नहीं थी। अब ऐसे आसार नजर आ रहे हैं कि वो भी तैयार हो जाएगी। एक दिलचस्प बात यह भी है कि पिछले साल यूरोपियन संघ में शामिल देशों में शरण मन्न्गने वाले लोगों में बीस फीसदी सीरिया के थे, यानी एक लाख बाईस हजार जबकि 41 हजार अफगान, 38 हजार कोसोवो, सैंतीस हजार और तीस हजार अल्जीरिया के लोग थे।
अभी ज्यादा समय नहीं हुआ हैए जब यूरोप में इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की जा रही थी कि अरब देशों में जिन्हें यहां दूसरे इस्लामी देशों की तरह बेहद रूढ़िवाद और सांस्कृतिक रूप से पिछड़ा माना जाता है, ” अरब बहार” के नाम से नई उमंगें पैदा हो रही थींण् जो मिस्र, इराक, यमनए लीबिया, टुनीशिया, मोरक्को और सीरिया आदि में नुमायाँ हुई थीं। चुनांचे इस बहार को लाने वाले लोगों के लिए दिल के दरवाजे और उनके साथ कई अन्य दरवाजे खोल दिए गए थे। कुछ स्थानों के मुजाहिदीन को तो हथियार तक सप्लाई किए गए थे और लीबिया जैसे देश के तानाशाही व्यवस्था के खिलाफ हवाई हमले तक किए गए थे। आज यह सब स्वीकार कर रहे हैं कि हाफिज असद के खिलाफ लड़ने के लिए यूरोप से हजारों मुजाहिदीन सीरिया गए थे जिन्हें वहाँ के दहशतगर्दों ने प्रशिक्षण दिया और अब इनमें कई लोग जिन पर आतंकियों का प्रभाव बाकी है अपने साथ उन विचारों को लेकर लौट रहे और यहां की सरकारों के लिए सिरदर्द बन रहे हैं। दूसरी ओर क्योंकि सीरिया और अन्य अरब देशों की अर्थव्यवस्थाएं बर्बाद हो गई हैंए वहां के लोग मजबूर हो कर यूरोप में शरण खोज रहे हैं। उनके साथ अफ्रीका और एशिया के अन्य देशों के लोग भी रोजगार और बेहतर जीवन की खोज में यूरोप की ओर दौड़ रहे हैं और अक्सर अपनी जानों पर खेलकर आते हैं जिन में से हजारों अफ़्रीकयों और अरबों को समनदर में डूबकर जानें देना पड़ी हैं। इस समय पश्चिमी यूरोप के सामने यह समस्या खड़ी है कि अब उन्हें कैसे खपाया जाए।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि आम जनता के जीवन और उनके जीवन पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है। एक तरफ तो बहुत से लोकतांत्रिक और उदार दिल लोग इन शरणार्थियों की मजबूरियां समझ कर उनका स्वागत कर रहे है या निष्पक्षता का रवैया अपना रहे हैं वहीं दूसरी ओर संकीर्ण और फासीवादी मानसिकता के शिकार राजनेता जनता में डर और विदेशियों के खिलाफ नफरत की भावना फैला कर अपनी ताकत बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। और शरणार्थियों का सवाल खड़ा कर प्रदर्शन और सभाएं करते हैं।
इसमें भी शक नहीं है कि पिछले वर्षों में यहां के उद्योगपतियों ने दूसरे देशों में लागतें लगाकर अपनी शक्ति तो काफी बढ़ाई हैए जो एक सुखद बात हैए लेकिन इसी के साथ उन्होंने अपने देश में आम लोगों को जो सुविधाएं प्राप्त थीं उनमें कमी की है। जबकि यहां की जनता खुशहाल जीवन के आदी हो गयी है और उन्हें पेनशन दवा इलाज आदि की बहुत सी सुविधाएं प्राप्त हैं और वेतन भी अन्य देशों की तुलना में अधिक हैं और अब इनमें यह डर भी पैदा किए जा रहे हैं कि अगर अधिक शरणार्थी बाहर से आए तो उद्योगपति उनसे सस्ता काम लेकर अपना मुनाफा तो सुरक्षित कर लेंगे लेकिन आम जनता का आर्थिक और सामाजिक जीवन खतरे में पड़ जायेगा। मुश्किल यह है कि शरणार्थियों की संख्या जितनी तेजी से बढ़ रही हैए उससे कोई यह नहीं कह सकता कि न्यू नाजी मानसिकता को और कितनी हवा मिलेगी। शरणार्थियों में महज अरब और अफ्रीकी देशों और एशिया के देशों के लोग ही नहीं बल्कि बड़ी संख्या में बलकान देशों के लोग भी हैं और अगर तुर्की के हालात और अधिक खराब हुए जिसके आसार नजर आ रहे, या रूस और यूक्रेन का झगड़ा और बढ़ा और वहां की अर्थव्यवस्था और खराब हुई तो वहां से आने वाले शरणार्थियों की भी कोई कमी नहीं होगी जिसका सामना यूरोपियन यूनियन को करना होगा। इसलिए मेरे विचार से इस समस्या का समाधान केवल इसमें है कि दुनिया में अधिक से अधिक शांति का माहौल स्थापित किया और विभिन्न देशों को अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में सहयोग दिया जाएए जिन लोगों की हम मदद करना चाहते हैं। वहां की जनता अपने जीवन में खुद कैसे सामाजिक और राजनीतिक सुधार करना चाहते हैं यह उनकी मर्जी पर छोड़ दिया जाए। वरना आग में हाथ डालने से हाथ जल जाता है।