दस फीट दक्षिण खिसका काठमांडू
काठमांडू : नेपाल में बीते शनिवार को आए 7.9 तीव्रता के भूकंप के चलते पूरे देश में तबाही का मंजर बिखर गया। भूकंप इतना जबरदस्त था कि काठमांडू में धरहरा मीनार एवं दरबार चौक जैसी कई ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण इमारतें जमीदोंज हो गई। इस भीषण भूकंप से सिर्फ जानमाल व संपत्ति की तबाही ही नहीं हुई बल्कि नेपाल में भौगोलिक बदलाव भी आए हैं। वहीं, विशेषज्ञों का कहना है कि माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई में किसी तरह का बदलाव नहीं आया है।
मीडिया में सामने आई कुछ रिपोर्टों के अनुसार, वैज्ञानिकों के हवाले से यह कहा गया है कि इस भूकंप में काठमांडू शहर 30 सेकंड में अपनी धुरी से 10 फीट दक्षिण की ओर खिसक गया है। साथ ही पृथ्वी के एक बड़े भू-भाग में भी बदलाव दर्ज किए गए हैं। इन रिपोर्टों में वाडिया भू विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने नासा के हवाले से यह जानकारी दी है।
नेपाल में शनिवार को आए भीषण भूकंप से काठमांडू 30 सेकंड में अपनी धुरी से 10 फुट दक्षिण की ओर खिसक गया है। वाडिया भू विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने नासा के हवाले से यह जानकारी दी है। वैज्ञानिकों के अनुसार नेपाल में रिक्टर स्केल पर 7.9 तीव्रता का भूकंप आया था। इस वजह से इंडियन प्लेट के यूरेशियन प्लेट के नीचे खिसकने से हुए घर्षण के कारण पृथ्वी का 7200 वर्ग किलोमीटर भू-भाग अपनी जगह से तीन मीटर ऊपर उठ गया।
जिसके परिणामस्वरूप, इस खिंचाव की वजह से एक झटके में 79 लाख टन टीएनटी ऊर्जा निकली, जिससे पृथ्वी की धुरी पर भी असर पड़ा। इस ऊर्जा का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि यह हिरोशिमा में हुए एटमी धमाके से निकली ऊर्जा से 504.4 गुना ज्यादा थी।
वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान के भू-भौतिकी विभाग (जियो फिजिक्स विभाग) के प्रमुख डा. सुशील कुमार ने बताया कि अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी सेंटर नासा ने नेपाल में भूकंपीय क्षेत्र के सेटेलाइट अध्ययन के बाद काठमांडू 10 फुट खिसकने की बात कही। वैज्ञानिक के मुताबिक कोलोरेडो यूनिवर्सिटी ने भी अपने अध्ययन में पृथ्वी के अपनी धुरी से 10 फुट खिसकने की पुष्टि की है।
वाडिया भू विज्ञान संस्थान उत्तराखंड से लेकर हिमाचल क्षेत्र में 14 नए सेस्मोग्राफ लगाने जा रहा है। इससे वाडिया संस्थान इन क्षेत्रों में आने वाले 1.5 मैग्नीट्यूड के भूकंप को भी पकड़ने में सक्षम हो जाएगा। वाडिया संस्थान ने अभी इस क्षेत्र में 41 सेस्मोमीटर लगाए हैं जो अब बढ़ जाएंगे। इससे कुछ पहाड़ी राज्यों में आने वाले भूकंपों का अध्ययन करने में मदद मिलेगी।