लखनऊ। योगा को धर्म से जोड़ने को लेकर चल रहे विवादों के बीच इस्लामिक विद्वानों का कहना है कि योगा और नमाज में काफी फर्क है क्योंकि नमाज अल्लाह की इबादत है और योगा वर्जिश है। विद्वानों का स्पष्ट मत है कि नमाज अल्लाह की इबादत के लिए अता की जाती है, जबकि योगा सेहत के लिए किया जाता है। 

एक मुस्लिम विद्वान ने कहा कि पाबंदी से पांचो वक्त नमाज पढ़ने वाले को तो कई मर्जो से अपने आप छुटकारा मिल जाता है। विश्वविख्यात इस्लामिक शैक्षणिक संस्था दारूल उलूम देवबन्द के मौलाना अशरफ उस्मानी नमाज और योगा को अलग-अलग बताते हैं।

हालांकि, वह मानते हैं कि नमाज की कई क्रियाएं योग से मिलती जुलती हैं। उस्मानी ने कहा कि नमाज उस हालत में भी पढ़ी जा सकती है जब इंसान उठ बैठ नहीं पाता। नमाज इशारे या लेटे-लेटे भी पढ़ी जा सकती है, लेकिन योगा इशारे से नहीं हो सकता।

मौलाना अशरफ उस्मानी ने कहा कि योगा दुनिया में हजारो साल से है, इसे किसी खास मजहब से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। यह इंसानी तहजीब है। इसे “एन्सिएन्ट लाइफ स्टाइल” भी कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि योगा का पहला पहलू अध्यात्म से जुड़ा है, जबकि दूसरा सेहत से। अध्यात्म से जुडे सूर्य नमस्कार और ओम का उच्चारण इस्लाम स्वीकार नहीं करता क्यो ंकि इस्लाम में सिर्फ अल्लाह के इबादत की अनुमति है।

उन्होंने कहा कि इसका यह मतलब नहीं है कि इस्लाम योगा का विरोध करता है। वर्जिश के तौर पर इस्लाम भी योगा करने की अनुमति देता है। उनका कहना था कि योगा को थोपा नहीं जाना चाहिए। योगा को सियासत से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। योगा को धर्म और देश की सीमा में नहीं बांधा जाना चाहिए।

अयोध्या के पास एक कारखाना चलाने वाले मुस्लिम विद्वान हाजी एखलाक अहमद भी मानते हैं कि नमाज और योगा में फर्क है, लेकिन कहते हैं कि नमाज के अन्दर योगा जैसी तमाम प्रक्रियाएं शामिल हैं। वह कहते हैं कि हो सकता है नमाज से ही योगा की इन क्रियाओं को लिया गया हो।

हाजी एखलाक अहमद ने कहा कि नमाज अता करते समय एडियों पर नितम्ब को रखकर बैठा जाता है। योग में इसे बज्रासन नाम दिया गया है। हालांकि, इसे नमाज आसन भी कहते हैं। सीधा खड़े होने पर नजर और हाथ सामने रखने पर शरीर को आराम मिलता है, जबकि रूकू में कमर 45 अंश पर झुकाया जाता है। इससे, कमर दर्द और घुटनों को आराम मिलता है।

उन्होंने कहा कि नमाज अता करते समय गर्दन को इधर उधर घुमाने को सलाम कहा जाता है इससे सर्वाइकल दर्द में काफी आराम मिलता है। सजदे के दौरान “ब्लड सर्कुलेशन” बेहतर होता है।

इन क्रियाओं के दौरान पाक कुरान का पाठ भी किया जाता है। नमाज अता करने से मानसिक सुकून मिलता है। सजदे के दौरान कुछ पल के लिए सांस भी रोकी जाती है जिससे फेफडे और ह्वदय को आराम मिलता है। वह कहते हैं कि नमाज शुद्ध रूप से धार्मिक प्रक्रिया है। इसे पांच बार अता करने से मन और शरीर दोनों स्वस्थ्य रहता है जबकि योग को एक समय किया जाना ही पर्याप्त है।