PF से पैसे निकालने पर अब पड़ेगा भारी
नई दिल्ली: आपके ईपीएफ खाते में अगर जमा रकम 30 हजार रुपये से ज्यादा है और आपका खाता पांच साल से कम अवधि का है तो अपना पैसा निकालने के लिए अब आपको टीडीएस कटौती झेलनी होगी।
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के नए नियमों के मुताबिक यह व्यवस्था एक जून से लागू हो गई है और धन की निकासी के लिए 10 से 34 फीसद तक कर की कैंची चल सकती है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजटीय भाषण में कहा था कि 1 जून से ऐसी पीएफ राशि पर टीडीएस की कटौती की जाएगी। वित्त मंत्री के इस ऐलान के मुताबिक सरकार ने अब कर्मचारियों के भविष्य निधि खातों से धन की निकासी को मुश्किल बना दिया है।
किसी कंपनी या संस्थान में काम करने वाले कर्मचारी अब पांच साल से पहले अपने भविष्य निधि खाते से जमा रकम नहीं निकाल सकते अगर वो राशि 30 हजार रुपये से ज्यादा है। ऐसा करने वाले कर्मचारियों को 10 फीसदी से लेकर 34.608 फीसदी की दर से स्रोत पर कर (टीडीएस) देना होगा।
पीएफ खाते से धन निकासी के नए प्रवाधानों के मुताबिक- पैन नंबर देने वाले कर्मचारियों को 10 फीसदी टीडीएस ही देना पड़ेगा, जबकि पैन कार्ड विवरण नहीं देने वाले कर्मचारियों को 34.608 फीसदी की दर से अपनी जमा राशि पर कर चुकाना पड़ेगा।
वहीं अपनी गाढ़ी कमाई पर कर कटौती से बचने के लिए कर्मचारियों को फॉर्म 15-एच और फॉर्म 15-जी जैसी कागज़ी खाना-पूर्ति करनी होगी। फार्म 15-जी के जरिए कर्मचारी को यह घोषणा करनी होगी कि पीएफ रकम के बावजूद उसकी आमदनी आयकर दायरे से बाहर है। वहीं फार्म 15-एच 60 साल से अधिक आयु वाले वरिष्ठ नागरिकों के लिए है।
हालांकि पीएफ के इन नए प्रावधानों को आर्थिक मामलों के जानकार उत्साहजनक नहीं मानते। हिंदू बिजनेस लाइन के वरिष्ठ पत्रकार शिशिर सिन्हा के मुताबिक सरकार को इस तरह का कर बोझ बढ़ाने और वित्तीय मामलों में कागजी जटिलता बढ़ाने से बचना चाहिए। इससे जो कम आमदनी वाला कर्मचारी है उसके लिए परेशानी बढ़ेगी। साथ ही कई व्यवहारिकता की दिक्कतें भी हैं।
एनडीए सरकार पर अपनी ही योजनाओॆं को आगे बढ़ाने के तंज कसने वाली कांग्रेस इस मामले पर चुप है। पार्टी को समझ नहीं है आ रहा कि वो क्या जवाब दे? कांग्रेस प्रवक्ता राजीव गौड़ा के मुताबिक हमें इस मामले पर जानकारी नहीं है। हम इस पर कुछ नहीं कह सकते और अधिक जानकारी जुटाने के बाद हम अपनी प्रतिक्रिया देंगे।
नए बदलावों के जरिए सरकार की कोशिश पीएफ खातों मे धन को रोकना और वित्तीय पारदर्शिता बढ़ाना है। हालांकि इसके लिए करों की पेचीदा व्यवस्था का नया ताना-बाना आम लोगों की परेशानी ही बढ़ाएगा खासकर उन कम आय वाले छोटे कर्मचारी वर्ग को जो कागजी औपचारिकताओं से घबराता है।