याक़ूब मेमन की सजा पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज को ऐतराज़
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज हरजीत सिंह बेदी ने कहा है कि याकूब मेमन को फांसी दिए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट को खुद संज्ञान लेना चाहिए।
अंग्रेजी अखबार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में लिखे एक लेख में बेदी ने कहा है कि रॉ के पूर्व अधिकारी बी रमन के लेख में जो तथ्य दिए गए हैं, उसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में खुद संज्ञान लेना चाहिए। हाल ही में प्रकाशित बी रमन के लेख के अनुसार याकूब ने धमाके की जांच में खुफिया एजेंसियों की पूरी मदद की थी।
जस्टिस हरजीत सिंह बेदी ने कहा कि जब उन्होंने रमन का आर्टिकल पढ़ा तो उन्हें लगा कि अगर ये बातें सही हैं, तो इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट को उनकी सजा पर फिर से गौर करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अगर ये सारे तथ्य कोर्ट के सामने होते तो संभव है कि फैसला कुछ और होता।
रॉ के दिवंगत अधिकारी रमन ने 1993 के मुंबई विस्फोट मामले में दोषी ठहराए गए याकूब मेमन के लिए इस आधार पर नरमी बरते जाने का समर्थन किया था कि उसने जांच एजेंसियों की सहायता की और वह फांसी पर चढ़ाए जाने का हकदार नहीं है।
1994 में अतिरिक्त सचिव के रूप में सेवानिवृत्त हुए एवं आतंकवाद निरोध के प्रभारी रह चुके बी रमन ने प्रकाशन के लिए आलेख लिखकर यह विचार जाहिर किया था, लेकिन सोच विचार के बाद इसका प्रकाशन रोक दिया गया। लेकिन यह आलेख कुछ दिन पहले प्रकाशित हुआ, जिसमें बताया गया है कि मेमन को नेपाल से उठाया गया था और बाद में सीबीआई ने उसे पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से औपचारिक रूप से गिरफ्तार किया।
दिवंगत रमन के चेन्नई निवासी भाई बीएस राघवन ने कहा, प्रकाशित हुई हर चीज सही है और उन्होंने (रमन ने) इसे लिखा था। रमन का 2013 में निधन हो गया था। जब 2006 में अदालत द्वारा मेमन की मौत की सजा के बारे में उन्होंने सुना तब उन्होंने अपने मन की एक नैतिक दुविधा के बारे में लिखा था।