हाशिमपुरा के इंसाफ के सवाल पर नौटंकी ना करें मुलायम: रिहाई मंच
लखनऊ। रिहाई मंच ने हाशिमपुरा जनसंहार के फैसले के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में अपील करने के सपा सरकार के निर्णय को गुमराह करने की एक और कोशिश करार दिया है। मंच ने कहा कि सरकार से बार-बार मांग की गई कि अगर वह हाशिमपुरा जनसंहार में इंसाफ चाहती है तो वह इसकी जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एसआईटी से कराए क्योंकि सेना, जिसने हाशिमपुरा की गलियों से मुस्लिम नौजवानों को निकालकर पीएसी को हत्या करने के लिए सुपुर्द किया उसकी पूरी भूमिका को नजरंदाज कर दिया गया है। पर उसने ऐसा न करके साफ किया कि वह दोषियों को बचाने के लिए इंसाफ का गला तक घोंट सकती है।
रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि प्रदेश की सरकारों द्वारा हाशिमपुरा जनसंहार की विवेचना को न सिर्फ कमजोर किया गया बल्कि हत्यारे पीएसी के जवानों को बचाने के लिए सबूत भी मिटाए गए। ऐसे में होना तो यह चाहिए था कि दोषियों को बचाने वाले विवेचना अधिकारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करते हुए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में इस मामले की एसआईटी से जांच करवाई जाती। उन्होंने कहा कि हाशिमपुरा फैसले के दिन मेरठ में मौजूद होने के बावजूद मुख्यमंत्री की कोई प्रतिक्रिया न आने पर यह साफ हो गया था कि अखिलेश हाशिमपुरा के पीडि़तों के साथ खुद को खड़ा दिखाना भी नहीं चाहते थे। मुलायम सिंह को याद होना चाहिए कि इसी हाशिमपुरा की गलियों को याद दिला-दिला कर इंसाफ का वादा करके वह सत्ता में आए थे। आज जिस तरह से हाशिमपुरा, मलियाना मुरादाबाद सांप्रदायिक हिंसा की जांच रिपोर्टों को न जारी कर मुलायम और अखिलेश ने इंसाफ के सवाल को भुला दिया है, ठीक उसी तरह इंसाफ पसंद आवाम इन्हें भी भुला देगी।
रिहाई मंच नेता राजीव यादव ने कहा कि पीएसी के उन्नीस जवानों को ही सिर्फ हाशिमपुरा जनसंहार में सामने लाया गया, वहीं इस मामले में सेना और स्थानीय प्रशासन की भूमिका को नजर अंदाज कर दिया गया। उन्होंने कहा कि सेना के मेजर सतीशचन्द्र कौशिक ने अपने दो अन्य अफसरों मेजर बीएस पठानिया और कर्नल पीपी सिंह के साथ हाशिमपुरा में घरों की तलाशी के नाम पर मुस्लिम युवाओं को घरों से खींच कर सांप्रदायिक जेहेनियत वाली पीएसी के जवानों के सुपुर्द कर दिया था। इसके बाद उन युवाओं को ट्रकों में ले जाकर गंग नहर में मार गिराया गया। वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण जैन की तस्वीरें जो कि कोर्ट के प्रामाणिक दस्तावेज हैं, में हाशिमपुरा की गलियों में तलाशी के दौरान मुस्लिम युवाओं को निकालने की सेना के जवानों की स्पष्ट तस्वीरें होने के बावजूद उनसे पूछताछ तो दूर उन्हें इस मामले से हर संभव स्तर पर बचाने की कोशिश की गई। हाशिमपुरा की तलाशी के लिए न तो कोई वारंट हासिल किए गए थे और न ही तलाशी या फिर गिरफ्तारी का कोई रिकार्ड ही रखा गया। सीआईडी ने आपराधिक तरीके से पीएमओ को भेजी गई अपनी रिपोर्टों से तलाशी के दौरान मेजर की भूमिका का जिक्र निकाल दिया। अट्ठाइस साल की सुनवाई में सेना की तरफ से किसी का बयान दर्ज नहीं किया गया। बार-बार भेजे गए सम्मन और नवंबर 2013 में रक्षा मंत्रालय को भेजे गए नोटिस के बावजूद, हाशिमपुरा तलाशी अभियान की कमान संभाल रहे मेजर पठानिया ने कोर्ट में गवाही नहीं दी। ऐसे बहुतेरे इंसाफ के सवालों को प्रदेश की जांच एजेंसियों द्वारा दफन कर दिया गया है जिसके इंसाफ के लिए जरूरी है कि पूरे प्रकरण की सुप्रीमकोर्ट की निगरानी में एसआईटी से जांच हो। मौलाना खालिद की हत्या को मौत कहने वाले जफरयाब जिलानी या फिर मुजफ्फरनगर के पीडि़तों को इंसाफ से मरहूम रखने वाले आशू मलिक जैसे पिटे-पिटाए मोहरों के सहारे हाशिमपुरा के इंसाफ का कत्ल नहीं किया जा सकता। अब जब मुलायम सिंह यादव और उनका पूरा कुनबा हाशिमपुरा के इंसाफ के कत्ल पर उतारू है तो ऐसे में पूरे प्रदेश में इंसाफ मुहिम के तहत यह लड़ाई और तेज होगी।