मोदी की लोकप्रियता में कमी: सर्वे
मनमोहन और मोदी के कार्यकाल में अंतर कम समानताएं अधिक
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 26 मई को अपने कार्यकाल का एक साल पूरा करने जा रहे हैं। मोदी सरकार के एक साल के कार्यकाल पर एक निजी न्यूज चैनल में हुए सर्वे में सामने आया है कि पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में कमी आई है। सर्वे में 59 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वह बीते एक साल के दौरान मोदी सरकार के कामकाज से संतुष्ट हैं, वहीं 41 फीसदी लोग ऐसे हैं जिन्हें मोदी सरकार बीते एक साल के दौरान संतुष्ट नहीं कर पाई।
63 फीसदी लोगों ने कहा है कि मोदी सरकार की इमेज गरीब और किसान विरोधी हो गई है। इस सर्वे में 48 प्रतिशत लोगों का मानना है कि बीते एक साल के दौरान पीएम मोदी की लोकप्रियता में कमी आई है।
सर्वे में शामिल करीब 78 फीसदी लोगों ने लैंड बिल के खिलाफ अपनी राय दी है। इनका कहना था कि मोदी सरकार को लैंड बिल वापस ले लेना चाहिए। सर्वे में क्षेत्रीय आधार पर भी मोदी के बारे में राय जानी गई। उत्तर भारत में 65, पश्चिम में 52, पूर्वी भारत में 34 और दक्षिण भारत में 38 फीसदी लोगों ने कहा कि पिछले एक साल के दौरान पीएम मोदी की लोकप्रियता में कमी आई है।
हालांकि मोदी सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के बारे में लोगों की राय सकारात्मक रही। 46 फीसदी लोगों ने स्वच्छ भारत अभियान, 19 फीसदी ने जन-धन योजना, 18 फीसदी ने मेक इन इंडिया और 11 फीसदी ने सांसद आदर्श ग्राम योजना का समर्थन किया।
सर्वे में लोगों ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को एनडीए सरकार काम में लिहाज से सर्वश्रेष्ठ मंत्री माना। स्वराज के कामकाज को 56 फीसदी लोगों ने अच्छा, 31 प्रतिशत ने औसत और 13 फीसदी ने खराब माना। गृहमंत्री राजनाथ सिंह दूसरे नंबर पर हैं। उनके कामकाज को 50 फीसदी लोगों ने अच्छा, 36 फीसदी ने औसत और 14 प्रतिशत ने खराब माना। वित्त मंत्री अरुण जेटली के कामकाज को 48 फीसदी ने बेहतर, 28 ने औसत और 23 फीसदी ने खराब बताया। एचआरडी मिनिस्टर स्मृति ईरानी के कामकाज को 44 फीसदी लोगों ने ही अच्छा बताया। वहीं नितिन गडकरी केवल 40 प्रतिशत लोगों की पसंद रहे।
मोदी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पहले साल की उपलब्धियों पर गौर करने से पता चलता है कि ज्यादा फर्क नहीं है, बल्कि समानताएं हैं। उदाहरण के तौर पर दोनों ही प्रधानमंत्रियों के पहले साल के कार्यकाल में विकास दर में तेजी आई, आयात और निर्यात घटा, विदेशी पूंजी भंडार बढ़ा, कोयला उत्पादन बढ़ा, बिजली उत्पादन बढ़ा, पेट्रोलियम उत्पादों की खपत बढ़ी और बैंकों की गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) का स्तर बढ़ा। इंडिया स्पेंड ने 12 संकेतकों का मूल्यांकन किया, जिसमें कई समानताएं देखी गईं।
औद्योगिक उत्पादन: मोदी के प्रथम वर्ष में आठ प्रमुख उद्योगों (कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, ऊर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली) की विकास दर 2014-15 में पांच फीसदी रही, जो एक साल पहले 4.2 फीसदी थी। सिंह के प्रथम वर्ष में छह प्रमुख उद्योगों (कच्चा तेल, रिफायनरी उत्पाद, कोयला, बिजली, सीमेंट और तैयार कार्बन स्टील) की विकास दर 2009-10 में 10.4 फीसदी थी, जो 2008-09 में 2.8 फीसदी थी।
निर्यात और आयात: डॉलर राशि में निर्यात और आयात 2014-15 में साल-दर-साल आधार पर क्रमश: दो फीसदी और 0.5 फीसदी घटा। सिंह के दूसरे कार्यकाल के प्रथम वर्ष 2009-10 में यह क्रमश: चार फीसदी और पांच फीसदी रही।
परमाणु ऊर्जा: दिसंबर 2014 में तमिलनाडु में 1,000 मेगावाट क्षमता की कुडनकुलम-1 इकाई शुरू होने के साथ देश की कुल स्थापित परमाणु बिजली क्षमता 2014-15 में 5,780 मेगावाट हो गई, जो 2013-14 के 4,780 मेगावाट से 21 फीसदी अधिक है। 2009-10 में इसमें साल-दर-साल आधार पर 10.6 फीसदी वृद्धि दर्ज की गई।
आर्थिक विकास: आर्थिक विकास दर 2009-10 में 8.9 फीसदी रही थी। दूसरी ओर गणना पद्धति और आधार वर्ष में बदलाव के बाद विकास दर 2014-15 में 7.4 फीसदी रहने का अनुमान है।
कृषि: 60 करोड़ लोगों को रोजगार देने वाले कृषि क्षेत्र की विकास दर 2014-15 में 1.1 फीसदी रही, जो 2009-10 में 0.8 फीसदी रही थी।
विदेशी मुद्रा भंडार: विदेशी पूंजी भंडार 12 फीसदी वृद्धि दर्ज करते हुए 2013-14 के 304 अरब डॉलर से बढ़कर 2014-15 के आखिर में 341 अरब डॉलर हो गया। 2009-10 में यह 5.4 फीसदी वृद्धि के साथ 254.9 अरब डॉलर दर्ज किया गया था, जो एक साल पहले 241.7 अरब डॉलर था।
कोयला: कोयला उत्पादन 2014-15 में 8.2 फीसदी बढ़ा। 2009-10 में इसमें 8.1 फीसदी वृद्धि दर्ज की गई थी।
पेट्रोलियम: 2014-15 में डीजल, पेट्रोल, एलपीजी तथा अन्य पेट्रोलियम उत्पादों की खपत 3.1 फीसदी बढ़ी, जो 2009-10 में 3.2 फीसदी बढ़ी थी।
बिजली: कुल स्थापित क्षमता 2014-15 में 10 फीसदी बढ़ी। 2009-10 में यह 7.7 फीसदी बढ़ी थी।
नवीकरणीय ऊर्जा: कुल स्थापित क्षमता 2014-15 में 7.56 फीसदी बढ़ी, जो 2009-10 में 17.20 फीसदी बढ़ी थी।
एनपीए: सरकारी बैंकों का एनपीए 17 फीसदी बढ़कर मार्च 2014 के 2.27 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर दिसंबर 2014 में 2.73 लाख करोड़ रुपये हो गया। 2009-10 में साल-दर-साल आधार पर 23 फीसदी बढ़ा था।