शिवम मौत प्रकरण: सरकारी विभागों की कमान रिटायर्ड अफसरों के हाथ निष्पक्ष जांच असंभव
(सत्य प्रकाश, फ्रीलांसर)
लखनऊ :- उत्तर प्रदेश की राजधानी कहे जाने वाले लखनऊ में ही वसूली, घूसखोरी का अत्याधिक बोला बाल है तो अन्य शहरों के कहने ही क्या ? भारत का दूसरा बड़ा राज्य कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश की राजधानी में सरकारी अफसरों की तैनाती और सपा सरकार को लेकर सभी के मन में असंख्य सवाल उठते हैं | यंहा की सरकार और उनके चयनित अफसरों की तानाशाही ने आम समाज में भय और घृणा की स्थिति पैदा कर दी है |
राजधानी के मुंशीपुलिया पर किराये के मकान में रहने वाला शिवम शुक्ला राम मनोहर लोहिया अस्पताल इलाज कराने गया. डॉक्टर ने जांचें कराई तो उसके पित्त की थैली में करीब 7.5 मिमी का स्टोन निकला. आरोप है कि यहाँ डॉ अरुण कुमार ने उन्हें गुमराह करके प्राइवेट क्लीनिक भेज दिया, जहां डॉक्टर अरुण कि लापरवाही के कारण उसकी 20 जुलाई की शाम मौत हो गई |
जानकारी के अनुसार कानपुर का रहने वाला शिवम लखनऊ में सिविल की कोचिंग कर रहा था. उसने प्री परीक्षा पास भी कर ली थी. लेकिन पेट में उठे दर्द के बाद एक डॉक्टर ने उसकी जिन्दगी ही ख़त्म कर दी. उसके पिता ने बताया कि 13 जुलाई को पेट में दर्द उठने के बाद वो उसके लेकर लोहिया अस्पताल पहुंचे. ओपीडी में डॉ अरुण कुमार ने कुछ जांचे लिखीं. जाँच के बाद रिपोर्ट में शिवम के पित्त कि थैली में 7.5 मिमी का स्टोन था .रिपोर्ट को देखकर डॉ अरुण श्रीवास्तव ने उसके पिता को 18 जुलाई को ओपीडी में मिलने को बुलाया. अस्पताल में लेजर सर्जरी की सुविधा नहीं होने की बात कहकर 45 हजार रुपये वसूले। सोमवार को निजी अस्पताल में ले जाकर लगभग 2 बजे उसकी लेजर सर्जरी कर दी. ऑपरेशन के बाद खून बहना नहीं रुका। हालत बिगडती देख डॉ ने उसे लोहिया अस्पताल में वापस लाकर भर्ती कर दिया. वेंटिलेटर पर कुछ घंटे इलाज चला और शिवम ने दम तोड़ दिया. शिवम आईएएस की तैयारी कर रहा था. परिवार के उससे बड़े सपने थे. पर डॉक्टर के लालच और लापरवाही ने उसकी जान ले ली. शिवम की मौत होते ही अस्पताल स्टाफ ने उसका पूरा रिकॉर्ड छीन लिया. इस पर परिवारीजनों का गुस्सा और फूट पड़ा. बेटे की मौत के लिए डॉक्टर को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने हंगामा किया |
शिवम के पिता ने बताया कि शिवम को इस कदर ब्लीडिंग हो रही थी कि एंबुलेंस की बेड शीट लाल हो गई. यही नहीं वेंटिलेटर यूनिट का बेड भी खून से सन गया. ब्लीडिंग नहीं थमी और शाम करीब सात बजे शिवम ने तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया. इस दौरान कोई डॉक्टर उसे नहीं देखने आया. रोते-बिलखते परिवारीजन रात दस बजे तक शव के साथ इमरजेंसी में जमे रहे. उन्होंने लापरवाही की जांच के लिए शव का पोस्टमार्टम कराने तक की बात कही. देर रात करीब साढ़े दस बजे हंगामा और बवाल शांत हुआ और पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए मॉर्च्युरी में रखवाया |
डॉ. आरसी अग्रवाल, सीएमएस लोहिया हैं जिम्मेदार
इस चकित्सालय का दुर्भाग्य पिछले 7 -8 वर्षों से है, इसका मुख्य कारण इसकी कप्तानी रिटायर्ड अफसरों के हाथ में हैं | जिनका मुख्य उद्देश्य मोटी कमाई मात्र ही है | ज्ञात हो बसपा सरकार के शासनकाल में इसकी कप्तानी डॉ आर एस दुबे के हाथों में थी , जो रिटायरमेंट के बाद भी तत्कालीन मंत्री अनंत कुमार मिश्रा के रहमों करम पर 3 वर्षों तक रही परन्तु जैसे ही सपा सरकार आई डॉ० साहब नौकरी छोड़ कर पूरी तरह रिटायर्ड हो गए। सवाल ये उठता है यदि वह सेवा करना चाहते थे तो पद पर बरकरार क्यों नहीं रहे | जब उत्तर प्रदेश में सपा सरकार आई तो यही क्रम पुनः दोहरा दिया गया | मई 2012 तक डॉ० आर सी अग्रवाल (वर्तमान सीएमएस,राम मनोहर लोहिया अस्पताल) को रिटायर्ड हो जाना चाहिए था परन्तु सपा सुप्रीमों के अत्याधिक करीबी होने के कारण मंत्री जी की कृपा दृष्टि बनी हुई है और गैरकानूनी कार्य चरम सीमा पर हो रहे हैं |सूत्रों से पता चला है की जितनी भी सर्जरियां अस्पताल के बाहर की जाती थी उसका पैसा आर सी अग्रवाल को पहुंचाया जाता था |
शिकायतों को किया नजरअंदाज
चार साल पूर्व भी गोमती नगर निवासी इंदु सिंह ने भी उपभोक्ता फोरम में डॉ० श्रीवास्तव के खिलाफ शिकायत की थी परन्तु किसी भी प्रकार की उचित कार्यवाही नहीं की गयी | वर्ष 2011 में इंदु जी ने अपने पति को राम मनोहर लोहिया के तत्कालीन सीएमएस आर एस दुबे को उनकी प्राइवेट क्लिनिक पर इलाज के लिए दिखाया तथा 18000 रु मांगे | पैसे का अभाव होने की दशा में उन्होनें डॉ० श्रीवास्तव का पता बता दिया | उन्होने ऑपरेशन किया तो पेशाब की थैली काट दी और समस्या पैदा हो गयी | इंदु ने इसके बाद अपनें पति का इलाज दिल्ली में कराया जिसमे लाखों रुपये खर्च हुए|
20 जुलाई को भी डॉ० श्रीवास्तव ड्यूटी हनी के बावजूद लगभग 12 बजे से नदारद थे , लोहिया अस्पताल के कर्मचारियों का कहना है की डॉ० साहब एक अर्जेंट मरीज को देखने गए हैं | सवाल यह भी उठता है की क्या आरसी अग्रवाल जी को उनकी अनुपस्थिति का ज्ञान नहीं हुआ ?