पेड़ों की जान बचाने के लिए अखबारों के बढ़ते पृष्ठ रोके जायं
सभी प्रकार के बढ़ते प्रदूषण से मानव जीवन के लिए उत्पन्न हो रहे खतरों से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है। इसके बावजूद इस क्षेत्र में काम कर रहे और पर्यावरण का महत्व समझा रहे प्रबुद्ध और जागरूक नागरिकों की बात को नजर अंदाज कर हम हर प्रकार से वह काम कर रहे हैं जिससे पर्यावरण प्रदूषण बढ़ने की संभावनाएं है।
पिछले दिनों विशेषज्ञों ने कहा कि दिल्ली सहित देश के तमाम महानगर बुरी तरह प्रदूषण की चपेट में आ रहे है। वाहनों से निकलता जहरीला लाल रंग का धुंआ और सड़कों पर टायर व कूड़ा जलाये जाने से उत्पन्न प्रदूषण रोकने के लिए हमारे पास सिर्फ एक उपाय है पेड़ पौधों को बचाना और ज्यादा से ज्यादा संख्या में उनको लगाना लेकिन भ्रष्टाचार में लिप्त इस काम में लगे वन मंत्रालय और विकास प्राधिकरणों आदि के कुछ सरकारी कर्मचारियों की रिश्वतखोरी के चलते सरकार की योजना के तहत जितने पौधों का रोपण होना चाहिए वह नहीं हो रहा है परिणाम स्वरूप पूरे देश में अरबों रूपया हरियाली बनाये रखने और पेड़ पौधों की संख्या बढ़ाने के लिए खर्च होने के बावजूद खास कर शहरों में पेड़ बढ़ने के बजाये पेड़ कम हो रहे हैं नागरिकों के इस कथन से मैं भी सहमत हूं।
पीएम मोदी जी और सभी विभागों के सीएम साहब अथवा वन और पर्यावरण मंत्री अगर जांच कराये तो उन्हें पता चलेगा कि जो पैसा सरकारें देश भर के जिलों में पेड़ लगाने के लिए भेजती है वह तो खर्च हो जाता है लेकिन हरियाली या पौधे लगे नजर नहीं आते कारण क्या है यह किसी को भी बताने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि क्लीन प्रदेश हरित प्रदेश के बोर्ड लगाने में माल कमाने वाले पेड़ों की संख्या बढ़ाने के लिए पौधारोपण के मामले में निहायत ही लापरवाह नजर आते है कितनी ही जगह वृक्षों को बचाने हेतु उनके चारों ओर लोहे के गोल जाल या ईंटों की बाउंड्री बनायी गयी दिखायी जाती है लेकिन न तो कहीं बहुतायत में जाल नजर आ रहे हैं और न ही दर्शायी गयी संख्या के अनुसार पेड़ पौधे।
कुल मिलाकर देखें तो पेड़ पौधों का दोहन कराने और प्रदूषण बढ़ाने में अपने आप को समाज के अग्रणी और बुद्धिजीवी कहे जाने वाले लोग भी पीछे नहीं है क्योेंकि अपना वर्चस्व कायम रखने और अपने आप को बड़े मीडिया ग्रुप और समाचार पत्र का मालिक संचालक दर्शाने की होड़ में आज की तारीख में कुछ बड़े घरानों के अखबारों के पृष्ठों की संख्या बढ़ती जा रही है और लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों के संचालक भी ऐसे प्रयास करने में पीछे नहीं है और इस अंधी दौड़ में पृष्ठों को भरने के लिए जी हूजूरी और चाटूकारिता तथा माल कमाने का माध्यम बनने वाले बड़े बड़े लेख भी जागरूकता फैलाने और उपलब्धियां दर्शाने के नाम पर अखबारों में प्रकाशित करने के अतिरिक्त कितने ही अनुपयोगी समाचार बड़े बड़े करके छापे जाते है और यहीं आगे चलकर पर्यावरण को नुकसाने पहुंचाने का कारण बनते है ेक्योंकि कागज की खपत बढ़ने से पेड़ों का कटान बढ़ रहा है परिणाम स्वरूप पौधे लगाये कम और काटे ज्यादा जा रहे है।पेड़ों की जान बचाने के लिए बेकार चीजों से कागज बनाने के लिए शुरू हुए प्रयत्न सराहनीय है लेकिन वर्तमान समय में सोशल मीडिया की गति और प्रभाव बढ़ने तथा भरपूर स्थान मौजूद होने के चलते वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार डा. संजय गुप्ता के इस कथन से मैं पूर्ण रूप से सहमत हूं कि ऐसे बड़े बड़े लेख नेट और फेसबुक पर डालकर भी काम चलाया जा सकता है। इन्हें छापकर कागज की खपत बढ़ाने और पेड़ काटने से सबकों बचना चाहिए।
मेरा भी इस दृष्टिकोण से स्पष्ट मानना है कि पर्यावरण संतुलन बनाये रखने के लिए कागज की खपत कम करने हेतु केन्द्रीय सूचना मंत्रालय और प्रदेशों के सूचना मंत्रालयों तथा पीएम मोदी जी और सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों और पर्यावरण व स्वास्थ्य मंत्रालय के मंत्रियों व अधिकारियों को एक योजना बनाकर अखबारों मंे पृष्ठों की बढ़ती संख्या की जो होड़ शुरू हुई है उसे रोकने के साथ साथ आम आदमी के हित में सभी समाचार पत्रों के लिए पृष्ठ संख्या निर्धारित की जानी चाहिए और बड़े घरानों के द्वारा प्रकाशित ज्यादा सर्कुलेशन होने का दावा करने वाले समाचार पत्रों को दिये जाने वाले विज्ञापनों में कमी कर लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों को विज्ञापन की संख्या बढ़ाई जाये जिससे इनके संचालक और अच्छे अखबार निकालेें तथा ज्यादा विज्ञापन मिलने से पृष्ठों की संख्या बढ़ाने वालों पर लगे रोक।