रोज़ा हर अक्लमन्द बालिग मुसलमान पर फर्ज़ है
रोज़ा इस्लाम का तीसरा रुक्न है खुदा ने हर अक्लमन्द बालिग मुसलमान पर फ़र्ज़ (जरूरी) किया है रोजा खाने-पीने और सोहबत (सैक्स) से रूकने और बचने को कहते हैं यानी कि नियत के साथ सुबह सादिक से लेकर सूरज डूबने तक खाने-पीने और सोहबत(सैक्स) से रूक जाने का नाम रोजा है। बगैर रोजे की नियत के यदि आदमी दिन भर भूखा प्यासा है तो उसका रोजा नहीं माना जायेगा। हजरत मोहम्मद साहब ने जब हिजरत कर मक्का से मदीना आये तो आपने एक महीने में तीन रोजे रखते थे इसके अलावा आशुरा (मोहरर्म की दसवीं तारीख) को भी रोजा रखते थे लेकिन जब खुदा ने रमजान के रोजे फ़र्ज़ कर दिये तो तीनों रोजों और आशुरा के रोजों की फरजीयत खत्म हो गयी। रोजा कयामत के दिन रोजेदारों के लिए खुदा से सिफारिश करेगा, जहन्नम के आग से छुटकारा दिलायेगा। हजरत मोहम्मद ने फरमाया कि जन्नत में एक दरवाजा है जिसका नाम रेयान है इस दरवाजे से जन्नत में प्रवेश केवल रोजेदारों का होगा और जब रोजेदारों का उस दरवाजे से दाखिला हो जायेगा तो वो गेट बन्द कर दिया जायेगा। रोजा रखने का अनगिनत मक्सद और लाभ हैं जैसे कि खुदा के करीब होना, अपने अन्दर भूख-प्यास से लड़ने की शक्ति, अपने दिल पर काबू पा लेना, और हवस पर नियंत्रण पा लेना, रोजे से इंसान को रूहानी सकून मिलता है। रोजा रखने वाला गाली-गलौच और अन्य बुराईयों से बचा रहता है। रोज़ा केवल गुनाहों से बचने का तरीका नहीं बल्कि बदन में होने वाली अनगिनत बिमारियों से बचने का तरीका भी है। प्रसिद्ध हकीम जालिनूस ने अपने मरीजों को भूख न लगने की शिकायत पर आदेश किया कि जब तक अधिक खाने की इच्छा न हो उस समय तक तुम लोग न खाओ। बिमारों ने ऐसा ही किया तो करिश्माती तौर पर उनकी भूख लौट आयी सच्ची बात यह है कि अधिकतर बिमारियाँ ज्यादा खाने से होती हैं। रोजा इसका बेहतर इलाज है। रसूले खुदा ने फरमाया हर नेक काम जिसे इंसान करता है उसका सवाब दस गुना से सात सौ गुना तक है। मगर रोजे का सवाब उससे भी अधिक है। खुदा का फरमान है कि रोजा मेरे लिए है और इसका बदला मैं खुदा दूंगा। आदमी अपनी मर्जी के खिलाफ खाना पीना मेरे कारण छोड़ता है इसलिए मैं स्वयं उसका बदला हूँ। रोजेदारों के लिए दो खुशियाँ हैं एक इफ्तार के समय और दूसरी कयामत के दिन। अल्लाह से दुआ है कि तमाम मुसलमान रोजे की हकीकत को समझें और उस पर अमल करें।